लॉकडाउन

विज्ञान-तकनीक | कोरोना वायरस

दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक कोरोना वायरस से लड़ाई में किस रणनीति को सबसे कारगर मान रहे हैं?

और उस रणनीति की वजह से कोरोना संक्रमण हो जाने पर हमें किस तरह की रणनीति अपनानी चाहिए?

अंजलि मिश्रा | 20 अक्टूबर 2020 | फोटो: फ्लिकर

भारत में अनलॉक 5.0 शुरू हो चुका है. लॉकडाउन खोलने के इस पांचवे चरण में पिछले दिनों देश भर के सिनेमाघर खुल चुके हैं. बेशक, अभी इन्हें आधी क्षमता के साथ ही खोला जा रहा है, ऑनलाइन बुकिंग को वरीयता देने के चलते इनके टिकट काउंटर लगभग बंद से ही हैं और इनमें खाने-पीने की सिर्फ पैकेटबंद चीजें ही फिलहाल परोसी जा रही हैं. थर्मल जांच, मास्क पहनने की अनिवार्यता और आपस में छह फीट की दूरी जैसी कई और शर्तें भी इनसे जुड़ी हुई हैं. लेकिन फिर भी सिनेमाघरों में लोगों के लौटने को ‘न्यू-नॉर्मल’ की तरफ बढ़ा एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है. इससे जुड़ी एक अच्छी खबर यह है कि न्यू-नॉर्मल यानी कुछ शर्तों के साथ सामान्य होती परिस्थितियों की तरफदारी अब सरकारों के साथ-साथ दुनिया के सबसे अच्छे डॉक्टर भी करते दिख रहे हैं.

हाल ही में दुनिया भर के 15 हज़ार से अधिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए अपनाये जा रहे लॉकडाउन जैसे उपायों की खामियों और उन्हें दूर करने के तरीके बताने वाले एक घोषणापत्र पर दस्तखत किए हैं. ग्रेट बैरिंग्टन डिक्लरेशन कहा जा रहा यह पत्र लॉकडाउन के चलते होने वाले आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक और मानसिक नुकसानों की बात करता है और सलाह देता है कि अब वह समय आ गया है, जब कुछ सुरक्षा उपायों के साथ दुनिया को सामान्य होने की तरफ कदम बढ़ाने शुरू कर देने चाहिए.

अक्टूबर के पहले हफ्ते में अमेरिका के ग्रेट बैरिंग्टन में जारी किए गए इस घोषणापत्र को दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य वैज्ञानिकों, महामारी विशेषज्ञों और कोरोना त्रासदी से जुड़ी रणनीतियां बना रहे जानकारों ने तैयार किया है. अपने हस्ताक्षरों के साथ ग्रेट बैरिंग्टन डिक्लरेशन को जारी करने वालों में मुख्य रूप से डॉ मार्टिन कलड्रॉफ, प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन – हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, डॉ सुनेत्रा गुप्ता, महामारी विशेषज्ञ – ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और डॉ जय भट्टाचार्य, महामारी विशेषज्ञ – स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी शामिल हैं. इनके अलावा, कई प्रतिष्ठित यूरोपीय और अमेरिकी शिक्षण और शोध संस्थानों के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी इस पर दस्तखत किए हैं.

वैज्ञानिक इस घोषणापत्र में कहते हैं कि ‘कोरोना वायरस के प्रति हमारी समझ लगातार बढ़ रही है. अब हम जानते हैं कि कोविड-19 से मौत का खतरा जितना उम्रदराज लोगों को है, उतना युवाओं को नहीं है. बच्चों को भी कोरोना वायरस, एनफ्लुएंजा जैसे वायरसों की तुलना में कम प्रभावित करता है. इसके साथ ही जैसे-जैसे लोगों में इसके लिए प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) विकसित हो रही है, सभी के लिए संक्रमण का खतरा भी कम होता जा रहा है.’ यह पत्र बताता है कि कोरोना संक्रमण के मामलों में एक बड़े तबके में रिकवरी के बाद अब दुनिया हर्ड इम्युनिटी की तरफ बढ़ रही है और धीरे-धीरे दुनिया की सारी जनसंख्या इस ओर बढ़ रही है और कोरोना वायरस का वैक्सीन इस प्रक्रिया को तेज़ कर सकता है.

हर्ड इम्युनिटी क्या होती है, इस पर थोड़ी बात करें तो जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है यह किसी हर्ड यानी झुंड के सदस्यों में मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता है. किसी जनसमूह में हर्ड इम्यूनिटी होने से मतलब इसके एक बड़े हिस्से – आम तौर पर 70 से 90 फीसदी लोगों – में किसी संक्रामक बीमारी से लड़ने की ताकत विकसित हो जाना है. यानी, ये लोग बीमारी के लिए इम्यून हो जाते हैं. जैसे-जैसे इम्यून लोगों की संख्या बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे संक्रमण फैलने का खतरा कम होता जाता है. इससे उन लोगों को भी परोक्ष रूप से सुरक्षा मिल जाती है जो उस बीमारी से इम्यून नहीं हैं. इसे किसी जनसमूह की सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कहा जा सकता है. यह प्रतिरोधक क्षमता हमारे शरीर में या तो संक्रमण का शिकार होने पर विकसित होती है या फिर वैक्सीन के जरिए पैदा की जा सकती है.

ग्रेट बैरिंग्टन डिक्लरेशन पर लौटें तो इसमें यह कहा गया है कि हर्ड इम्युनिटी तक पहुंचने से पहले हमें इस तरह की नीति अपनानी होगी जिससे लॉकडाउन की वजह से होने वाले सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक और मानसिक नुकसान और कोविड-19 से होने वाली मौतें कम से कम हों. इन वैज्ञानिकों के मुताबिक प्रतिबंधों की वजह से दुनिया भर में बच्चों को जरूरी टीके नहीं लग पा रहे हैं और स्कूल न जा पाना भी उनके साथ एक बहुत बड़ा अन्याय ही है. इसके अलावा लॉकडाउन जैसी नीतियों के कारण कैंसर, हृदय और मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों का इलाज भी ठीक से नही हो पा रहा है या लोग नई मानसिक समस्याओं के शिकार हो रहे हैं. ऊपर से कोरोना वायरस के चलते लोगों की आर्थिक समस्याएं भी बढ़ ही रही हैं जो बाकी हर तरह की समस्याओं को और भी गंभीर बना रही हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में ऐसा नुकसान देखने को मिलेगा जिसकी भरपायी कर पाना संभव नहीं होगा. जाहिर सी बात है कि गरीब तबकों के मामले में यह सबसे भयावह होगा.

वैज्ञानिक इससे निपटने के तरीके को ‘फोकस्ड प्रोटेक्शन’ का नाम देते हैं. इनके मुताबिक इस समय जिन्हें कोरोना वायरस से गंभीर नुकसान होने का खतरा सबसे कम है, वे सामान्य जीवन की तरफ कदम बढ़ा सकते हैं. मसलन ऐसे लोग ऑफिस जा सकते हैं, बच्चे स्कूल जा सकते हैं और वहां एक्सट्राकरीक्युलर एक्टिविटीज यानी कि खेल आदि में भाग ले सकते हैं. इसके अलावा सारे रेस्टरॉन्ट और कारोबार भी खोले जा सकते हैं. बेशक, यह सामान्य थोड़ा सा अलग भी होगा. इस दौरान लोगों को मास्क पहनने, दूरी बरतने और बीच-बीच में हाथ धोते या सैनिटाइज करते रहने जैसी सफाई की साधारण आदतों को अपनाना होगा. इसके साथ ही, थोड़ी भी तबीयत खराब होने पर घर पर ही रहने जैसी सावधानी बरतना भी ज़रूरी है. वैज्ञानिकों को मानना है कि इससे न केवल समाज को हो रहे कई नुकसान होने से बच जाएंगे बल्कि यह तेजी से हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने में भी सहायक होंगा.

वहीं, जिन लोगों पर कोरोना संक्रमण का सबसे ज्यादा असर हो सकता है उनके लिए अधिक से अधिक सुरक्षा उपायों को अपनाना चाहिए. कहने का मतलब यह कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए बनाई जा रही रणनीतियों में उन लोगों पर सबसे ज्यादा फोकस होना चाहिए जो जिन्हें इससे सबसे ज्यादा खतरा हो. इसके लिए वैज्ञानिक कुछ उपाय भी सुझाते हैं. मसलन, अस्पतालों में ऐसे लोगों की मदद के लिए कोरोना संक्रमण से उबर चुके यानी इम्युनिटी हासिल कर चुके स्टाफ की ड्यूटी लगाई जाए. बाकी दूसरे स्टाफ और विजिटर्स की जितना हो सके टेस्टिंग की जानी जरूरी है. सावधानी के तौर पर हर दिन नए स्टाफ को ड्यूटी पर लगाए जाने से भी बचा जा सकता है. इसी तरह, बुजुर्ग लोगों को घरों से निकलने की ज़रूरत कम से कम पड़े इसके लिए उनके घर पर ही खाने-पीने का सामान और दवाएं पहुंचाने के इंतजाम किए जाने चाहिए. वृद्धजनों को तब तक अपने परिवार के सक्रिय सदस्यों से दूर रहना होगा जब तक उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित न हो जाए. इस दौरान अगर वे अपने परिवार के दूसरे सदस्यों से मिलना चाहें तो घर में मिलने के बजाय उनसे बाहर मिल सकते हैं.

वैज्ञानिकों का एक बड़ा तबका ग्रेट बैरिंग्टन डिक्लरेशन को सही और एकमात्र उपाय ठहरा रहा है लेकिन कई स्वास्थ्य विज्ञानी इस पर तरह-तरह के सवाल भी उठा रहे हैं. कई वैज्ञानिक मानते हैं कि यह पत्र न तो सटीक है और न ही वैज्ञानिक सोच वाला है. इनके मुताबिक इसे लागू करना लोगों को मौत के मुंह में ढकेलने वाला साबित हो सकता है. इसके पीछे वे तर्क देते हैं कि जहां टेस्टिंग और ट्रेसिंग बहुत कुशलता के साथ नहीं हो पा रही है या वे लोग जिनमें किसी लक्षण के बगैर संक्रमण मौजूद है, उनका स्वस्थ लोगों से मिलना संक्रमण और मृत्यु की दर बढ़ने का कारण बन सकता है. कुछ वैज्ञानिक इस तरफ भी ध्यान खींचते हैं कि इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण अभी तक नहीं मिल पाए हैं कि एक बार संक्रमण हो जाने के बाद किसी व्यक्ति में उसके लिए एंटी-बॉडीज विकसित हो ही जाते हैं. कुछ जानकारों का तो यहां तक कहना है कि सरकारों के लिए बगैर किसी वैक्सीन के हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने के बारे में सोचना इस बात की तरफ इशारा करता है कि उन्हें लोगों की जान की परवाह नहीं है. इनके मुताबिक इस तरह की रणनीति का एक मतलब लोगों को मरने दो भी हो सकता है. क्योंकि बगैर वैक्सीन के हर्ड इम्युनिटी का मतलब है कि दुनिया के 70 फीसदी लोगों को संक्रमण का शिकार होना पड़ेगा और ऐसा होने पर मौतों के आंकड़े की कल्पना करना भी भयावह है.

लेकिन इन तमाम आपत्तियों के बावजूद ग्रेट बैरिंग्टन डिक्लरेशन में सुझाए गए उपायों को ही इस समय कोरोना वायरस से निपटने का सबसे तार्किक रास्ता माना जा रहा है. इसकी वजह है कि यह कोरोना वायरस की समस्या के साथ-साथ इससे निपटने के लिए अब तक अपनाये जा रहे उपायों से पैदा होने वाली गंभीर समस्याओं की भी बात करता है. इसी वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी हाल ही में लॉकडाउन पर अपने पिछले बयानों से पूरी तरह पलटते हुए कहा है कि ‘लॉकडाउन से हो रहे नुकसान इतने बड़े हैं कि उन्हें अब नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है. यह गरीब और असहाय लोगों की हालत को और खराब करने वाला है. डब्ल्यूएचओ किसी भी तरह से लॉकडाउन को कोरोना वायरस से लड़ने की सही रणनीति नहीं मानता है. लॉकडाउन की उपयोगिता बस इतनी ही थी कि इसे लागू कर हम महामारी से लड़ने की अपनी रणनीति बनाने के लिए थोड़ा समय पा सकें.’ डब्ल्यूएचओ के इस बयान के अलावा अमेरिका और कई यूरोपीय देश भी ग्रेट बैरिंग्टन डिक्लरेशन को गंभीरता से लेते दिख रहे हैं और आगे की रणनीति में इसके सुझावों को शामिल किए जाने पर चर्चा कर रहे हैं.

जाहिर सी बात है कि अगर सरकारें ग्रेट बैरिंग्टन डिक्लरेशन के मुताबिक चलती हैं तो उन्हें सबसे ज्यादा असुरक्षित लोगों के लिए उचित व्यवस्था करने के साथ-साथ बड़ी संख्या में संक्रमण के शिकार लोगों के बारे में भी सोचना होगा. लेकिन इस मामले में हम भी सरकार की और अपनी मदद कर सकते हैं.

फोकस्ड प्रोटेक्शन का विचार आने के पहले भी, संक्रमण के लगातार बढ़ते मामलों और लॉकडाउन में ढील मिलने से बाहर निकलने वाले लोगों को यह सलाह दी जा रही थी कि वे सुरक्षा और सफाई के उपायों को अपनाने के साथ-साथ इस बात की भी तैयारी रखें कि अगर संक्रमण हो जाए तो क्या करना है. इसमें बगैर अस्पताल में भर्ती हुए इलाज कैसे होगा, इस बात की जानकारी भी शामिल है. फोकस्ड प्रोटेक्शन की रणनीति अपनाने की स्थिति में इस तरह की सावधानी और तैयारियां रखने की जरूरत कहीं ज्यादा हो जाएगी. संक्रमण के लिए तैयार रहने और घर पर इलाज की इस सलाह के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि बढ़ते मामलों के बीच अस्पताल के बेड्स और वेंटिलेटर्स उन मरीजों के लिए खाली रखे जा रहें हैं जिन्हें इनकी सबसे ज्यादा ज़रूरत है. ऐसे में हल्के-फुल्के लक्षणों के साथ संक्रमित होने वाले स्वस्थ लोगों को अस्पताल में रखने की आवश्यक्ता नहीं है. वह कुछ छोटे स्वास्थ्य उपकरण और उतने ही छोटे दूसरे उपाय अपनाकर कोरोना वायरस से समाज और अपनी लड़ाई को काफी आसान बना सकता है.

1. थर्मोमीटर – गले का बंद होना और तेज बुखार आना कोरोना वायरस के सबसे सामान्य लक्षणों में से एक है. इसलिए डॉक्टर्स घर पर थर्मोमीटर रखने की सलाह देते हैं ताकि शरीर के तापमान से अंदाज़ा लगाया जा सके कि यह सामान्य बुखार है या कोरोना संक्रमण का एक लक्षण. इसके साथ ही, इलाज के दौरान भी कोरोना संक्रमण की गंभीरता और मरीज़ का रिकवरी रेट समझने के लिए डॉक्टर तापमान को लगातार मॉनीटर करते रहते हैं. इसलिए घर पर आइसोलेट होने वाले मरीजों को दिन में चार बार अपना तापमान दर्ज करने की सलाह दी जाती है. ऐसा करने के लिए हम कॉन्टेक्टलेस थर्मोमीटर खरीद सकते हैं ताकि कोई दूसरा भी आसानी से हमारे शरीर का ताममान नाप सके.

2. पल्स ऑक्सीमीटर – कोरोना संक्रमितों में खतरे की स्थिति तब बन जाती है जब उनके शरीर में ऑक्सीजन का स्तर गिरने लगता है. इसके लिए डॉक्टर्स संक्रमितों को कम से कम 14 दिन तक रोजाना शरीर में ऑक्सीजन का स्तर मापने के लिए कहते हैं. इसके लिए पल्स ऑक्सीमीटर का इस्तेमाल किया जाता है जो आसानी से बाज़ार में या ऑनलाइन स्टोर्स पर लगभग एक हजार रुपये में उपलब्ध है. डॉक्टर सलाह देते हैं कि अगर मरीज छह-सात मिनट की चहलकदमी के बाद शरीर में ऑक्सीजन का स्तर मापता है तो सटीक रीडिंग मिलने की संभावना ज्यादा होती है. इस स्थिति में अगर कभी ऑक्सीजन का लेवल 92 फीसदी से नीचे जाता है तो मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए.

3. स्पाइरोमीटर – कुछ डॉक्टर घरों में स्पाइरोमीटर रखने की सलाह भी देते हैं. स्पाइरोमीटर, एक खिलौनानुमा उपकरण होता है जिसमें पाइप से हवा अंदर खींचकर गेंद को ऊपर पहुंचाना होता है. इस तरह जोर से करने पर फेफड़ों की कसरत होती है. डॉक्टर्स स्वस्थ लोगों को भी स्पाइरोमीटर का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं लेकिन इसमें यह सावधानी रखी जानी चाहिए कि परिवार के हर सदस्य के पास अपना अलग-अलग स्पाइरोमीटर हो. इसके विकल्प के तौर पर गुब्बारे में हवा भरने को भी आजमाया जा सकता है.

इन उपकरणों से लगातार मॉनीटरिंग करने के साथ डॉक्टर सबी को जीवनशैली से जुड़े कुछ बदलाव करने का मशविरा भी देते हैं. जैसे कि संतुलित भोजन लेना और खाने में विटामिन-सी और विटामिन-डी की मात्रा को बढ़ाना ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो सके. इसके साथ ही, वे शराब और सिगरेट से दूरी बनाने और ठंडी चीजों का सेवन न करने की बात भी कहते हैं. इलाज के दौरान योगासन, ध्यान और प्राणायाम का सहारा लेकर तनाव को नियंत्रित रखना भी जरूरी बताया जाता है. इसके अलावा, कोरोना संक्रमितों को पेट के बल सोने की सलाह भी दी जाती है. इस सलाह के पीछे कईवैज्ञानिक शोध हैं जिनमें पाया गया है कि पेट के बल सोने से फेफड़ों में अधिक ऑक्सीजन पहुंच पाती है. ऐसा करने से शरीर में आक्सीजन का स्तर नहीं गिरता है और मरीज अपेक्षाकृत तेजी से कोरोना संक्रमण से रिकवर कर पाता है.

जानकार कहते हैं कि इन उपायों को अगर स्वस्थ लोग भी अपनाते हैं तो कोरोना संक्रमण का खतरा तो कम होता ही है लेकिन अगर कभी संक्रमण हो भी जाए तो उसके भयावह असर की आशंका कम हो जाती है. घर पर पैरासीटामॉल या आइबुप्रोफेन जैसी दवाओं को रखना भी एक समझदार कदम हो सकता है. इन दवाओं को संक्रमण के लक्षण उभरने पर उन्हें नियंत्रित करने के फौरी उपाय के तौर पर अपनाया जा सकता है.

इन सबके अलावा, स्वास्थ्य सलाहकार होम आइसोलेशन के मामलों में क्वॉरंटीन पीरियड को 14 के बजाय 20 दिन से ज्यादा रखने की सलाह देते हैं. उनके मुताबिक ऐसा करने पर न सिर्फ मरीज कोरोना संक्रमण से निजात पा सकेगा बल्कि इसके बाद कुछ समय और आराम मिलने से वह शारीरिक कमजोरी से भी बाहर आ सकेगा. इस दौरान संक्रमित के साथ उसके परिजनों को भी होम क्वॉरंटीन की सलाह दी जाती है. ऐसा करने से अगर मरीज के किसी परिजन तक संक्रमण पहुंचता भी है तो दो हफ्तों के समय में लक्षण उभरने पर उनका तुरंत इलाज किया जा सकता है.

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