स्टील किंग लक्ष्मी निवास मित्तल की विश्व के कुल स्टील उत्पादन में 10 फीसदी हिस्सेदारी है, पर भारत में उनका सिक्का अब तक नहीं जम सका है
अनुराग भारद्वाज | 15 जून 2020 | फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स
1975 में जब हिंदुस्तान आपातकाल, ‘दीवार’ और ‘शोले’ के बीच झूल रहा था तो उन्हीं दिनों 25 साल का एक नौजवान इंडोनेशिया में अपने पिता की ख़रीदी हुई ज़मीन पर एक स्टील प्लांट की स्थापना कर रहा था. फ़िल्मकार यश चोपड़ा ने तब अमिताभ के लिए कहा था कि अगर वे अपनी फिल्मों का चयन सही तरीके से करेंगे तो एक दिन किंवदंती बन जायेंगे, और यही हुआ. उधर, 30 साल बाद वह नौजवान दुनिया का तीसरे नंबर का सबसे रईस आदमी बन बैठा तो उसकी उम्र थी 55 साल. उसने भी सही चयन किए थे. हम बात कर रहे हैं सादुलपुर, राजस्थान में जन्मे मारवाड़ी व्यापारी लक्ष्मी निवास मित्तल की जिन्हें दुनिया स्टील किंग के नाम से जानती है.
शुरुआती सफ़र
लक्ष्मी निवास मित्तल उन चंद हिन्दुस्तानियों में से एक हैं जिन्होंने अपने व्यापार का आकार बढ़ाने के लिए अधिग्रहण का सहारा लिया. यूं तो आज मारवाड़ी व्यापारियों ने अपने काम के तौर-तरीक़े बदल लिए हैं पर एक समय था जब अधिग्रहण को वे बहुत अच्छा नहीं मानते थे.
इस बात को समझने के लिए एक क़िस्सा ज़रूरी है. एक मारवाड़ी सेठ की ब्लू चिप कंपनी में एक गुजराती व्यापारी की दिलचस्पी हो गयी. उसने बाज़ार से कंपनी के शेयर खरीदने शुरू कर दिए. मारवाड़ी सेठ ने जब शेयरों में ज़बरदस्त उठापटक देखी तो इसके पीछे की वजह मालूम करवाई. पता चला कि एक गुजराती व्यापारी बाज़ार से कंपनी के शेयर ख़रीद रहा है. सेठ ने उसे फ़ोन करके अपने परिचय में कहा कि वह व्यापार करके मुनाफ़ा कमाने की सोच रखता है, कंपनियां ख़रीदता नहीं है और न ही अपनी कंपनी का अधिग्रहण होने देता है. मारवाड़ी सेठ ने धमकी भी दी कि अगर गुजराती व्यापारी ने उसकी कंपनी के शेयर खरीदे तो वह भी उसकी कंपनी के शेयर उठा लेगा. फ़ोन रखते वक़्त जब उस व्यापारी ने मारवाड़ी व्यापारी का नाम पूछा तो जवाब आया कि घनश्याम दास बिड़ला. वह गुजराती व्यापारी थे धीरूभाई अंबानी और कंपनी थी ‘सेंचुरी कॉटन’. धीरूभाई ने वैसा ही किया जैसा जीडी बाबू ने कहा था. यह बात अलग है कि वक़्त आने पर धीरूभाई ने भी शेयरों के वायदा व्यापार के खेल में मारवाड़ियों को धूल चटा दी थी.
कई मानते हैं कि लक्ष्मी निवास मित्तल ने अधिग्रहण न करने की मारवाड़ी अवधारणा को तोड़ा. 2006 में फोर्ब्स मैगजीन को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि अपने शुरूआती कारोबारी सालों में उन्हें समझ आ गया था कि किसी स्टील प्लांट को शुरुआत से खड़ा करके बड़ा बनाने के लिए एक जिंदगी कम है. इंडोनेशिया में पहला स्टील प्लांट बनाने के साथ उनके इरादे फ़ौलादी हो गए और धड़ाधड़ एक के बाद एक करके वे दुनिया भर में स्टील कंपनियां ख़रीदते गए. जब उन्होंने आर्सेलर कंपनी को ख़रीदा तो वह उनकी व्यापारिक सफलता का चरम था. इससे दुनिया भर की स्टील कंपनियों में हाहाकार मच गया. आर्सेलर मित्तल बनाकर व उसके चेयरमैन और सीईओ बन गए.
हिंदुस्तान में सिक्का अब तक नहीं जम पाया
पिछले डेढ़ दशक से लक्ष्मी निवास मित्तल हिंदुस्तान में पैर ज़माने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन, कामयाब नहीं हो पा रहे. कुछ समय पहले जब दिवालिया हो चुकी एस्सार स्टील बिकने के लिए बाज़ार में आई तो आर्सेलर मित्तल ने भी बोली लगाई. लेकिन सरकार ने कुछ कारणों से उनकी बोली खारिज कर दी. इसके पहले वे ओडिशा और झारखंड में स्टील प्लांट लगाने के बाबत सरकार के साथ क़रार चुके हैं, पर कई दिक्कतों के चलते अब तक इनमें से कोई जमीन पर नहीं उतर पाया है. इससे तंग आकर उन्होंने यह तक कह डाला था कि भारत उनके लिए एक प्राथमिक देश है पर निवेश के हिसाब से यह उनकी प्राथमिकता में नहीं आता है.
फिर कुछ समय बाद लक्ष्मी निवास मित्तल ने बयान दिया कि हिंदुस्तान एक बढ़ता हुआ बाज़ार है और वे इसमें उतरना चाहते हैं, इसलिए कि यह उनका मुल्क है और उन्हें एक भावनात्मक लगाव है. यहां यह बात समझने की है कि मित्तल वे तेज़-तर्रार व्यापारी हैं जो भावनाओं से पहले नफा-नुकसान देखेंगे.
पिछले कुछ सालों से अंतरराष्ट्रीय स्टील बाज़ार में ज़बरदस्त हलचल रही है और चीन का इसमें बहुत बड़ा योगदान है. चीन में जब ओलंपिक खेल हुए थे तो उसने स्टील उत्पादन को कई गुना बढ़ाया था. वहां खपत कम होने के बाद उसने दुनिया भर में औने-पौने दामों पर स्टील बेचा. इससे इसकी कीमतें तेजी से गिरीं. भारत भी इससे अछूता नहीं रह पाया. विश्व में भारत का स्टील के उत्पादन में तीसरा स्थान है. चीन और जापान पहले और दूसरे नंबर पर आते हैं. स्टील का बाजार कुछ ऐसा है कि कुछ अंतराल पर इसमें ज्वार और भाटे आते हैं. 2005 में जब मित्तल दुनिया के तीसरे सबसे रईस व्यक्ति बने थे तब यह सेक्टर उफ़ान पर था. आज भारत में इंफ़्रास्ट्रक्चर में काफी निवेश हो रहा है और स्टील इसमें ज़रूरी इकाई है. इसलिए भारत निवेश के हिसाब से एक अच्छा बाजार है और यही मित्तल की समझ है.
आज के लक्ष्मी निवास मित्तल
विश्व के कुल स्टील उत्पादन में लक्ष्मी निवास मित्तल की 10 फीसदी हिस्सदारी है. यह है रसूख इनका. 60 देशों में कारोबार करने वाली और क़रीब दो लाख कर्मचारियों वाली आर्सेलर मित्तल का सालाना टर्नओवर लगभग साढ़े चार लाख करोड़ रु का है. ख़ास बात यह है कि लक्ष्मी निवास मित्तल उन कंपनियों को खरीदते हैं जो मरणासन्न हो चुकी हैं और फिर अपने प्रबंधन से उन्हें मुनाफ़े में लाते हैं. इसीलिए उन्हें ‘स्टील डॉक्टर’ भी कहते हैं
राजस्थान में एक कहावत है. मारवाड़ी सिर्फ दो ही जगह पैसा खर्च करता है- मकान बनाने में और बेटी की शादी में. लक्ष्मी निवास मित्तल ने 2004 में 863 करोड़ रुपये में लंदन में एक घर ख़रीदा जो उस वक़्त सबसे महंगे घरों में से एक था. 2008 में उनकी बेटी वनिशा मित्तल की शादी दुनिया की सबसे महंगी शादियों में गिनी गई.
विवादों से पुराना याराना
पहला बड़ा विवाद आर्सेलर के अधिग्रहण पर हुआ. मित्तल का मुख्यालय नीदरलैंड में था और आर्सेलर का लक्समबर्ग, फ़्रांस में. आर्सेलर तब मित्तल स्टील्स के बाद दुनिया की दूसरे नंबर की कंपनी थी और मुनाफ़े में थी. ऐसी कंपनी का बेचा जाना उसके कर्मचारियों को गवारा न हुआ. उस पर फ़्रांस की सरकार ने यह कह दिया कि मित्तल स्टील्स का सीईओ एक भारतीय है और उसके मातहत काम करना मुश्किल होगा. फ़्रांस की सरकार को कंपनी के 28,000 कर्मचारियों की भी फ़िक्र थी. हालांकि, मित्तल ने भरोसा दिलाया था कि उनकी नौकरी सलामत रहेगी, फिर भी विवाद हुआ. सालों की मशक्कत के बाद ही मित्तल आर्सेलर के निवेशकों को भरोसा दिला पाए थे.
उधर, भारत में उन्होंने जब उत्तम गलवा स्टील कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेची तो उन पर यह इल्ज़ाम लगा कि उन्होंने संस्थागत निवेशकों से पहले अनुमति नहीं ली. कुछ समय पहले एस्सार स्टील्स खरीदने की कवायद को लेकर भी वे विवादों में घिर गए थे.
चाहे जो हो, लक्ष्मी निवास मित्तल वह शख्स हैं जिन्होंने स्टील सेक्टर में समेकन यानी कई कंपनियों को मिलाकर एक करने की शुरुआत की. वे उन चंद भारतीयों में से भी एक हैं जिन्होंने पहले-पहल मल्टीनेशनल स्टील कंपनी बनायी. शायद उन्होंने रतन टाटा सरीखे उद्योगपतियों को स्टील पर पाना नजरिया बदलने पर मजबूर किया. टाटा संस ने भी कुछ सालों पहले यूरोप की कंपनी कोरस को ख़रीद कर समेकन की पहल को आगे बढ़ाया. लक्ष्मी निवास मित्तल जब कुछ बोलते हैं तो राष्ट्राध्यक्ष सुनते हैं. ब्रिटेन के राजपरिवार के दोस्त के तौर पर पहचाने जाने वाले मित्तल की संपत्ति में हाल के समय में काफ़ी गिरावट आई है पर उनके रसूख में नहीं.
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