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अर्थ जगत | अर्थव्यवस्था

कैसे इस बुरे वक्त में हमारे गांव देश की अर्थव्यवस्था को डूबने से बचा रहे हैं

तमाम रिपोर्ट्स और आंकड़े बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से सामान्य होने की ओर बढ़ रही है और इसमें ग्रामीण क्षेत्र एक बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है

अभय शर्मा | 22 जुलाई 2020 | फोटो: फेसबुक

भारत में लॉकडाउन हटाए हुए डेढ़ महीने से ज्यादा समय हो चुका है. सरकार ने अर्थव्यवस्था की खराब होती हालत को देखते हुए अनलॉक फेज एक और दो में आर्थिक गतिविधियों को लगभग पूरी तरह खोल दिया है. भारत की अर्थव्यवस्था अब वापस पटरी पर लौटती दिख रही है, सरकार और आरबीई के ताजा संकेतों को देखें तो इसका साफ पता चलता है. इसके अलावा हाल ही में गूगल की कोविड-19 मोबिलिटी रिपोर्ट आयी है. ये इशारा कर रही है कि भारत की अर्थव्यवस्था वापस लॉकडाउन से पहले की स्थिति की तरफ तेजी के साथ बढ़ रही है. गूगल की ये रिपोर्ट 131 देशों के लिए निकाली गई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का सबसे कड़ा और लंबा लॉकडाउन लगाने के बाद भी भारत उन टॉप 50 देशों में शुमार है जिनकी अर्थव्यवस्था ज्यादा तेजी के साथ सामान्य स्थित की तरफ बढ़ती दिख रही है.

वे आंकड़े जिनके आधार पर अर्थव्यवस्था में सुधार होने की बात कही जा रही है

गूगल की ओर से जुटाई गई जानकारी के अुनसार खुदरा, किराना, फार्मा, ट्रांसपोर्ट और बैंकिंग जैसे सेक्टर कोरोना काल से एकदम पहले की स्थिति की ओर तेजी से बढ रहे हैं. साथ ही ईंधन, बिजली की खपत और खुदरा वित्तीय लेन-देन में बढ़ोत्तरी को भी अर्थव्यवस्था के सामान्य होने के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है. लॉकडाउन के दौरान देश में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत 2007 के बाद से सबसे कम हो गई थी, लेकिन अब आंकड़े बताते हैं कि इसमें तेजी से सुधार हो रहा है. बीते जून में जून 2019 के मुकाबले तेल की खपत 88 फीसदी तक पहुंच गई है.

बीते अप्रैल में लॉकडाउन के दौरान वाणिज्यिक और औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट आने से बिजली की मांग साल भर पहले की तुलना में करीब 25 प्रतिशत कम रही थी. लेकिन अब आंकड़े काफी उत्साहित करने वाले हैं. केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में बिजली की उच्चतम मांग बीती दो जुलाई को 170.54 गीगावाट दर्ज की गई, जो जुलाई 2019 के 175.12 गीगावाट से महज 2.61 प्रतिशत ही कम है.

लॉकडाउन हटने के बाद बीते जून में वस्तु एवं सेवाकर यानी जीएसटी के संग्रह में भी तेजी आई है. वित्त मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार जून में कोरोना वायरस महामारी के बीच केंद्र सरकार का जीएसटी संग्रह 90,917 करोड़ रुपये रहा है. यह जून 2019 की तुलना में 91 फीसदी है. बीते मई में सरकार को जीएसटी से 62,009 करोड़ रुपये और अप्रैल में महज 32,294 करोड़ रुपये का राजस्व ही मिल सका था.

औद्योगिक उत्पादन और विनिर्माण क्षेत्र से भी राहत की खबर आ रही है. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आंकड़ों के मुताबिक बीते अप्रैल में औद्योगिक उत्पादन में गिरावट 60 फीसदी तक पहुंच गयी थी, जो मई और मध्य जून तक 35 फीसदी से नीचे आ गयी है. इसी तरह विनिर्माण क्षेत्र में बीते अप्रैल में गिरावट करीब 68 फीसदी तक पहुंच गयी थी. लेकिन आईआईपी के आंकड़ों के मुताबिक मई और मध्य जून तक यह गिरावट घटकर 40 फीसदी से नीचे दर्ज की गयी है.

द हिंदू बिजनस लाइन के सीनियर डिप्टी एडिटर शिशिर सिन्हा एक और आंकड़ा भी बताते हैं जिससे आर्थिक गति का अनुमान लगाया जा सकता है. वे बताते हैं, ‘हम बिलटी यानी ईबे रसीद के जरिये भी स्थिति के सुधरने का अनुमान लगा सकते हैं. ईबे रसीद तब जारी की जाती है जब कोई सामान एक राज्य से दूसरे राज्य में या एक ही राज्य में एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है. इससे पता चलता है कि सामान पर टैक्स दिया गया है या नहीं. इस समय ईबे रसीद जारी होने की संख्या तकरीबन (कोविड-19 महामारी से) पहले वाली स्थिति में पहुंच गयी है. पहले 20 से 25 लाख ईबे प्रतिदिन जारी होते थे.’

शिशिर सिन्हा यह भी कहते हैं कि महंगाई दर की स्थिति से भी जाना जा सकता है कि अर्थव्यव्स्था का चक्का किस तरह से घूम रहा है. उनके मुताबिक महंगाई दर सीधे-सीधे सप्लाई और मांग पर निर्भर करती है. इससे जुड़े आंकड़े भी बताते हैं कि अर्थव्यवस्था थोड़ी सी पहले वाली स्थिति की तरफ बढ़ रही है.

कठोर लॉकडाउन के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था के समान्य की तरफ तेजी से बढ़ने की वजह

भारत की जीडीपी को देखें तो इसमें सेवा क्षेत्र की करीब 57 फीसदी और औद्योगिक क्षेत्र की करीब 30 फीसदी हिस्सेदारी है. इसके बाद कृषि क्षेत्र आता है जिसकी जीडीपी में हिस्सेदारी तकरीबन 13 फीसदी है. बीते अप्रैल में जब देश में कोरोना वायरस के मामले बढ़ने शुरू हुए तो आर्थिक मामलों के कई जानकारों का कहना था कि अर्थव्यवस्था को बचाने में ग्रामीण भारत बड़ी भूमिका निभाने वाला है. ऐसा कहने के पीछे की वजह यह थी कि जिस तरह से शहरी इलाकों में कोविड के मामले तेजी से सामने आ रहे थे उसे देखते हुए साफ़ था कि सेवा क्षेत्र और औद्योगिक क्षेत्रों की रफ़्तार बहुत धीमी रहने वाली है. ऐसे में सिर्फ कृषि ही एक ऐसा क्षेत्र था, जो अर्थव्यवस्था को सहारा दे सकता था. कृषि क्षेत्र से उम्मीद इसलिए थी क्योंकि ग्रामीण भारत में कोरोना का प्रभाव बेहद कम होने की वजह से वहां रबी की फसल की कटाई सामान्य रूप से चल रही थी. इसके अलावा रबी की फसल को लेकर जो आंकड़े सामने आ रहे थे, वे भी उत्साहित करने वाले थे. कृषि वर्ष 2019-20 में अनाज का रिकॉर्ड 30 करोड़ टन उत्पादन हुआ है. जानकार कहते हैं कि इसके बाद जब केंद्र और राज्य सरकारों ने किसानों को लॉकडाउन की मार से बचाने के लिए राहत योजनायें चलाई तो इससे ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को और फायदा हुआ जिससे वहां से अर्थव्यवस्था को बल मिलने की उम्मीद और ज्यादा हो गई.

सत्याग्रह से बातचीत में भी उत्तर प्रदेश के कई जिलों के किसानों ने यह बात कही कि सरकार की नीतियों और फसल कटाई के समय से होने की वजह से उन्हें कोरोना वायरस संकट के दौरान कोई ख़ास परेशानी नहीं हुई. किसानों का कहना था कि केंद्र द्वारा ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ के तहत मिलने वाले दो हजार रुपए की दो किश्तों को तत्काल उनके अकाउंट में डालना, उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन पाए लोगों को तीन सिलेंडर मुफ्त देना, समर्थन मूल्य बढ़ाना और राशन में हर महीने चना और अनाज मुफ्त देने के चलते उन्हें आर्थिक तौर पर जरा भी परेशानी नहीं उठानी पड़ी.

जानकार कहते हैं कि इन्हीं सब वजहों के चलते ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की आर्थिक स्थिति पहले से बुरी न होकर कुछ बेहतर ही हुई है. इस वजह से देशव्यापी लॉकडाउन के हटते ही वहां आर्थिक गतिविधियां तेज रफ़्तार में चलने लगीं. अगर पिछले डेढ़ महीने के आकड़ों पर नजर डालें तो इसका स्पष्ट पता चलता है. जून महीने में ग्रामीण क्षेत्र में ऑटो इंडस्ट्री के आंकड़े काफी चौंकाने वाले रहे हैं. इस दौरान यहां ट्रैक्टर की बिक्री में रिकॉर्ड उछाल देखने को मिला है. सोनालिका समूह के कार्यकारी निदेशक रमन मित्तल मीडिया से बातचीत में बिक्री के आंकड़ों की जानकारी देते हुए कहते हैं, ‘यह हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि सोनालिका ट्रैक्टर्स इस कठिन समय में अधिकतम वृद्धि दर्ज करने वाली एकमात्र कंपनी है. हमने 15,200 ट्रैक्टरों के साथ बीते जून में दमदार प्रदर्शन किया है, इस साल जून में हुई बिक्री ने अब तक का हमारा उच्चतम स्तर छुआ है.’

ऐसा ही कुछ हाल महिंद्रा एंड महिंद्रा का भी रहा है. जून में महिंद्रा ट्रैक्टर्स की बिक्री में 12 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है. कंपनी ने इस दौरान रिकॉर्ड 35,844 ट्रैक्टर बेंचे हैं. महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड में फार्म इक्विपमेंट सेक्टर के प्रमुख हेमंत सिक्का एक साक्षात्कार में बताते हैं, ‘बीते जून में महिंद्रा ट्रैक्टर की बिक्री के आंकड़े अब तक के हमारे दूसरे सबसे बड़े आंकड़े हैं. दक्षिण-पश्चिम मानसून के समय पर आने, रबी की रिकॉर्ड फसल, कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा चलायी गयीं योजनाओं के कारण किसान इस समय खासे उत्साहित हैं.’

केवल ट्रैक्टर ही नहीं, ऑटो क्षेत्र की अन्य कंपनियों को भी ग्रामीण भारत ने बड़ी राहत दी है. बाजार में चल रहे उतार-चढ़ाव पर नजर रखने वाली कंपनियां नोमुरा, एमके ग्लोबल और मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट के मुताबिक  ट्रैक्टर के अलावा दोपहिया, तिपहिया और चार पहिया वाहनों की बिक्री में भी शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में काफी ज्यादा बढ़ोत्तरी देखी गयी है.

गांवों में शहरों के मुकाबले चीज-सामान की कहीं ज्यादा मांग

गूगल की कोविड-19 मोबिलिटी रिपोर्ट यह दावा भी करती है कि लॉकडाउन हटने के बाद भारत में यूरोप के 17 देशों से कहीं ज्यादा चीज-सामान की खपत हो रही है. अर्थ जगत के जानकार इसके पीछे भी ग्रामीण क्षेत्र का बड़ा योगदान मानते हैं.

‘तेज़ी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुयें’ बनाने वाली एफएमसीजी कंपनियों के आंकड़े बताते हैं कि शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादों की मांग कई गुना बढ़ी है. मार्केट रिसर्च से जुड़ी कंपनी नील्सन की हाल में आयी रिपोर्ट की मानें तो बीते मई में ही ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री कोविड से पहले वाली औसत बिक्री के 85 फीसदी तक पहुंच गयी थी. जबकि शहरी बाजार में यह आंकड़ा 70 फीसदी पर था.

खाने-पीने के उत्पाद बनाने वाली कई कंपनियों जैसे पारले, ब्रिटेनिया ने भी लॉकडॉन के दौरान और उसके बाद अपने उत्पादों की बिक्री कई गुना बढ़ने की बात कही थी. देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान पारले-जी ने पिछले 82 सालों की बिक्री का रिकॉर्ड तोड़ दिया था. पारले प्रोडक्ट्स के वरिष्ठ प्रमुख मयंक शाह मीडिया से बातचीत में कहते हैं, ‘हमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में मजबूत डिमांड मिल रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में डिमांड पहले से दोगुनी है.’ मयंक मानते हैं कि कोविड के दौर में ग्रामीण अर्थव्यवस्था शहर की तुलना में बेहतर स्थिति में है.

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