व्हाट्सएप की नई यूजर पॉलिसी के चलते भारत में भी दसियों लाख लोग दूसरे मैसेंजिंग प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करने लगे हैं
अंजलि मिश्रा | 18 जनवरी 2021 | फोटो: पिक्साबे
पहला हफ्ता खत्म होने के साथ व्हाट्सएप पर नए साल की शुभकामनाओं का सिलसिला थमा ही था कि व्हाट्सएप यूजर्स की स्क्रीन पर एक संदेश पॉप-अप हुआ और व्हाट्सएप पर व्हाट्सएप से ही जुड़ी चर्चाएं शुरू हो गई. भारत समेत कई देशों के यूजर्स को मिला यह संदेश व्हाट्सएप की नई यूजर पॉलिसी से जुड़ा था जो इस शर्त के साथ सामने थी कि अगर आठ फरवरी तक आपने इसे स्वीकार नहीं किया तो आगे आप इस मैसेजिंग एप का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे. वैसे तो, यह कोई नई या बड़ी बात नहीं है क्योंकि आम तौर पर आपको किसी भी एप या वेबसाइट का इस्तेमाल करने के लिए उसकी यूजर पॉलिसी को स्वीकार करना ही पड़ता है. लेकिन व्हाट्सएप की इस नई यूजर पॉलिसी में कुछ ऐसी बातें शामिल थीं जो ज्यादा तकनीकी ज्ञान न रखने वाले यूजर को भी चिंता में डाल देने वाली थीं.
नई प़ॉलिसी से जुड़ी शुरूआती चर्चाओं से यह धारणा बनी कि व्हाट्सएप यूजर के डेटा को पूरी तरह एक्सेस करने और थर्ड पार्टी कंपनियों के साथ इसे शेयर करने की अनुमति चाहता है. स्वाभाविक है कि यह बात प्राइवेसी के अधिकार को चोट पहुंचाने वाली थी जिसके बाद हंगामा मचना लाज़िमी था. तब से व्हाट्सएप को लगातार न सिर्फ ब्लॉग और विज्ञापनों के जरिए सफाई देनी पड़ रही है बल्कि नई यूजर पॉलिसी को लागू करने की तारीख को भी आठ फरवरी से बढ़ाकर 15 मई तक के लिए टाल देना पड़ा है. लेकिन इससे पहले ही, प्राइवेसी को लेकर इतना शोर मचा कि लाखों लोग व्हाट्सएप को छोड़ सिग्नल, टेलीग्राम और ऐसे ही अन्य मैसेजिंग एप्स की तरफ बढ़ गए. व्हाट्सएप की तमाम कोशिशों के बाद अभी भी यह सिलसिला थमा नहीं है.
व्हाट्सएप की नई यूजर पॉलिसी में पहले से अलग क्या है?
व्हाट्सएप का इस्तेमाल करने वाले यूजर पहले ही इसे अपनी बहुत सारी जानकारियां इकट्ठा करने की अनुमति देते रहे हैं. इसे यूजर का मेटा डेटा कहा जाता है और इसमें लोकेशन, आईपी एड्रेस, फोन मॉडल, ऑपरेटिंग सिस्टम, बैटरी लेवल, मोबाइल नेटवर्क और सिग्नल स्ट्रेंथ, भाषा, टाइमज़ोन, मोबाइल का आईएमईआई नंबर जैसी सूचनाएं शामिल हैं. इसके अलावा व्हाट्सएप यह जानकारी भी रखता है कि आप व्हाट्सएप का इस्तेमाल किस तरह से (मैसेजिंग या कॉलिंग के लिए) करते हैं, किस तरह के ग्रुप्स में शामिल हैं, आपका व्हाट्सएप स्टेटस और प्रोफाइल फोटो क्या है और आखिरी बार आप कब ऑनलाइन थे. नई यूजर पॉलिसी के लिए एग्री बटन दबाने के साथ ही आप व्हाट्सएप को अपना यह डेटा इकट्ठा करने के साथ-साथ उसे इंस्टाग्राम और इन दोनों की पेरेंट कंपनी फेसबुक के साथ साझा करने की अनुमति भी दे देंगे.
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अब व्हाट्सएप पर आपकी निजी बातचीत सुरक्षित नहीं होगी. व्हाट्सएप लगातार अपने बयानों में भी यह बात कह रहा है कि नई पॉलिसी लागू होने के बाद भी प्राइवेट चैट एंड टू एंड एनक्रिप्टेड होंगी यानी इसे भेजने और रिसीव करने के बीच में व्हाट्सएप भी इसे नहीं पढ़ सकता है. यहां पर होने वाला बड़ा बदलाव यह है कि व्हाट्सएप पर मौजूद बिजनेस अकाउंट्स और पर्सनल अकाउंट्स के बीच होने वाली चैट्स को अब व्हाट्सएप एक्सेस कर सकता है. इस तरह की चैट से जुड़ी सूचनाओं को अगर नई यूजर पॉलिसी लागू हुई तो वह फेसबुक और इंस्टाग्राम के साथ शेयर कर सकता है. कंपनी के मुताबिक, इसका मकसद व्हाट्सएप के डेटा का इस्तेमाल कर विज्ञापन हासिल करना और थोड़ा और मुनाफा कमाना भर है. यहां पर यह जान लेना भी ज़रूरी है कि व्हाट्सएप के डेटा का इस्तेमाल यूजर को फेसबुक, इंस्टाग्राम या किसी थर्ड पार्टी प्लेटफार्म पर विज्ञापन दिखाने के लिए किया जाएगा यानी सीधे तौर पर व्हाट्सएप पर विज्ञापन नहीं दिखाई पड़ेंगे.
व्हाट्सएप की नई पॉलिसी विवादों में क्यों है?
व्हाट्सएप की नीतियां और उनसे पड़ने वाले संभावित असर इतने अस्पष्ट हैं कि तकनीक के जानकार भी इसे लेकर कोई ठोस बात नहीं कह पा रहे हैं. लेकिन वे इतना ज़रूर कहते हैं कि भविष्य में इन नीतियों के चलते यूजर के साथ धोखा किए जाने की संभावनाएं बहुत हैं. दूसरी तरफ टेस्ला के सीईओ एलन मस्क, ट्विटर के सीईओ जैक डॉर्सी से लेकर आनंद महिंद्रा और पेटीएम के प्रमुख विजय शेखर शर्मा तक ने इसे डिजिटल स्पेस पर व्हाट्सएप के एकाधिकार की कोशिश बताया है. इसके साथ ही तकनीक और कारोबार के इन दिग्गजों ने लोगों से व्हाट्सएप की जगह सिग्नल एप का इस्तेमाल करने की सलाह भी दी है. व्हाट्सएप के संस्थापकों में से एक और अब सिग्नल एप के को-फाउंडर ब्रायन एक्टन तक कह चुके हैं कि ‘व्हाट्एसप की नई नीतियां बहुत भ्रमित करने वाली हैं.’ नई यूजर पॉलिसी के बारे में इतने जानकार लोगों के इस तरह के बयान ही लोगों के मन में यह धारणा स्थापित करने के लिए काफी हैं कि व्हाट्सएप की नई रणनीति में कुछ न कुछ काला ज़रूर है.
तकनीक के जानकारों के मुताबिक, कहने में भले ही यह बात छोटी लगती हो कि केवल बिजनेस अकाउंट के साथ होने वाले कम्युनिकेशन का डेटा ही शेयर किया जाएगा. लेकिन इतनी सूचनाएं भी किसी यूजर की डिजिटल प्रोफाइलिंग (गतिविधियों का रिकॉर्ड रखने) करने के लिए काफी हैं जो उसकी सुरक्षा और निजता के लिहाज से सही नहीं है. वह भी तब जब कंपनी के पास हर यूजर का पूरा मेटा डेटा पहले से ही है. इसके अलावा, व्हाट्सएप की नई पॉलिसी पर भारत में आपत्ति का एक पक्ष यह भी है कि देश के करोड़ों यूजर्स का डेटा एक विदेशी कंपनी के पास होगा. इसे जानकार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और सुरक्षा के लिहाज से भी सही नहीं मान रहे हैं.
भारत के मामले में व्हाट्सएप की नीतियां दोधारी इसलिए भी हो जाती हैं क्योंकि एक तरफ तो व्हाट्सएप के जो लगभग 20 फीसदी यूजर्स भारत में हैं उनमें से ज्यादातर अपने डेटा के इस्तेमाल को लेकर सजग नहीं हैं. दूसरा हमारे यहां लोगों के डेटा की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कानून भी नहीं है. इस मामले में स्थिति कितनी लचर है, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि मौजूदा कानून के मुताबिक किसी यूजर का डेटा गलत इस्तेमाल होने की स्थिति में उसे (आईटी एक्ट 2000, सेक्शन 43ए के तहत) यह साबित करना पड़ता है कि उसकी अनुमति के बगैर और गलत तरीके से उसकी सूचनाओं का इस्तेमाल किया गया है. यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि ज्यादातर मौकों पर ऐसा कर पाना बहुत आसान नहीं होता है और व्हाट्सएप जैसी बड़ी कंपनियों के संदर्भ में तो ऐसा कर पाना लगभग नामुमकिन ही होगा. वहीं, देश का नया पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, दिसंबर 2019 से संयुक्त संसदीय कमेटी के पास लंबित पड़ा है.
हाल ही में व्हाट्सएप की नई यूजर पॉलिसी को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका भी लगाई गई है. इसमें भी यह कहा गया है कि व्हाट्सएप बगैर सरकार की निगरानी के भारतीय यूजर का डेटा इस्तेमाल करना चाहता है जो कि न सिर्फ निजता के अधिकार का हनन है बल्कि देश की सुरक्षा और व्यापारिक आत्मनिर्भरता के लिए भी खतरा हो सकता है.
इस याचिका और डेटा सुरक्षा कानून की ज़रूरत समझने के लिए यूरोप के उदाहरण पर गौर किया जा सकता है. व्हाट्सएप की नई पॉलिसी के लिए दुनिया भर में जहां कंपनी का रवैया ‘लेना है तो लो नहीं तो चलते बनो’ वाला है, वहीं कई यूरोपीय देशों में इसकी शर्तों को स्वीकार करना ज़रूरी नही है. दरअसल यूरोप में यह जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन के चलते ही संभव हो पाया है. यह कानून किसी भी कंपनी को सेवा इस्तेमाल करने के लिए ज़रूरी जानकारी के अलावा किसी अन्य तरह का डेटा इकट्ठा करने की अनुमति नहीं देता है. इस कानून में दोषी पाए जाने पर भारी ज़ुर्माने का प्रावधान भी है. फेसबुक, यूरोप में व्हाट्सएप से जुड़ी भ्रामक जानकारी देने के लिए साल 2017 में 110 मिलियन यूरो (लगभग 900 करोड़ रुपए) का जुर्माना भरकर शायद जरुरी सबक सीख चुका है. यूरोपीय देशों में से एक फ्रांस में भी फेसबुक पर इसके यूजर्स का डेटा दूसरी कंपनियों के साथ साझा करने के लिए जुर्माना लगाया जा चुका है. इसलिए व्हाट्सएप यूरोपीय देशों के यूजर्स के साथ किसी तरह की जबरदस्ती करने की हिम्मत नहीं कर रहा है. यूरोप का उदाहरण यह बताने के लिए काफी है कि क्यों तकनीक से जुड़ी फेसबुक जैसी कंपनियों पर आंख मूंदकर भरोसा करने के बजाय हमें एक ठोस डेटा सुरक्षा कानून की भी सख्त ज़रूरत है.
व्हाट्सएप के विकल्प क्या हैं?
जैसा कि देश और दुनिया के सबसे बड़े तकनीकी उद्यमियों ने सुझाया है, इस समय दुनिया में सिग्नल को सबसे सुरक्षित मैसेजिंग एप माना जा रहा है. इसके बाद टेलीग्राम का नंबर आता है. संक्षेप में दोनों एप्स की तुलना करें तो सिग्नल पर सभी तरह की चैट और कॉलिंग एंड टू एंड एनक्रिप्टेड है, वहीं टेलीग्राम पर इसके लिए सीक्रेट चैट का ऑप्शन रखा गया है. सिग्नल जहां केवल फोन नंबर रजिस्टर करता है, वहीं टेलीग्राम भी नाम, फोन नंबर, यूजर आईडी और कॉन्टैक्ट्स जैसी बेसिक जानकारियां ही मांगता है. इसके अलावा, सिग्नल पर डेटा का बैकअप केवल डिवाइस पर ही लिया जा सकता है जबकि टेलीग्राम सभी चैट्स और कॉल लॉग्स के लिए क्लाउड बैकअप उपलब्ध करवाता है. इस तरह सिग्नल जहां सबसे सुरक्षित एप बन जाता है, वहीं टेलीग्राम उससे थोड़ी ज्यादा जानकारिया तो लेता है लेकिन उससे थोड़े ज्यादा फीचर्स भी उपलब्ध करवाता है.
प्राइवेसी विवाद के चार दिनों के भीतर (7 से 10 जनवरी) ही भारत में सिग्नल को 23 लाख और टेलीग्राम को 15 लाख बार डाउनलोड किया गया. वैश्विक स्तर पर देखें तो इसी दौरान दुनिया भर में सिग्नल को कुल 75 लाख और टेलीग्राम को 56 लाख बार डाउनलोड किया गया. हालांकि महज चार दिनों में किए डाउनलोड्स के लिहाज से ये आंकड़े बहुत बड़े हैं लेकिन अब भी कुल व्हाट्सएप यूजर्स (दुनिया भर में 200 करोड़ से ज्यादा) के सामने यह संख्या न के बराबर ही है. इसमें यह बात भी शामिल है कि सिग्नल, टेलीग्राम का इस्तेमाल कर रहे ज्यादातर यूजर्स अभी भी व्हाट्सएप पर भी अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं.
क्या भारतीयों के लिए व्हाट्एएप को पूरी तरह छोड़ पाना संभव है?
लगभग 40 करोड़ यूजर्स के साथ भारत व्हाट्सएप के लिए सबसे बड़ा बाज़ार है. इतने हो-हंगामे के बाद भी अगर व्हाट्सएप का कुछ बिगड़ता नहीं दिख रहा है तो इसकी सबसे बड़ी वजह इतने लोगों की मौजूदगी से तैयार हुआ यह नेटवर्क ही है. व्हाट्सएप अब कुछ इस कदर ज़रूरी हो चुका है कि अगर कोई स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहा है तो यह मानकर चला जाता है कि वह इसका इस्तेमाल तो कर ही रहा होगा. स्कूल के दोस्तों से लेकर, ऑफिस, रेसिडेंशियल सोसायटी और बच्चों के स्कूल तक की सूचनाएं व्हाट्सएप समूहों पर ही मिलती हैं. इसीलिए वे लोग भी जिन्होंने पिछले दिनों तत्परता से सिग्नल डाउनलोड किया है, व्हाट्सएप पर बने रहने की ज़रूरत महसूस करते हैं.
नोएडा में एक आईटी फर्म चलाने वाले अंकित अग्रवाल कहते हैं कि ‘मेरे लिए या मेरे साथ काम करने वाले लोगों के लिए व्हाट्सएप पर्सनली से ज्यादा प्रोफेशनली ज़रूरी है क्योंकि ज्यादातर लोगों पास व्हाट्सएप ही है. स्वाभाविक है कि मेरे लिए प्राइवेसी से ज्यादा ज़रूरी बिजनेस है. मुझे हमेशा देखना पड़ेगा कि क्लाइंट किस प्लेटफार्म पर बात करना चाहता है.’ अंकित इंटरनेट पर प्राइवेसी को मिथ बताते हुए यह भी जोड़ते हैं कि ‘यह बात भी है कि आप आज भले ही व्हाट्सएप को छोड़कर किसी और प्लेटफॉर्म पर चले जाएं लेकिन कल को वो भी अपनी पॉलिसी चेंज कर सकते हैं. दूसरी तरफ गूगल आपका तमाम तरह का डेटा ले ही रहा है. सीधी सी बात है, जब भी आप किसी थर्ड पार्टी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल फ्री में करते हैं तो यह खतरा हमेशा बना ही रहता है कि वह भी आपको अपने हिसाब से इस्तेमाल करेगा. इसलिए मुझे नहीं लगता कि तमाम गड़बड़ियों के बाद भी मैं व्हाट्सएप छोड़ पाउंगा.’
इस बातचीत के अंत में अंकित यह भी जोड़ते हैं कि ‘व्हाट्सएप को मेरी निजी चैट पढ़ने में क्या ही रुचि होगी और मैं वहां पर कोई इतनी निजी बातें करता भी नहीं हूं. उसकी दिलचस्पी तो मेरी बिजनेस चैट में ही हो सकती है.’ हालांकि एक आम आदमी के लिए यह कहना आसान है क्योंकि उसे ऐसा लग सकता है कि वह करोड़ों में से एक है और कोई कंपनी उसके जैसी करोड़ों चैट्स में से उसी की निजी जानकारियों में दिलचस्पी क्यों लेगी. लेकिन क्या ऐसा बेहद चुनिंदा उन लोगों के बारे में भी कहा जा सकता है जो किसी भी देश और समाज को बड़े पैमाने पर प्रभावित रखने की क्षमता रखते हैं?
व्हाट्सएप के सक्रिय यूजर्स में एक बड़ा तबका उनका है जो सुबह-शाम के अभिवादन, चुटकुले और सालों पुराने व्हाट्सएप फारवर्ड्स के लिए ही इसका ज्यादातर इस्तेमाल करते हैं. ऐसे ज्यादातर लोग इस बात की चिंता शायद ही करें कि कोई कंपनी उनका डेटा बेचकर पैसे कमाने की बात कर रही है. और ज्यादा उम्र के तकनीकी रूप से कम सक्षम लोगों के लिए एक मैसेजिंग प्लेटफॉर्म छोड़कर दूसरे पर शिफ्ट हो पाना वैसे भी आसान नहीं है. जैसा कि मीडियाकर्मी निखिल कहते हैं, ‘मैं व्हाट्सएप एक मिनट में छोड़ सकता हूं लेकिन मेरी मां को मैंने बहुत मुश्किल से इसका इस्तेमाल करना सिखाया है. अब वे व्हाट्सएप के साथ इतनी सहज हो गई हैं कि मैसेजिंग, वीडियो कॉल से लेकर तस्वीरें-वीडियो शेयर करते हुए बहुत आराम से अपना वक्त काट सकती हैं. ये उनकी और मेरी दोनों की मानसिक शांति के लिए ज़रूरी हो गया है. मेरे लिए व्हाट्सएप छोड़ते हुए पहली समस्या यही होगी कि मैं अपनी मां से किस प्लेटफॉर्म पर कनेक्ट हो पाऊंगा? क्या वो दोबारा शुरू से एक नए एप को इस्तेमाल करने में इंटरेस्ट दिखाएंगी.’
दूसरी तरफ व्हाट्सएप भी लगातार अलग-अलग माध्यमों पर सफाई देते हुए इसी बात पर जोर दे रहा है कि लोगों की आपस की बातचीत इस प्लेटफार्म पर पूरी तरह सुरक्षित है. ऐसे में धीरे-धीरे ही सही यह माहौल भी बनने लगा है कि एक आम यूजर तमाम हो-हंगामे के बाद भी व्हाट्सएप पर बने रहना ही चुने. ‘मेरा सबसे बड़ा डर इस वक्त यही है कि मुझे या मेरे जैसे व्हाट्सएप से जाने वाले लोगों को फिर वहीं वापस न आना पड़ जाए. कम लोगों से कनेक्ट होना सुकून से भरा तो है लेकिन कनेक्ट हुए बिना काम चल पाना भी मुश्किल है’ बैंगलोर में रहने वाली सॉफ्टवेयर इंजीनियर श्रेष्ठा काले कहती हैं, ‘फिलहाल, लोगों का व्हाट्सएप छोड़ना ये बताता है कि उन्हें प्राइवेसी की फिकर है. ये भी हो सकता है कि व्हाट्सएप हमारी सरकार को यूजर्स का डेटा इस्तेमाल करने के लिए मना ले. कॉर्पोरेट्स और विदेशी कंपनियों के लिए मौजूदा सरकार को जो मोह है, उसे देखते हुए ये असंभव नहीं लगता है. इसलिए बहुत संभावना है कि व्हाट्सएप माइग्रेशन का कोई ठोस नतीजा ना निकल पाए. लेकिन इस बहाने हमें इस बात की कोशिश शुरू कर देनी चाहिए कि देश में डेटा सुरक्षा के लिए एक ढंग का कानून बन जाए. जब तक कोई कानून नहीं है, तब तक मैं व्हाट्सएप पर रहूं न रहूं, कोई खास फर्क नहीं पड़ता है.’
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