विज्ञान-तकनीक | ज्ञान है तो जहान है

बीमारी की हालत में आपको भी पचासों लोग सलाह देते होंगे, लेकिन क्या इन पर भरोसा करना चाहिए?

बीमारी की हालत में आपको सबसे पहले अपने आसपास के कुछ खास ‘अनुभवी’ लोगों से बचने की जरूरत होती है

ज्ञान चतुर्वेदी | 16 मई 2021 | फोटो: पिक्साबे

डॉक्टरी सलाह केवल डॉक्टर नहीं देते. इधर आप भी डॉक्टरी सलाह केवल डॉक्टरों से लेकर संतुष्ट होकर बैठने वालों में से नहीं हैं. आपका भी मन मचलता रहता है कि डॉक्टर के अलावा किसी और से भी अपनी बीमारी की बात की जाए और मान लो कि आप न भी करें परंतु कई ऐसे जबरिया, उत्साही स्वंयसेवकों की अदमनीय भावना से लबरेज लोग भी होते हैं जो आपकी बीमारी का पता चलते ही आपके पते पर पहुंच जाते हैं. उनके पास आपकी बीमारी को लेकर जमाने भर के प्रामाणिक अनुभव भी होते हैं. उनके पास होम्योपैथी से लेकर इलेक्ट्रोमैग्नेटोथैरेपी जैसी कई चमत्कारिक विधियों के विषय में कमाल की सूचनाएं होती हैं. फिर अखबारों में तो चमत्कारिक इलाज के विज्ञापन आपका आह्वान करते ही हैं, पड़ोसी होते ही हैं और दूर के रिश्तेदार भी होते हैं, जो डॉक्टरी सलाह देने के लिए कभी भी पास आ सकते हैं.

डॉक्टरी एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां किसी भी समस्या का अंतिम उत्तर अभी तक विज्ञान नहीं खोज पाया है. तभी तो निरंतर खोज और प्रयोग के काम चल रहे हैं. ये लोग बीमारी के बारे में आज कुछ कहते हैं, बाद में कुछ और. इसी कारण इनकी तुलना में आपको वह आदमी कई बार बड़ा विश्वसनीय प्रतीत होता है जो आपकी बीमारी के बारे में ऐसी ‘पत्थर की लकीर’ पेश करता है जो सौ साल बाद भी जमीन में गड़ी रहे तो उसके बाद भी वैसी की वैसी ही रहती है.

मेरी सलाह है कि इन सलाहकारों तथा इनकी सलाहों से बचकर रहिए. मेडिकल साइंस समुद्र की तरह अथाह है. यहां अच्छे से अच्छे डॉक्टर तक, पूरे समर्पण से इलाज करते हुए भी जानते तथा मानते हैं कि अभी उन्हें बहुत कुछ सीखना है, वहां आप उन लोगों की उथली बातों में पड़ जाते हैं. मैंने कितने ही रोगियों को देखा है जो कभी एक दिन लाइलाज स्थिति में आते हैं और पूछो तो बताते हैं, ‘सर, बस, उनने कहा था कि तुम तो ‘यह’ ट्राई करो. तो मैं सारी दवाइयां बंद करके बस यह ले रहा था. बताइए! क्या कहें?’ बहरहाल मैं आपको बताऊंगा कि किन सलाहकारों से आपको दूर रहना चाहिए.

पुराने मरीज से बचो : किसी बीमारी का बहुत पुराना मरीज धीरे-धीरे स्वयं को उस बीमारी का एक्सपर्ट (विशेषज्ञ) टाइप मानने लग सकता है. बहुत से तो स्वयं को डॉक्टर से भी ज्यादा ज्ञानी मानने लगते हैं. क्योंकि डॉक्टर तो किताबों से ‘पढ़-पढ़ा’ कर बता रहा है परंतु हम तो ‘भोगा हुआ यथार्थ’ बयान कर रहे हैं. वे बता सकते हैं कि नीम चबाने या करेले उदरस्थ करने से डायबिटीज की बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है (जबकि उनकी खुद की डायबिटीज चल रही है और अच्छी-खासी चल रही है) तथा सलकनपुर के बाबा की बूटी से मिर्गी का शर्तिया इलाज होता है.

‘घर के डॉक्टर’ से बचो : घर के डॉक्टरों की श्रेणी में दो तरह के डॉक्टर आते हैं. बड़ी तादाद तो उनकी है जो कभी डॉक्टरी पढ़ रहे हैं. ‘साहब, मेरा बेटा डॉक्टरी के तीसरी साल में है, वो बता रहा था कि…’ ऐसा कहकर मरीज को कोई भी ऊटपटांग बात गर्वपूर्वक प्रस्तुत कर सकता है. घरवालों को उन पर बड़ा भरोसा होता है. होना ही है. ‘बड़ा होशियार है साहब. तभी तो डॉक्टरी में चला गया.’ ऐसी बातें. तो यह बात जानें कि वह कितना भी होशियार हो पर अभी उसे ‘डॉक्टर’ बनने में समय लगने वाला है. उसकी सलाह पर आंख मूंदकर न चलें.

फिर दूसरी तरह के डॉक्टर वे हैं जो आपके रिश्तेदार हैं, दूर बैठे हैं. कदाचित उस बीमारी के एक्सपर्ट नहीं हैं परंतु मात्र इस घर के दामाद, ताऊ, समधी या साला होने के कारण इस घर के लिए सर्वज्ञाता की पोस्ट पर हैं. इनको ठीक से न भी पता हो, ये उस बीमारी के बारे में बस उड़ता-उड़ता, लगभग अफवाह टाइप ही जानते हों तब भी अपनी ‘सर्वज्ञाता’ की छवि की रक्षा हेतु वहीं से कुछ भी सलाह, इतने आत्मविश्वास से दे सकते हैं कि क्या कहिए. बस, इनका आप कुछ नहीं कर सकते. बस, बच कर रहिए उनसे.

अस्पताल में जो कर्मचारी हैं वे सभी लोग डॉक्टर नहीं हैं, उनकी सलाह से बचो : ‘सर आप तो बता रहे हैं कि यह ईसीजी ठीक है पर हमने ईसीजी करने वाले टेकनीशियन से तभी पूछा था. वो बता रहे थे कि कुछ खराबी दिखती तो है?’ मरीज ऐसा कहता है कई बार. मैं यही कहता हूं कि तुमने उससे पूछा ही क्यों. अपनी बीमारी के विषय में आप कई बार अस्पताल की नर्स, फार्मासिस्ट, ड्रेसर से लेकर वॉर्डबॉय तक से पूछते रहते हैं. पर बीमारी क्या है? कब तक ठीक होगी? आगे क्या करना है? आदि प्रश्न डॉक्टर से ही पूछें. दूसरों से पूछकर भ्रम न पालें.

मेडिकल शॉपिंग से बचो : कई लोग मानो डॉक्टरों की परीक्षा लेने की मुहिम पर निकले रहते हैं. वे अपनी बीमारी के कारण पचासों डॉक्टरों को दिखाते रहते हैं. अपने शहर के डॉक्टरों को दिखाते रहते हैं. अपने शहर के डॉक्टरों को निबटाने के साथ-साथ वे दूसरे शहर के डॉक्टरों को भी नहीं छोड़ते. ‘शादी में इंदौर गए थे तो वहां फलाने को भी दिखा दिया’ कहकर लोग मेरे समक्ष उस डॉक्टर के कागजात चुनौती की भांति पेश करते हैं. वे घूमने के लिए आगरा जाएं, तो ताजमहल को एक बार चूक भी जाएं पर वहां के किसी मशहूर डॉक्टर की राय लेना कभी नहीं भूलते. ‘हर दुकान’ पर घूम-घूमकर ‘मेडिकल शॉपिंग’ करने का आपका यह शौक, जिसे आप जज्बा भी कह सकते हैं अंतत: आपको कहीं का भी नहीं छोड़ता. सो यह न करें.

मेरे इस लेख का लब्बोलुआब यह है कि एक भरोसेमंद डॉक्टर को चुनने के बाद उसी पर भरोसा करें, इधर-उधर की अपरिचित तथा गलत सलाहें आपकी बीमारी को बढ़ाएंगी ही, यह तय जान लें.

>> सत्याग्रह को ईमेल या व्हाट्सएप पर प्राप्त करें

>> अपनी राय mailus@satyagrah.com पर भेजें

  • आखिर कैसे एक जनजातीय नायक श्रीकृष्ण हमारे परमपिता परमेश्वर बन गए?

    समाज | धर्म

    आखिर कैसे एक जनजातीय नायक श्रीकृष्ण हमारे परमपिता परमेश्वर बन गए?

    सत्याग्रह ब्यूरो | 19 अगस्त 2022

    जवाहरलाल नेहरू अगर कुछ रोज़ और जी जाते तो क्या 1964 में ही कश्मीर का मसला हल हो जाता?

    समाज | उस साल की बात है

    जवाहरलाल नेहरू अगर कुछ रोज़ और जी जाते तो क्या 1964 में ही कश्मीर का मसला हल हो जाता?

    अनुराग भारद्वाज | 14 अगस्त 2022

    प्रेम के मामले में इस जनजाति जितना परिपक्व होने में हमें एक सदी और लग सकती है

    समाज | विशेष रिपोर्ट

    प्रेम के मामले में इस जनजाति जितना परिपक्व होने में हमें एक सदी और लग सकती है

    पुलकित भारद्वाज | 17 जुलाई 2022

    संसद भवन

    कानून | भाषा

    हमारे सबसे नये और जरूरी कानूनों को भी हिंदी में समझ पाना इतना मुश्किल क्यों है?

    विकास बहुगुणा | 16 जुलाई 2022