भोजन

विज्ञान-तकनीक | सिर-पैर के सवाल

क्या सुबह नाश्ता करना भी वजन नियंत्रित करने में कारगर साबित हो सकता है?

सवाल जो या तो आपको पता नहीं, या आप पूछने से झिझकते हैं, या जिन्हें आप पूछने लायक ही नहीं समझते

अंजलि मिश्रा | 29 अप्रैल 2021 | फोटो : पिक्साबे

दुनियाभर में यह कहावत मशहूर है कि सुबह का खाना राजाओं जैसा, दोपहर का गृहस्थों जैसा और रात का कंगालों जैसा होना चाहिए. सदियों पुरानी इस कहावत के साथ-साथ आधुनिक डायटीशियन से लेकर हमारे आसपास के ज्यादातर लोगों की राय है कि सुबह का नाश्ता करने से वजन संतुलित रहता है, लेकिन क्या यह पूरी तरह से सच है? और अगर सच है भी तो फिर यह सवाल है कि कैसे सुबह-सुबह ढेर सारा खाना खा लेना आपको पतला बनाए रखने में मदद कर सकता है क्योंकि बाकी मौकों पर तो यह माना जाता है कि जितना अधिक खाया जाएगा वजन उतना ही अधिक होगा. सिर-पैर के सवाल में आज इसी बात की पड़ताल करते हैं कि नाश्ता आपको पतला रहने में मदद करता है, यह बात तथ्य है या भ्रम.

जैसा कि सब जानते हैं हमें हर काम करने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है. यहां तक कि खाना खाने और उसे पचाने के लिए भी हमें ऊर्जा की जरूरत होती है. खाने को पेट यानी आमाशय में स्टोर करने, फिर उसे आमाशय से छोटी आंत तक ले जाने आदि की इस प्रक्रिया में ऊर्जा खर्च होती है. यह प्रक्रिया वैज्ञानिक शब्दावली में डाइट-इनड्यूस्ड थर्मोजेनेसिस (डीओटी) कहलाती है. यहां पर हम इस बात का भी जिक्र करते चलते हैं कि किसी जीव के शरीर में होने वाली जीवन के लिए जरूरी रासायनिक प्रक्रियाएं मिलकर मेटाबॉलिज्म कहलाती हैं. डीओटी, एक व्यक्ति का बेसिक मेटाबॉलिज्म रेट और दिनभर में उसके द्वारा की जाने वाली फिजिकल एक्टिविटीज को मिलाकर तय होता है कि संबंधित व्यक्ति को कितनी कैलोरीज ऊर्जा की जरूरत है.

सुबह का नाश्ता शरीर में डीओटी की प्रक्रिया को शुरू कर देता है, जिससे मेटाबॉलिज्म की दर बढ़ जाती है. सुबह से मेटाबॉलिज्म तेज होने से खाया हुआ खाना जल्दी पच जाता है और दोपहर के खाने का वक्त होने तक एक बार व्यक्ति को फिर से भूख महसूस होने लगती है. दोपहर में खाया हुआ खाना भी पाचन की तेज चल रही प्रक्रिया में शामिल हो जाता है और ऊर्जा देने लगता है. इससे व्यक्ति दिनभर ऊर्जावान महसूस करता है. ऐसा ही शाम या रात को खाए गए खाने के साथ भी होता है.

एक अमेरिकी संस्था द्वारा किए गए शोध के मुताबिक रोजाना नाश्ता करने वाले लोग, नाश्ता न करने वालों की तुलना में ज्यादा कैलोरी खर्च करते हैं. ज्यादा कैलोरी इकट्ठा न होने से उनके मोटे होने का खतरा अपेक्षाकृत कम होता है. इसकी वजह भी मेटाबॉलिज्म का तेज होना ही है. यह शोध बताता है कि जो लोग एक साथ ढेर सारी कैलोरी लूज करना चाहते हैं, वे कभी-कभार नाश्ता करना छोड़ सकते हैं. ऐसा होने पर शरीर अपनी आदत के अनुसार तेजी से खाने को पचाएगा और ऊर्जा खर्च होगी. लेकिन ऐसा नियमित रूप से करना सही नहीं है. जो लोग डाइटिंग करते हैं वे शुरूआत के कुछ दिन तो बेहद तेजी से वजन कम कर पाते हैं लेकिन धीरे-धीरे वे थकान और कमजोरी महसूस करने लगते हैं.

असल में मानव शरीर किसी बहुत अच्छी मशीन की तरह काम करता है. जब सुबह शरीर को नाश्ता नहीं मिलता तो इसमें डीओटी प्रक्रिया शुरू ही नहीं होती और मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है. मानव शरीर में यह व्यवस्था उसकी सर्वाइवल क्षमता बढ़ाने के लिए होती है ताकि अगर उसे किन्हीं कारणों से लंबे समय तक भोजन न मिले तो भी वह ज्यादा दिनों तक जीवित रह सके. नाश्ता न मिलने पर शरीर इसी रक्षात्मक अवस्था में चला जाता है और ऊर्जा की बचत करने लगता है. इसके कारण दोपहर में खाया हुआ खाना भी देर से पचता है और ऊर्जा या कैलोरी संग्रहित होती रहती है. यही इकट्ठी हो रही कैलोरी बाद में वजन के बढ़ने की वजह बनती है. इन तथ्यों-तर्कों के आधार पर कहा जा सकता है कि सुबह का नाश्ता शरीर को पतला करने या वजन को संतुलित बनाए रखने में कारगर होता है.

>> सत्याग्रह को ईमेल या व्हाट्सएप पर प्राप्त करें

>> अपनी राय mailus@satyagrah.com पर भेजें

  • आखिर कैसे एक जनजातीय नायक श्रीकृष्ण हमारे परमपिता परमेश्वर बन गए?

    समाज | धर्म

    आखिर कैसे एक जनजातीय नायक श्रीकृष्ण हमारे परमपिता परमेश्वर बन गए?

    सत्याग्रह ब्यूरो | 19 अगस्त 2022

    जवाहरलाल नेहरू अगर कुछ रोज़ और जी जाते तो क्या 1964 में ही कश्मीर का मसला हल हो जाता?

    समाज | उस साल की बात है

    जवाहरलाल नेहरू अगर कुछ रोज़ और जी जाते तो क्या 1964 में ही कश्मीर का मसला हल हो जाता?

    अनुराग भारद्वाज | 14 अगस्त 2022

    प्रेम के मामले में इस जनजाति जितना परिपक्व होने में हमें एक सदी और लग सकती है

    समाज | विशेष रिपोर्ट

    प्रेम के मामले में इस जनजाति जितना परिपक्व होने में हमें एक सदी और लग सकती है

    पुलकित भारद्वाज | 17 जुलाई 2022

    संसद भवन

    कानून | भाषा

    हमारे सबसे नये और जरूरी कानूनों को भी हिंदी में समझ पाना इतना मुश्किल क्यों है?

    विकास बहुगुणा | 16 जुलाई 2022