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क्या साधारण सर्दी-जुकाम आपको कोरोना वायरस से बचा सकता है?

सर्दी-ज़ुकाम

अक्सर माना जाता है कि वायरल संक्रमण की वजह कोई एक वायरस होता है. लेकिन सच यह है कि रोज ही हमारा संपर्क कई वायरसों से होता है और एक ही समय में दो या इससे ज्यादा वायरसों से संक्रमित होना एक आम बात है. इस स्थिति को को-इंफेक्शन यानी सहसंक्रमण कहते हैं.

हमारे गले और सांस की नली में कोशिकाओं की जो परत होती है वह हमारे आसपास के माहौल के संपर्क में सबसे पहले आती है. इस तरह वह श्वसन तंत्र पर हमला करने वाले तमाम वायरसों का प्रमुख निशाना बन जाती है. इनमें साधारण सर्दी-जुकाम पैदा करने वाले राइनोवायरसों से लेकर अक्सर वैश्विक महामारियों का कारण बनने वाले इंफ्लूएंजा तक तमाम वायरस होते हैं.

को-इंफेक्शन के परिणामों में वायरसों का एक-दूसरे के कामों में दखल [1] देना भी शामिल है. ऐसी स्थिति में एक वायरस दूसरे पर भारी पड़ जाता है और वह दूसरे वायरस को अपनी संख्या बढ़ाने से रोक सकता है. राइनोवायरस भी श्वसन तंत्र की गंभीर बीमारियों का कारण बनने वाले खतरनाक वायरसों की शरीर में बढ़ोतरी की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं. ऐसा करके वे एक हद तक इन वायरसों से हमें सुरक्षा देने का काम भी करते हैं. अच्छी खबर यह है कि इनमें कोविड-19 का कारण बनने वाला सार्स-कोव-2 यानी कोरोना वायरस भी शामिल है. एक नये अध्ययन [2] में यह पाया गया है कि राइनोवायरस शरीर में कोरोना वायरस की भी बढ़ोतरी की प्रक्रिया को धीमा कर देता है.

राइनोवायरस

इंसानों के श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाले वायरसों में से ज्यादातर राइनोवायरस ही होते हैं. राइनो शब्द ग्रीक भाषा से आया है जिसका मतलब ही होता है नाक का. इन वायरसों की पहचान पहली बार 1953 में हुई थी. ये बहुत ही सूक्ष्म वायरस होते हैं जो दुनिया में हर जगह पाए जाते हैं. जहां तक हम जानते हैं, ये सिर्फ इंसानों को ही प्रभावित करने में सक्षम होते हैं.

राइनवोयरस से होने वाले संक्रमण कुछ मामलों में गंभीर हो सकते हैं. हालांकि ज्यादातर मौकों पर वे हमें संक्रमित कर सर्दी-जुकाम ही पैदा करते हैं जो अपेक्षाकृत मामूली बीमारी है. इस तरह के संक्रमण का मुकाबला करने के लिए शरीर की रोग प्रतिरोध प्रणाली वायरस को मारने वाले प्रोटीन बनाती है जिन्हें इंटरफेरॉन्स कहा जाता है. वैसे तो इंटरफेरॉन्स हर तरह के वायरसों से पैदा होने वाले संक्रमणों का मुकाबला करने के लिए बनते हैं, लेकिन राइनोवायरसों के खिलाफ ये कहीं ज्यादा तेज़ी से और ज्यादा संख्या में बनते [3] हैं. हालांकि राइनोवायरसों ने अपने भीतर ऐसी जटिल प्रक्रियाएं विकसित कर ली हैं जिनके सहारे वे इंटरफेरॉन्स को चकमा देने और अपनी तादाद बढ़ाने में कामयाब हो जाते हैं.

वैसे राइनोवायरस सर्दी-जुकाम पैदा नहीं करते, बल्कि इनकी घुसपैठ के चलते पैदा होने वाले इंटरफेरॉन्स की वजह से शरीर में बार-बार छींक आने और नाक बहने जैसे लक्षण [4] पैदा होते हैं. राइनोवायरस इंटरफेरॉन्स के खिलाफ काफी प्रतिरोधक क्षमता दिखाते हैं, लेकिन श्वसन तंत्र पर हमला करने वाले दूसरे वायरस ऐसा कर पाएं यह जरूरी नहीं है. उदाहरण के लिए इंफ्लूएंजा वायरस इंटरफेरॉन्स की मौजूदगी में अपनी तादाद ठीक से नहीं बढ़ा पाते. पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई शोधकर्ताओं ने इस सिलसिले में प्रयोग किए हैं. उन्होंने पाया कि जब कोशिकाओं को राइनोवायरस से संक्रमित किया गया तो इसने इंटरफेरॉन्स की एक ऐसी प्रतिक्रिया पैदा कर दी जो कोशिकाओं को इंफ्लूएंजा वायरस से संक्रमित होने से बचा [5] रही थी.

अगर राइनोयरस का संक्रमण दूसरे वायरसों को अपनी तादाद बढ़ाने से रोकता है तो यह उनके प्रसार पर भी असर डाल सकता है. उदाहण के लिए ऐसे सबूत [6]हैं जो इशारा करते हैं कि 2009 में फैली वैश्विक महामारी एच1एन1 यानी स्वाइन फ्लू के फैलने की प्रक्रिया में राइनोवायरस ने अड़ंगा लगाया था.

सर्दी जुकाम और कोविड-19

अब सवाल उठता है कि अगर राइनोवायरस से होने वाले संक्रमण महामारी फैलाने वाले इंफ्लूएंजा वायरस की तादाद में बढ़ोतरी को प्रभावित कर सकते हैं तो क्या ऐसा ही कोरोना वायरस या सार्स-सीओवी-2 के मामले में भी हो सकता है?

हाल में यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो के वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश की. उन्होंने लैब में ही विकसित कोशिकाओं की कुछ ऐसी परतों पर एक प्रयोग किया जिनकी बनावट इंसानी श्वसन तंत्र की तरह थी. इन परतों को राइनोवायरस और सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित करके उनकी जांच की गई. दिलचस्प यह रहा कि इस को-इंफेक्शन की स्थिति में सार्स-कोव-2 की तादाद में बढ़ोतरी की रफ्तार कहीं धीमी हो गई, लेकिन राइनोवायरस की संख्या में वृद्धि की प्रक्रिया पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. यानी सार्स-कोव-2 की गैरमौजूदगी और मौजूदगी, दोनों ही स्थितियों में यह समान रही. यानी कि राइनोवायरस की मौजूदगी सार्स-कोव-2 को प्रभावित करती है लेकिन इसका उल्टा नहीं होता.

इस प्रयोग को वास्तविक परिस्थितियों के और करीब लाने के लिए शोधकर्ताओं ने इसे अलग-अलग तरह से दोहराया. मसलन कोशिकाओं को पहले राइनोवायरस से संक्रमित किया गया और 24 घंटे बाद सार्स-कोव-2 से. दूसरी बार इस प्रक्रिया को उलटकर देखा गया. यानी कोशिकाओं को पहले सार्स-कोव-2 से संक्रमित किया गया और फिर राइनोवायरस से. पता चला कि दोनों ही स्थितियों में राइनोवायरस ने सार्स-सीओवी-2 की बढ़ोतरी को धीमा कर दिया. इससे संकेत मिलता है कि राइनोवायरस संक्रमण कोशिकाओं को कोरोना वायरस से सुरक्षा देता है.

अगले चरण में शोधकर्ता यह पुष्टि करना चाहते थे कि ऐसा होने में सीधे तौर पर राइनोवायरस संक्रमण की वजह से पैदा हुए इंटरफेरॉन्स का हाथ है. इसके लिए उन्होंने कोशिकाओं को बीएक्स 795 नाम की दवा की मौजूदगी में दोनों वायरसों से संक्रमित किया. यह दवा इंटरफेरॉन्स की उन गतिविधियों को रोकती है जो वायरसों का नाश करती हैं. इस बार सार्स-कोव-2 उस स्तर तक बढ़ गया जहां तक वह सामान्य हालात में बढ़ जाता है. इससे यह साबित हुआ कि को-इंफेक्शन की स्थिति में सार्स-कोव-2 की बढ़ोतरी पर लगाम लगाने के लिए राइनोवायरस संक्रमण की वजह से पैदा होने वाले इंटरफेरॉन्स ही जिम्मेदार हैं.

अपनी गणनाओं में शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि अगर किसी इलाके में राइनोवायरस के संक्रमण ज्यादा हैं तो वहां सार्स-सीओवी-2 की संक्रमण दर में कमी आ जाती है. इन सभी तथ्यों को एक साथ देखें तो यह पुष्टि होती है कि राइनोवायरस संक्रमण, सार्स-कोव-2 की तादाद पर लगाम लगाते हैं जिससे कोविड-19 के नए मामलों की संख्या में कमी आ सकती है.

तो सवाल है कि क्या राइनोवायरस हमें कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा सकते हैं. छोटा सा जवाब है हां. हालांकि यह सुरक्षा अस्थायी है. यानी यह तभी तक रहेगी जब तक आपको निशाना बनाने वाले राइनोवायरस आपके शरीर में मौजूद रहें. तो अगर आप सर्दी-जुकाम से उबर जाएं और इसके एक हफ्ते बाद बाद सार्स-सीओवी-2 के संपर्क में आ जाएं तो इसकी संभावना नहीं है कि आपके शरीर में इतने इंटरफेरॉन्स होंगे जो कोरोना वायरस से बचा सकें. जो लंबी सुरक्षा शरीर में बनने वाली एंटीबॉडीज से मिलती है वह तभी मिल सकती है जब आप या तो कोरोना संक्रमण से उबर चुके हों या फिर टीका लगवा चुके हों.

इसलिए अगर आप उनमें से हैं जिन्हें अभी तक कोविड-19 ने अपनी चपेट में नहीं लिया है या फिर आपको अभी तक इसका टीका नहीं लगा है तो संक्रमण की हालत में आपको सुरक्षा तभी मिलेगी जब किस्मत से आपको उसी समय सर्दी-जुकाम भी हुआ हो. यानी इंसानों में सार्स-कोव-2 के प्रसार पर नियंत्रण में राइनोवायरस की भूमिका काफी जटिल और सीमित है.


यह लेख ब्रिटेन स्थित क्वीन्स यूनिवर्सिटी के वेलकम-वूल्फसन इंस्टीट्यूट ऑफ एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन में शोध सहायक मैथ्यू जेम्स के ‘द कनवर्जेशन’ में छपे लेख [7] [8]का भावानुवाद है.