दवाएं

विज्ञान-तकनीक | स्वास्थ्य समस्याएं

विटामिनों की अनोखी दुनिया समझेंगे तो खुद को उल्लू बनने से और कई बीमारियों से बचा लेंगे

कुछ विटामिनों की कमी के नतीजे सालों बाद उभरकर आते हैं तो कुछ की कमी चंद दिनों में ही अपना असर दिखा सकती है

सत्याग्रह ब्यूरो | 12 अप्रैल 2020 | फोटो: पिक्साबे

मल्टीविटामिन की गोलियां और ऐसे ही अन्य ‘ट्रेस एलीमेंट (वे धातुएं जो शरीर के लिए जरूरी होती हैं)’ मिलाकर बनाई जाने वाली ताकत की गोलियों का एक मायावी बाजार दवाइयों की दुनिया में है. छोटी-मोटी कंपनियों से लेकर बड़ी दवाई कंपनियां भी इस तरह की गोलियां बेचने के धंधे में हैं. लोग भी अक्सर बिना किसी कारण, इन्हें यूं ही लेते रहते हैं और भ्रम में रहते हैं कि हम ताकत की गोलियां खा रहे हैं.

वैसे यह सही है कि विटामिनों की जरूरत शरीर के लगभग हर कार्य-व्यापार में है – एंजाइम्स की एक्टिविटी में, को-फैक्टर्स की एक्टिविटी में, शरीर के सेल्स के हर पल सक्रिय रहने के लिए, रक्त जमने के लिए – बहुत सारी शारीरिक गतिविधियों में इनका बड़ा ही महत्वपूर्ण रोल है. परंतु जब तक हमें डॉक्टरी जांच से यह ना पता चले कि शरीर में कौन-सा विटामिन कम होने से क्या खराबी हो रही है, तब तक यूं ही बेमतलब इन गोलियों को अंदाजे से खाने का कोई लाभ नहीं होने वाला. तो आइए पहले समझें कि वास्तव में विटामिंस होते क्या हैं और इनकी कमियों से हमें क्या-क्या हो सकता है.

विटामिंस और ट्रेस एलिमेंट्स आमतौर पर वे चीजें हैं जो शरीर के लिए हैं तो बेहद आवश्यक, लेकिन आमतौर पर वे या तो शरीर में बनती ही नहीं या बहुत कम मात्रा में बनती हैं. इसलिए इनका आपके भोजन में होना अत्यंत ही आवश्यक होता है. बहुत से विटामिन अलग-अलग भोज्य पदार्थों में अलग-अलग मात्रा में होते हैं. कई स्थितियां बड़ी रोचक हैं. जैसे विटामिन बी12 का उदाहरण लें. यह विटामिन हमारे नर्वस सिस्टम के लिए, हमारी चमड़ी के लिए, हमारे मुंह तथा आंतों की झिल्ली के लिए बहुत आवश्यक है परंतु यह प्राय: मीट, मछली, दूध, दही या पनीर में ही होता है. फल-सब्जियों में नहीं पाया जाता. इसका मतलब शाकाहारी लोगों के लिए, खासकर जिन्होंने दूध इत्यादि भी छोड़ दिया हो, उनको विटामिन बी12 नहीं मिल पाता. इसलिए शाकाहारियों, जो किसी कारण से दूध भी नहीं लेते, में धीरे-धीरे विटामिन बी12 की कमी पैदा हो सकती है.

विटामिनों में एक बात और खास है. कुछ विटामिन तो शरीर में पर्याप्त मात्रा में स्टोर रहते हैं और रोज की उनकी आवश्यकता भी इतनी मामूली होती है कि यदि वे विटामिन खाने में नहीं भी आ रहे हों तो भी सालों में जाकर उनकी कमी महसूस होती है. विटामिन बी का उदाहरण ही लें. अगर खाने में इसकी पर्याप्त मात्रा नहीं भी मिल रही हो तब भी इस विटामिन की कमी के कारण बीमारी पैदा होने में सालों लग जाते है. परंतु यदि फॉलिक एसिड का उदाहरण लें तो उसका स्टोर मात्र चंद सप्ताह का ही होता है. अगर खाने में फॉलिक एसिड न हो तो उसकी कमी कुछ समय में ही शरीर में आ जाती है. इस तरह से देखें तो विटामिनों की दुनिया बड़ी अनोखी है.

विटामिनों की कमी हमारे शरीर में कई तरह से हो सकती है. एक तो यह कि हम जो खा रहे हैं उस खाद्य पदार्थ में वह विटामिन कम हो या न हो. बहुत गरीबी, भुखमरी, अकाल से पीड़ित लोग या शरणार्थी शिविरों में रह रहे लोगों में तो सभी तरह के विटामिन कम हो सकते है परंतु वे लोग भी जो अपनी समझ से बहुत अच्छा भोजन कर रहे है उनमें भी कई अन्य तरह से विटामिनों की कमी आ सकती है. उदाहरण के लिए नियासिन नाम का एक विटामिन है. इसकी कमी से पेलेगरा नाम की भयंकर बीमारी हो सकती है. यह ज्यादातर उन लोगों में होता है जो बस मक्के की रोटी ही खाते है. पेलेगरा की बीमारी में दस्त लगना, चमड़ी का रोग होना, (डर्मेटाइटिस), याददाश्त खराब हो जाना (डिमेंशिया) हो सकता है.

ऐसा भी होता है कि भोजन में पर्याप्त विटामिन हों परंतु अन्य किसी कारण से कोई विटामिन आंतों में पचता ही न हो, या फिर शरीर में जाकर वह किसी कारण नष्ट हो जाता हो, या फिर शरीर में उस विटामिन की आवश्यकता अचानक बहुत ज्यादा बढ़ गई हो (गर्भवती होने पर स्त्री के लिए फॉलिक एसिड की जरूरत बढ़ जाती है. वहीं जो लोग जो निरंतर डायलेसिस पर हैं, उनमें भी इसकी कमी हो जाती है) तब भी वह पर्याप्त खाने के बाद कम पड़ जाता है.

कई दवाइयां भी किसी विटामिन की कमी पैदा कर सकती हैं. मसलन गठिया रोग में दी जाने वाली एक बहुत कॉमन दवाई मिथिट्रेक्सेट है जिससे फॉलिक एसिड की कमी हो जाती है, या जब हम टीबी की दवाइयां लेते हुए आई ओमेक्स नाम की दवाई लेते हैं तब विटामिन बी6 की कमी हो जाती है. डॉक्टर वैसे तो टीबी के मरीजों को हमेशा इस विटामिन की गोली भी देते हैं पर कई बार मरीज यह नहीं लेता और उसे न्यूरोपैथी नाम की बीमारी हो सकती है.

विटामिन की कमी होने का खतरा किस-किस को हो सकता है?

एक तो मैंने बताया ही कि गरीबी, भुखमरी या अकाल में जहां खाना पर्याप्त ना हो, ऐसी पूरी की पूरी आबादी में विटामिन कम हो जाते हैं. ऐसे दुर्भाग्यशाली बच्चे जिनका जन्म बेहद कमजोर मां से हुआ हो, वृद्धों में या जिन लोगों की भूख बहुत कम हो गई है, इनके शरीर में भी विटामिन कम हो जाते हैं.

कोई खास दवा खाने से भी विटामिन कम हो सकते हैं और नियमिततौर पर छककर दारू पीने से तो शरीर में कई तरह के विटामिन कम हो जाते हैं. शराबियों में विटामिन सी, डी, बी12 और फॉलिक एसिड की कमी तो हो ही सकती है, लेकिन सबसे कॉमन है विटामिन बी1 की कमी.

अगर किसी शराबी को किसी वजह से ग्लूकोज की ड्रिप लगाई गई हो और डॉक्टर साथ में बी1 का इंजेक्शन देना भूल जाएं तो ऐसे में विटामिन बी1 की और कमी हो जाती है. ऐसे में संबंधित व्यक्ति के दिमाग पर हुआ असर जान तक ले सकता है. इस स्थिति को कोर्सेकॉफ साइकोसिस कहते हैं.

वैसे तो हमारे देश में धूप की कोई कमी नहीं है और इस लिहाज से विटामिन डी की कमी भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि शरीर इसे धूप के प्रभाव में निर्मित करता है. फिर भी यहां कई लोगों में विटामिन डी की कमी हो जाती है. कई लोग खासकर लड़कियां धूप से बचने के लिए सनस्क्रीन लोशन का इस्तेमाल करती हैं. नतीजन इनमें विटामिन डी की कमी होने की आशंका बढ़ जाती है. इसकी कमी का मतलब है – कमजोर हड्डियां. दर्द.

अब सवाल है कि हम शरीर में विटामिनों की कमी को कैसे पहचानें? ऐसा मान लें कि जब तकलीफें बहुत हों और बीमारी पकड़ में नहीं आ रही हो तो इस संभावना को जरूर ध्यान में रखें. विटामिनों की कमी से तमाम तरह की तकलीफें हो सकती हैं. मान लीजिए कोई व्यक्ति ऊपर से बहुत सेहतमंद दिख रहा है लेकिन उसे कमजोरी महसूस होती हो. या हाथ-पैर में झुनझुनी से रहती हो, चमड़ी के नीचे बड़े-बड़े चकत्ते आ गए हों या मुंह में बार-बार छाले होते हों, होंठ किनारे से कट जाते हों या हड्डियों में दर्द रहता हो तो ये सभी विटामिनों की कमी के लक्षण हैं. याद्दाश्त का तेजी से कम होना भी इसका एक प्रभाव हो सकता है.

हम अगले कुछ लेखों में कुछ महत्वपूर्ण विटामिनों के विषय में चर्चा करेंगे. तब हम जानेंगे कि कैसे एक छोटी सी विटामिन की गोली हमारे बहुत से कष्टों का उत्तर हो सकती है.

>> सत्याग्रह को ईमेल या व्हाट्सएप पर प्राप्त करें

>> अपनी राय mailus@satyagrah.com पर भेजें

  • आखिर कैसे एक जनजातीय नायक श्रीकृष्ण हमारे परमपिता परमेश्वर बन गए?

    समाज | धर्म

    आखिर कैसे एक जनजातीय नायक श्रीकृष्ण हमारे परमपिता परमेश्वर बन गए?

    सत्याग्रह ब्यूरो | 19 अगस्त 2022

    जवाहरलाल नेहरू अगर कुछ रोज़ और जी जाते तो क्या 1964 में ही कश्मीर का मसला हल हो जाता?

    समाज | उस साल की बात है

    जवाहरलाल नेहरू अगर कुछ रोज़ और जी जाते तो क्या 1964 में ही कश्मीर का मसला हल हो जाता?

    अनुराग भारद्वाज | 14 अगस्त 2022

    प्रेम के मामले में इस जनजाति जितना परिपक्व होने में हमें एक सदी और लग सकती है

    समाज | विशेष रिपोर्ट

    प्रेम के मामले में इस जनजाति जितना परिपक्व होने में हमें एक सदी और लग सकती है

    पुलकित भारद्वाज | 17 जुलाई 2022

    संसद भवन

    कानून | भाषा

    हमारे सबसे नये और जरूरी कानूनों को भी हिंदी में समझ पाना इतना मुश्किल क्यों है?

    विकास बहुगुणा | 16 जुलाई 2022