Mahatma Gandhi, Narendra Modi

राजनीति | विचार-विमर्श

आप एक साथ मोदी समर्थक और गांधी विरोधी कैसे हो सकते हैं?

नरेंद्र मोदी जितनी शिद्दत और श्रद्धा से महात्मा गांधी का जिक्र करते नजर आते हैं, उनके कई समर्थक उतनी ही शिद्दत और घृणा से गांधीजी को गालियां देते हैं

अंजलि मिश्रा | 03 अक्टूबर 2020 | फोटो: विकीमीडिया कॉमन्स

‘जिस तरह दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और समाज के हर वर्ग ने आज़ादी की लड़ाई में गांधीजी को सहयोग दिया, उसी तरह आज देश भर के लोगों के सहयोग से राम मंदिर निर्माण का यह पुण्य कार्य आरंभ हुआ है.’

‘राम, आज़ादी की लड़ाई के समय बापू के भजनों में अहिंसा और सत्याग्रह की शक्ति बनकर मौजूद थे.’

‘राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने (राम नाम के) इन्हीं सूत्रों, इन्हीं मंत्रों के आलोक में रामराज्य का सपना देखा था. राम का जीवन, उनका चरित्र ही गांधीजी के रामराज्य का रास्ता है.’

ऊपर लिखी हुई ये पंक्तियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण का हिस्सा हैं जो उन्होंने बीती पांच अगस्त को राम मंदिर के भूमि पूजन कार्यक्रम के दौरान दिया था. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जिक्र किया. इसके जरिये उन्होंने यह स्थापित करने की कोशिश की कि वे उन्हीं के बताए रास्ते पर चल रहे हैं और राम मंदिर का निर्माण भी एक ऐसा ही कार्य है. एक ऐसे कार्यक्रम में जिसका आयोजन और वहां मोदीजी की उपस्थिति ही देश के बहुसंख्यक तबके को खुश करने के लिए काफी थे, प्रधानमंत्री द्वारा बार-बार गांधीजी का जिक्र करना ध्यान खींचने वाला था.

यह बात इसलिए भी विशेष हो जाती है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ये बातें बोल रहे थे तब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और संघ के कई अन्य सबसे बड़े पदाधिकारी वहां मौजूद थे. भारतीय राजनीति की थोड़ी भी समझ रखने वाले जानते हैं कि संघ से जुड़े लोग किस कदर गांधी से दूरी बनाकर रखते हैं. इसके अलावा भी जो राजनैतिक हस्तियां, साधु-संत और आम लोग भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल थे, उनमें से कइयों के बारे में यह माना जा सकता है कि वे महात्मा गांधी से कोई खास नजदीकी मानने वाले लोग नहीं होंगे. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बार-बार गांधीजी का नाम लेना उनके आलोचकों के साथ-साथ समर्थकों को भी आश्चर्यचकित करने वाला रहा होगा.

लेकिन यह कोई पहला मौका नहीं था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक तौर पर महात्मा गांधी से नजदीकी दिखाते नज़र आए थे. मोदी, महात्मा गांधी की जयंती और पुण्यतिथि पर तो उन्हें याद करते ही रहे हैं, अपने भाषणों में भी जब-तब उनका नाम लेते रहे हैं. खादी को प्रमोट करने, चरखा कातते हुए तस्वीरें खिंचाने के साथ-साथ वे कई बार साबरमती आश्रम की यात्रा करते भी दिख चुके हैं. यहां तक कि जब भी कोई विदेशी मेहमान भारत आता है तो प्रधानमंत्री मोदी के साथ साबरमती आश्रम की यात्रा ज़रूर करता है. चीन के राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग, जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो समेत अनगिनत राष्ट्रप्रमुख साबरमती आश्रम पहुंचते दिख चुके हैं.

इसके साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच से बोलते हैं तो महात्मा गांधी का जिक्र ज़रूर करते हैं. वे संयुक्त राष्ट्र महासभा में महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान और उनके आज भी प्रासंगिक होने की बात कह चुके हैं. इसके अलावा, गांधीजी की 150वीं जयंती पर जब उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स पर आलेख लिखा तो उसमें यही राय जाहिर की कि क्यों भारत और दुनिया को गांधी की ज़रूरत है. यहां तक कि बीते दिसंबर में जब नया नागरिकता कानून देश भर में विवाद और विरोध की वजह बन रहा था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका बचाव यह कहते हुए भी किया था कि यह गांधीजी की इच्छा थी कि पाकिस्तान के जो हिंदू भारत में बसना चाहते हैं, वे कभी भी यहां आ सकते हैं.

लेकिन यहां पर यह एक अजीब सा विरोधाभास है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले उनके पक्के समर्थक भी महात्मा गांधी के मामले में उनसे एकराय होते नहीं दिखते हैं. उनकी पार्टी के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं और आम समर्थकों तक को राष्ट्रपिता गांधी के प्रति असम्मान जताते हुए, उन्हें अपशब्द कहते हुए, उनसे घृणा करते हुए देखा-सुना जा सकता है. ऐसे कुछ उदाहरणों पर गौर करें तो इस तरह का सबसे ताज़ा मामला भाजपा सांसद अनंत कुमार हेगड़े से जुड़ता है. बीती फरवरी में दिए अपने विवादित बयान में हेगड़े ने महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन को ड्रामा बताया था. इससे कुछ समय पहले, वर्तमान गृहमंत्री और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष, अमित शाह भी महात्मा गांधी को चतुर बनिया कहकर संबोधित कर चुके हैं. वहीं, प्रज्ञा ठाकुर तो संसद में खड़े होकर नाथूराम गोडसे को देशभक्त बता चुकी हैं.

गांधी से जुड़े भाजपा नेताओं के आपत्तिजनक बयानों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय बयान पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा और हरियाणा के कैबिनेट मंत्री अनिल विज के हैं. पात्रा ने जहां पीएम मोदी को देश के ‘बाप’ का संबोधन दे डाला था, वहीं विज ने भारतीय मुद्रा से गांधीजी की तस्वीर हटाए जाने की बात कही थी. इनके बयानों का असर कुछ यूं हुआ कि आज भी जब-तब सोशल मीडिया पर लोग पीएम मोदी को राष्ट्रपिता घोषित किए जाने और नोटों पर से बापू की तस्वीर हटाए जाने की मांग या भविष्यवाणी करते दिखाई दे जाते हैं. इसके साथ-साथ, सोशल मीडिया पर आम समर्थकों द्वारा महात्मा गांधी की हत्या को सही ठहराने वाले अनगिनत कारणों, उनके चरित्र पर उंगली उठाने वाली बातों के साथ-साथ उन्हें हिंदू धर्म का दुश्मन बताए जाने जैसी तमाम बातें अक्सर ही देखने-सुनने को मिलती रहती हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थकों के इस रवैये पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि जैसे वे कई बार उनकी बातें या तो सुनते नहीं हैं, सुनते हैं तो शायद उन्हें गुनते नहीं हैं. या फिर जैसा कि इस लेख के अंत में थोड़ा विस्तार से बताया गया है, उन्हें यह लगता है कि प्रधानमंत्री का गांधीजी को महान मानना-बताना महज़ एक औपचारिकता ही है.

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के समर्थक ऐसा व्यवहार सिर्फ महात्मा गांधी के मामले में कर रहे हों, ऐसा भी नहीं है. वे मोदीजी की इस तरह की दूसरी कुछ बातों को भी अनदेखा करते रहे हैं.

उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देश के अल्पसंख्यक समुदाय को भरोसे में लेने और सही मायनों में सबका साथ-सबका विकास करने सरीखी वाजिब बात की थी तो इस पर उनके कई समर्थक उनसे नाराज दिखे थे. अगर इंटरनेट पर इस्तेमाल की जा रही भाषा की बात करें तो इसमें कोई दोराय नहीं है कि उनके कई समर्थकों ने इस पर प्रधानमंत्री की अपील को पूरी तरह नज़रअंदाज कर दिया है. वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन गौरक्षकों के मामले में भी यह बात दोहराई जा सकती है. राजनीति के कुछ जानकार मानते है कि अपने समर्थकों के अतिवाद को बढ़ावा देने के बाद उन्हें इससे दूर कर पाना किसी बहुत बड़ी चुनौती से कम नहीं है.

मोदी समर्थकों द्वारा महात्मा गांधी को कोसे जाने पर वापस लौटें और थोड़ा इतिहास पर भी गौर करें तो हिंदूवादी और दक्षिणपंथी राजनीति के समर्थक अक्सर गांधीजी की अहिंसक नीतियों को कायरता बताकर उनकी आलोचना करते रहे हैं. महात्मा गांधी दक्षिणपंथ के कट्टर राष्ट्रवादी रवैये, बाहुबली और बहुसंख्यक होने का दावा करने, और खुद को सभ्यता-संस्कृति का रक्षक बताने जैसी बातों की खुलकर आलोचना किया करते थे. लेकिन यहां पर एक अजीब सा विरोधाभास है कि सिर्फ मौखिक आलोचना करने वाले गांधी से तो दक्षिणपंथ के समर्थक बैर पालते हैं लेकिन वे उन सरदार वल्लभ भाई पटेल को अपना बताते हैं जिन्होंने आरएसएस को ‘फोर्सेज ऑफ हेट’ बताते हुए उसे प्रतिबंधित कर दिया था.

गौर करने वाली एक बात यह भी है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सरदार पटेल को गाहे-बगाहे ही याद करते दिखते हैं जबकि महात्मा गांधी का नाम वे लेते ही रहते हैं. यहां तक कि सरकार में आने के बाद उनके बेहद शुरूआती कदमों को याद करें, जिनमें स्वच्छ भारत अभियान शामिल है, या उनकी हालिया योजनाओं पर गौर करें, जो आत्मनिर्भर भारत की बात करती हैं, दोनों का ही आधार गांधीजी की स्वच्छता और स्वावलंबन जैसी सबसे महत्वपूर्ण सीखें हैं. जबकि, सरदार पटेल का जिक्र केवल स्टेच्यू ऑफ यूनिटी तक ही सीमित रहा है. लेकिन इसके बावजूद मोदी समर्थकों के पटेल के प्रति प्यार और गांधी के प्रति नाराजगी में कोई फर्क देखने को नहीं मिला है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचकों का जिक्र करें तो वे अक्सर ही यह सवाल करते दिखते हैं कि क्या गांधी के प्रति उनका प्रेम वास्तविक है? मोदीजी के कुछ आलोचक मानते हैं कि उनके समर्थक, गांधी के मामले में उनसे इसलिए भी एकराय नहीं रखते क्योंकि वे जानते हैं कि यह केवल ऊपर-ऊपर की बात है. ये आलोचक मानते हैं कि अगर ऐसा न होता तो भाजपा के वे नेता जिन्होंने गांधीजी को अपशब्द कहे हैं, उनके खिलाफ पार्टी कोई तो कार्रवाई करती. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने गांधी को लेकर मोदी के इरादों पर आशंका जताते हुए लिखते हैं कि पीएम मोदी की राजनीतिक परवरिश गांधी से नफरत करते हुए हुई है और उनके लिए गांधी एक कारगर मार्केटिंग स्ट्रेटेजी भर हैं. कई अन्य लोग भी नरेंद्र मोदी पर व्यवहार में गांधी के आदर्शों के उलट जाने का आरोप लगाते हैं. लेकिन इन सबके बावजूद महात्मा गांधी के प्रति प्रधानमंत्री मोदी का सार्वजनिक आचरण अनुकरणीय है और इसे कम से कम उनके समर्थकों को तो अपनाना ही चाहिए.

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