कॉल सेंटर

अर्थ जगत | अपराध

हर साल विदेशियों को हजारों करोड़ रु का चूना लगाने वाले फर्जी कॉल सेंटर भारत में कैसे चलते हैं

इनके चलते विकसित देशों में भारत की एक पहचान फर्जी कॉल सेंटर्स की राजधानी के तौर पर भी होने लगी है

विकास बहुगुणा | 01 फरवरी 2021 | फोटो: पिक्साबे

‘डोंट वरी सर, यू आर इन सेफ हैंड्स नाउ’

भारत के कई शहरों में चल रहे कई कॉल सेंटर्स में अमेरिका, कनाडा या यूरोप से आने वालीं अनगिनत फोन कॉल्स का जवाब देते हुए अक्सर यह बात कही जाती है. फोन के दूसरी तरफ जो शख्स होता है वह अपने कंप्यूटर पर आई एक समस्या का समाधान चाह रहा होता है. इस तरफ बैठा ‘टेक्निकल एक्सपर्ट’ यह समाधान बताता है. इसके एवज में यूजर फीस के रूप में एक तय रकम चुकाता है और बात खत्म हो जाती है.

आप सोच रहे होंगे कि इसमें क्या खास है. आखिर कॉल सेंटर्स कंपनियां बनाती ही इसलिए हैं ताकि यूजर को उनके प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करते हुए कोई दिक्कत हो तो उसका समाधान हो सके. भारत को वैसे भी कॉल सेंटर्स की राजधानी कहा जाता रहा है. लेकिन यह इतनी सीधी बात है नहीं. ऊपर जिस वार्तालाप का जिक्र है उसमें कई बार यूजर तो असली होता है, लेकिन कॉल सेंटर फर्जी. दिल्ली से लेकर मुंबई, कोलकाता, नोएडा, गुड़गांव और इंदौर जैसे छोटे-बड़े शहरों में बीते कुछ समय के दौरान जिस तरह से फर्जी कॉल सेंटरों की बाढ़ आ गई है उसके चलते भारत को अब फर्जी कॉल सेंटर्स की राजधानी भी कहा जाने लगा है.

विदेशियों को ठगने के लिए इन फर्जी कॉल सेंटर्स ने कई तरीके खोज लिए हैं. इनमें प्रमुख है टेक सपोर्ट स्कैम. इसमें ये ठग लोगों के कंप्यूटर के सिक्योरिटी सिस्टम को चकमा देकर उसकी स्क्रीन पर एक पॉप अप विंडो चमकाते हैं. इस पर यह चेतावनी लिखी होती है कि उनके कंप्यूटर में एक वायरस घुस गया है जो उनके क्रेडिट कार्ड, फेसबुक और ई-मेल जैसी जानकारियां चुरा रहा है. यूजर को बताया जाता है कि अगर उसने इस विंडो को बंद किया तो आगे होने वाले नुकसान को रोकने के लिए विंडोज का सिक्योरिटी सिस्टम उसे लॉक कर देगा. संदेश के आखिर में एक फोन नंबर लिखा होता है और यह निर्देश भी कि कंप्यूटर लॉक होने और डेटा की चोरी होने से बचाने के लिए यूजर अगले पांच मिनट के भीतर इस पर फोन करे. घबराया यूजर उस नंबर पर फोन करता है और यहीं पर उसकी जेब काटने की कवायद का अगला चरण शुरू हो जाता है.

जेब काटने वाला यानी फर्जी कॉल सेंटर में बैठा स्कैमर यूजर को बताता है कि वह माइक्रोसॉफ्ट या विंडोज सर्टिफाइड टेक्निकल एक्सपर्ट है. इसके बाद उसे एक रिमोट एक्सेस सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने को कहा जाता है. इस सॉफ्टवेयर की मदद से कथित एक्सपर्ट यूजर के कंप्यूटर का कंट्रोल अपने हाथ में ले लेता है और स्क्रीन पर उसे उसी के कंप्यूटर की कुछ आम सी फाइलें दिखाकर बताता है कि कंप्यूटर में कई वायरस घुस चुके हैं जो उसका बेशकीमती डेटा चुरा रहे हैं. इसके बाद समाधान के तौर पर उसे कोई क्लीनअप पैकेज खरीदने का झांसा दिया जाता है और इसकी कीमत 399 या 599 या 1099 डॉलर जैसी कोई रकम बताई जाती है. अपना पैसा और दूसरी जानकारियां गलत हाथों में पड़ने की आशंका से घबराए कई लोग इसके लिए तैयार हो जाते हैं. फिर एक फर्जी क्लीन अप सॉफ्टवेयर को बेचने के नाम पर स्कैमर यूजर को पे पॉल या ऐसे ही दूसरे पेमेंट गेटवे पर ले जाता है और उससे पैसे का भुगतान करवा लेता है. यानी न कोई वायरस था, न ही कोई सफाई हुई और न कोई सॉफ्टवेयर खरीदा गया, लेकिन यूजर की जेब साफ हो गई.

फर्जीवाड़े का एक और तरीका यह है कि लोगों के फोन पर एक प्री रिकॉर्डेड कॉल किया जाता है. इसे रोबो कॉल भी कहा जाता है. इसमें कहा जाता है कि उनके सोशल सिक्योरिटी नंबर या फिर आयकर भुगतान में कुछ गड़बड़ी पाई गई है और उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है. कई यही काम वाट्सएप पर एक ऑडियो मैसेज भेजकर भी करते हैं. कॉल और मैसेज में एक हेल्पलाइन नंबर का जिक्र होता है जिस पर लोगों से फोन करने को कहा जाता है. जो इस जाल में फंस जाते हैं उनसे एक खाते में जुर्माने के तौर पर कुछ रकम ट्रांसफर करने को कहा जाता है. यह खाता अमेरिका में ही बैठे उनके किसी सहयोगी का होता है जो हवाला के जरिये यह रकम भारत में भेज देता है.

भारत में यह धंधा कितने जोरों पर है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अगर आप गूगल पर फर्जी काल सेंटर या अंग्रेजी में फेक काल सेंटर लिखकर सर्च करें तो हर कुछ दिन के अंतराल पर आपको किसी फर्जी कॉल सेंटर पर पुलिस की कार्रवाई से जुड़ी खबर मिल जाएगी. द गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ टेक सपोर्ट के नाम पर होने वाले फर्जीवाड़ों से अमेरिका को हर साल करीब डेढ़ अरब डॉलर यानी 11 हजार करोड़ रु की चपत लगती है. इन फर्जीवाड़ों में 85 फीसदी से ज्यादा भारत से होते हैं. कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के नोएडा में एक फर्जी कॉल सेंटर पर पुलिस के छापे के बाद पता चला था कि वह रोज औसतन 50 हजार डॉलर यानी महीने में करीब नौ करोड़ रु की कमाई कर रहा था.

जानकारों के मुताबिक कम लागत में मोटी कमाई के चलते ही भारत में इस धंधे का विस्तार हो रहा है. लागत इसलिए कम है कि इस काम के लिए जो संसाधन चाहिए वे यहां सस्ते हैं. बीते सितंबर में ही मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने लोकसभा को बताया था कि पिछले चार साल में देश भर के कॉलेजों से 3.63 करोड़ युवा ग्रेजुएट बनकर निकले हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनॉमी की एक रिपोर्ट की मानें तो देश में उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं में बेरोजगारी दर 60 फीसदी है. यानी हर साल 90 लाख ग्रेजुएट तैयार हो रहे हैं, लेकिन नौकरियां सिर्फ 36 लाख लोगों को ही मिल रही हैं. फर्जी कॉल सेंटर चलाने वाले इसका फायदा उठाते हैं.

ऐसे ही एक कॉल सेंटर में नौकरी पा चुके समीर उपाध्याय (बदला हुआ नाम) कहते हैं, ‘ये लोग अखबारों से लेकर जॉब पोर्टलों तक हर जगह एड देते हैं. इनमें लिखा होता है कि दुनिया की बड़ी कंपनियों को सेवा देने वाले एक कॉल सेंटर के लिए ठीक-ठाक अंग्रेजी बोलने वाले ग्रेजुएट चाहिए. मैं भी ऐसा ही एक एड पढ़कर गुड़गांव पहुंचा था. वहां खुद को एचआर से बताने वाली एक महिला ने मेरा इंटरव्यू लिया. फिर उसने मुझे जॉब ऑफर दिया. 25 हजार रु सेलरी थी और इसेंटिव अलग से.’

बीटेक करके बेरोजगार बैठे समीर को जैसे मनचाही मुराद मिल गई. इसके बाद उन्हें जॉब की ट्रेनिंग के लिए जाना था. लेकिन इसकी शुरुआत में ही उन्हें जो बताया गया उसे सुनकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई. समीर कहते हैं, ‘हमारे ट्रेनर ने कहा कि हमें अमेरिकन अथॉरिटीज बनकर वहां के लोगों को फोन करना है, उन्हें डराकर पैसे वसूलने हैं और इन्हीं पैसों से हमारा इंसेटिव बनेगा जिसकी कोई लिमिट नहीं है. यानी जितना ज्यादा वसूली, उतना ज्यादा पैसा. उसका ये भी कहना था कि जो ये काम नहीं करना चाहता वो अभी ही ट्रेनिंग छोड़ दे. मैं चला आया. हॉल में बैठे 50 लोगों में से ऐसा करने वाला मैं अकेला था.’

लेकिन नैतिकता से ज्यादा पैसे को लगातार तरजीह देते समाज में अधिकतर लोग ऐसी नौकरियां कर ही लेते हैं. जैसे कि द गार्डियन से बातचीत में कानपुर के अभिषेक सिंह (बदला हुआ नाम) बताते हैं, ‘नए रंगरूट थोड़े समय बाद भूल जाते हैं कि वे जिंदगी में क्या बनना चाहते थे. उन्हें लोगों को बेवकूफ बनाने में मजा आने लगता है. उन्हें ये (अमेरिकियों को उल्लू बनाना) अपना टैलेंट लगता है.’ अभिषेक आगे कहते हैं, ‘हमारे यहां तो अगर कस्टमर पैसा देने से मना करे तो एफबीआई की धमकी भी दी जाती थी. और शिकार पर आखिरी वार हम ये कहकर करते थे कि सुरक्षा विभाग को खबर दे दी जाएगी, उनका इंटरनेट बंद कर दिया जाएगा और वे ब्लैकलिस्ट में आ जाएंगे. घबराए लोग 200 से लेकर 2000 डॉलर तक भी दे देते थे.’ अभिषेक इस तरह के एक काल सेंटर में दो साल नौकरी कर चुके हैं.

इन कॉल सेंटर्स में काम करने वाले युवाओं के मुताबिक इनका सबसे बड़ा आकर्षण यही है कि इनमें नौकरी आराम से मिल जाती है. अगर आप एक जगह काम छोड़ भी दें तो आपको थोड़े ही समय में किसी दूसरी जगह काम मिल जाएगा. इंदौर के एक फर्जी कॉल सेंटर में काम कर चुके सुधांशु भारद्वाज (बदला हुआ नाम) कहते हैं, ‘बहुत समय तक तो मैं यही सोचता रहा कि बस एक महीने की सेलरी और ले लूं, फिर छोड़ दूंगा. इस तरह दो साल निकल गए. फिर मैंने नौकरी छोड़ दी और दूसरी जगह कोशिश की. लेकिन जब कुछ नहीं हुआ और घर पर बैठे एक साल हो गया तो मैंने फिर इसी तरह के एक कॉल सेंटर में नौकरी कर ली. लेकिन साल भर में ही मन उखड़ गया और अब तीन महीने से मैं फिर बेरोजगार हूं.’

मानव संसाधनों के अलावा इन कॉल सेंटर्स के संचालकों को दूसरे संसाधन भी आराम से मिल जाते हैं. चूंकि ये अमेरिका की शिफ्ट के हिसाब से चलते हैं तो इनका काम रात में होता है. जानकारों के मुताबिक ऐसे में कई बार ये ऐसी जगहें किराए पर ले लेते हैं जहां दिन में कोई दूसरा दफ्तर चलता हो. इससे उन्हें अपेक्षाकृत कम किराया देना पड़ता है. हालांकि अब अकूत कमाई के चलते ये कॉल सेंटर चलाने वाले ऐसे ऑफिस भी लेने लगे हैं जहां उनके अलावा कोई और न दाखिल हो सके. मसलन हाल में ही हरियाणा के गुरुग्राम में पुलिस ने एक फर्जी कॉल सेंटर का भांडाफोड़ किया. पता चला कि इसका मालिक हर महीने अपने ऑफिस का 16 लाख रु किराया दे रहा था.

इन कॉल सेंटर्स के फलने-फूलने का एक बड़ा कारण यह भी है कि ये लंबे समय तक पुलिस की पकड़ में इसलिए भी नहीं आते क्योंकि फर्जीवाड़ा विदेश में हो रहा होता है. जाहिर है जब कोई शिकायत ही नहीं आएगी तो पुलिस कार्रवाई कैसे करेगी. लेकिन ठगी के पैमाने में लगातार हो रही बढ़ोतरी के बीच बीते कुछ सालों के दौरान माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियां और एफबीआई जैसी अमेरिकी एजेंसियां इस दिशा में सक्रिय हुई हैं. वे यूजर्स को जागरूक कर रही हैं. उनकी शिकायत पर भारत में पुलिस ने कई जगह छापे भी मारे हैं. लेकिन इन कार्रवाइयों के बाद भी ऐसे कॉल सेंटर्स पर कोई प्रभावी लगाम लगी हो, ऐसा नहीं लगता.

इसके अपने कारण हैं. जानकारों के मुताबिक इस तरह के मामलों में गिरफ्तारी के बाद जमानत मिलने में कोई खास दिक्कत नहीं होती. फिर अदालत में जुर्म साबित करना भी लगभग असंभव होता है. जैसा कि द हिंदू बिजनेस लाइन से बातचीत में कोलकाता पुलिस के एक अधिकारी बताते हैं, ‘अदालतें हमसे पीड़ित या फिर उससे जुड़ा कोई सबूत पेश करने को कहती हैं. पीड़ित विदेश में होते हैं तो जाहिर सी बात है कि ऐसा करना हमारे बस में नहीं. नतीजा ये होता है कि आखिर में आरोपित दोषी साबित नहीं होते.’ ज्यादा से ज्यादा यही होता है कि पंजीकरण या दूसरी जरूरी मंजूरियों के बिना कंपनी चलाने पर अदालत कुछ फाइन लगा देती है और मामला खत्म हो जाता है. इन कॉल सेंटर्स के सरगना दूसरी कंपनी बनाकर वही कारोबार फिर शुरू कर देते हैं.

बहुत से मामलों में ये वे लोग होते हैं जिन्होंने कभी किसी ऐसे ही कॉल सेंटर में काम किया था और फिर अपना कारोबार खोल लिया. बीबीसी से बातचीत में एक ऐसे ही शख्स पीयूष (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि किस्मत अच्छी रही तो महीने में उन्होंने 50-50 हजार डॉलर भी कमाए. कभी जब उन्होंने ऐसे एक कॉल सेंटर में नौकरी शुरू की थी तो उन्हें 100 डॉलर की ठगी पर 100 रु इंसेंटिव के तौर पर मिलते थे. अपने काम को कला कहते हुए पीयूष बताते हैं कि वे बुजुर्गों को निशाना बनाते थे. वे कहते हैं कि एक बार टारगेट पूरा करने के लिए उन्होंने एक महिला को 100 डॉलर देने के लिए मजबूर कर दिया. उसके पास वही आखिरी रकम थी और उस दिन क्रिसमस था. पीयूष बताते हैं, ‘वो पैसे मैंने ले लिये. पेमेंट करते हुए वो महिला बहुत रोई. वो मेरे करियर की सबसे बुरी कॉल थी.’

इस फर्जी कारोबार में करीब एक दशक सक्रिय रहने के बाद पीयूष अब यह काम छोड़ चुके हैं. लेकिन कम लागत में चोखी कमाई वाला यह अवैध धंधा किसी एक पीयूष के सहारे तो चलता नहीं. इसलिए यह न केवल जारी है बल्कि लगातार बढ़ता ही जा रहा है.

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