असली दुनिया में जिस तरह से अंधविश्वास को बढ़ावा देकर धोखाधड़ी की जाती है उसी तरह की ठगी के शिकार अब लोग वर्चुअल दुनिया में भी हो रहे हैं
सत्याग्रह ब्यूरो | 12 जुलाई 2020
पिछले कुछ समय से डाटा लीक होने की चर्चाओं ने ज्यादा ही जोर पकड़ा है. डाटा मतलब किसी भी तरह की डिजिटल जानकारी. यह फोटो, वीडियो, टेक्स्ट जैसी कोई भी चीज हो सकती है. फोटो और वीडियो आपके नितांत निजी क्षणों के भी हो सकते हैं और टेक्स्ट आपके मेल अकाउंट के पासवर्ड से लेकर आपके बैंक के पिन तक कुछ भी हो सकता है. अब आप समझ सकते हैं कि इससे बचना कितना जरूरी है. डाटा लीक होने का सबसे बड़ा सोर्स इंटरनेट है. इस पर की गई छोटी-छोटी गलतियों की वजह से यूजर का डाटा थर्ड पार्टी तक पहुंच जाता है. आइये उन पांच आसान तरीकों के बारे में जानते हैं जिनके जरिये हम अपना डाटा गलत हाथों में पड़ने और अपनी मुश्किलों को बढ़ने से रोक सकते हैं.
कंप्यूटर में जेनुइन ऑपरेटिंग सिस्टम ही रखें
‘महंगा रोवे एक बार, सस्ता रोवे बार बार’. यह बात हम अपने बड़े-बुजुर्गों से हमेशा से सुनते चले आ रहे हैं, लेकिन इस पर अमल हम शायद ही करते हों. मार्केट में पाइरेटेड विंडो (पाइरेटेड मतलब कॉपी की हुई, विंडो मतलब ऑपरेटिंग सिस्टम) 200 रूपए में आसानी से मिल जाती है, जबकि जेनुइन विंडो (ओरिजनल विंडो) की कीमत 2000 से शुरू होती है. इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम में एक्टिवेशन-की काम नहीं करती और न ही विंडो अपडेट हो पाती है. पकड़े जाने के डर से यूजर विंडो अपडेट और डिफेंडर जैसी सेटिंग्स को भी बंद करके रखते हैं. ऐसे में नेट पर ब्राउज़िंग करते समय वायरस आने का खतरा ज्यादा होता है.
इसलिए भले ही थोड़ा महंगा पड़े लेकिन हमेशा जेनुइन विंडो लेने की कोशिश करें. जेनुइन विंडो होने से कंप्यूटर को हार्म पहुंचने के चांसेज कम हो जाते हैं.
फेसबुक की लुभावनी दुनिया से जरा दूरी बनाकर रखें
फेसबुक जितना वर्चुअल है, लोग उतनी ही रियलिटी के साथ इससे अटैच और इसके एडिक्ट होते जा रहे हैं. फेसबुक पर ऐसे बहुत से एंटरटेनिंग ऐप मौजूद हैं जो आपको यह बताते हैं कि आप किस हीरो/हीरोइन की तरह दिखते हैं, आप में क्या-क्या खूबियां हैं, आपकी मौत कब और कैसे होगी, आप भविष्य में क्या बनेंगे, आपका सच्चा दोस्त कौन है, आपके कितने बच्चे होंगे और पता नहीं क्या क्या…
इस तरह के ऐप आपके मन में बस लालच पैदा करने के लिए होते हैं. इनका काम फेसबुक से मोटी कमाई और आपकी जानकारी इकट्ठा करना होता है. जब आप ऐसे ऐप यूज़ करते हैं तो आपसे आपका डाटा लेने की परमिशन ली जाती है. आपके ओके करते ही आपकी वह सारी जानकारी जो आपने ‘अबाउटअस’ में लिख रखी है, आपके इनबॉक्स में पड़े मैसेजेस की डीटेल्स और आपकी फोटो/वीडियो सब कुछ थर्ड पार्टी तक पहुंच जाते हैं. इसलिए पहली बात तो यह कि फेसबुक को अपने बारे में उतनी ही जानकारी दें जितने में काम चल जाए. और दूसरी यह कि यहां मौजूद हर ऐरी-गैरी चीज से अपना दिल ना लगाएं.
ऐड ब्लॉकर का इस्तेमाल करें
इंटरनेट पर मौजूद ढेरों वेबसाइट्स की कमाई का सबसे बड़ा जरिया विज्ञापन है. ये ऐड वेबसाइट्स में ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं कहीं भी नजर आ जाते हैं. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी वेबसाइट को ओपन करने पर उसमें अपने-आप बहुत सी पॉप-अप विंडो खुल जाती हैं. इनमें ऐड भरे पड़े होते हैं. अगर गलती से भी आपने इनमें से किसी ऐड पर क्लिक कर दिया. ये हमें किसी अजीबो-गरीब कंटेंट वाली वेबसाइट पर ले जाता है. ऐसी वेबसाइट्स वायरसों से भरी पड़ी होती हैं. ये हमारे सिस्टम को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ हमारे कंप्यूटर का डाटा भी चुरा सकती हैं. इनसे बचने के लिए आप अपने वेब ब्राउज़र के साथ ऐड ब्लॉकर इंस्टाल करके रखें. ऐडब्लॉकर हार्मफुल डाटा या वायरस को आपके कंप्यूटर तक पहुंचने से रोकते हैं. इंटरनेट पर मुफ्त में बहुत सारे ऐड ब्लॉकर मौजूद हैं जिनमें से किसी को भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
लालच भरे मेल या मैसेजेस को इग्नोर करना सीखें
कई बार ऐसा होता है कि आपको कोई ऐसा मेल या मैसेज आता है जिस पर आपकी लॉटरी लगने या आपका लोन पास होने की बात लिखी होती है. लालच में आकर लोग ऐसे फेक मैसेजेज पर भरोसा कर लेते हैं, और क्लिक करते ही आप एक तरह के लॉग इन पेज पर रिडायरेक्ट हो जाते हैं. इस तरह के लॉग इन पेज आपके बैंक अकाउंट में पैसा भेजने के बहाने आपका मोबाइल नंबर, ईमेल से लेकर बैंक डीटेल्स तक की जानकारी आपसे निकलवा लेते हैं. अगर इस तरह के किसी लॉग इन फॉर्म को आपने भर दिया तो पैसा आना तो दूर जो आपके पास है वो भी आपका नहीं रह जाता. हाल ही में एक व्हाट्सऐप मैसेज बहुत वायरल हुआ था, जिसमें एक लिंक ऐड की गई थी. इस पर क्लिक करने पर फ्लिपकार्ट की फेक वेबसाइट खुल रही थी जहां दो रूपए में पेन ड्राइव मिल रही थी. यह भी ऐसी ही आपकी जानकारियां चुराने की ही एक कोशिश थी. इसलिए बेहतर होगा कि ऐसे किसी भी मेल/मैसेज पर आप कोई प्रतिक्रिया न दें.
पासवर्ड अपडेट करते रहें
जैसे घर में मम्मियां पैसे छुपाने की जगह बदलती रहती हैं वैसे ही समय-समय पर हमें अपने सभी पासवर्ड भी बदलते रहने चाहिए. ये दोनों काम भले ही अलग-अलग हों लेकिन मकसद दोनों का एक ही है, सुरक्षा. आपको अपना कोई भी पासवर्ड किसी से भी साझा करने से बचना चाहिए. और अगर किसी दूसरे के कंप्यूटर या मोबाइल फोन पर ब्राउज़िंग कर रहे हैं तो इन्कोग्निटो मोड चालू रखें. इन्कोग्निटो मोड का ऑप्शन हर ब्राउजर में है. इस मोड में ब्राउज़िंग करने से आपकी हिस्ट्री और लॉग इन इनफार्मेशन सिस्टम में सेव नहीं होती है.
असली दुनिया में जो धोखाधड़ी अंधविश्वास को बढ़ावा देकर की जाती है उसी तरह की ठगी के शिकार लोग अब वर्चुअल दुनिया में भी हो रहे हैं. किस्सा चाहे रियल वर्ल्ड का हो या फिर वर्चुअल का, जरुरत है लालच से बचने की और सच और झूठ में फर्क समझने वाली समझदारी से काम लेने की.
फिशिंग के छलावे से बचें
1978 में एक फिल्म आई थी, डॉन. अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म में दोहरे किरदार निभाए थे. जिनमें से एक किरदार था विजय का जोकि एक सीधा-सादा आदमी था, वहीँ दूसरा किरदार था डॉन नाम के एक अपराधी का. एक-दूसरे का हमशक्ल होने की वजह से कई बार डॉन ,विजय बनकर बच निकलता है. इंटरनेट की दुनिया में फिशिंग का कॉन्सेप्ट भी कुछ ऐसा ही है. दरअसल हैकर्स यूजर का डाटा चुराने के लिए बड़ी वेबसाइटों के होम-पेजों से हूबहू मिलते-जुलते वेब पेज इंटरनेट पर अपलोड करके उन्हें वायरल कर देते हैं. इस प्रोसेस को फिशिंग कहते हैं. इनका इस्तेमाल आपके फेसबुक, जीमेल और बैंक के पासवर्ड चुराने के लिए किया जाता है.
फिशिंग जैसे फ्रॉड से बचने के लिए यूजर्स को किसी लिंक पर क्लिक करने के बजाय महत्वपूर्ण वेहसाइटों के यूआरएल को ब्राउजर में खुद ही टाइप करना चाहिए. जब भी बात लॉग इन करने की हो तो गौर करें कि लिंक के पहले ‘https’ लगा हो. उदाहरण के तौर पर फेसबुक के यूआरएल में ‘https’ होता है. यहां s का मतलब सिक्योरिटी से है. जिन वेबसाइट्स के यूआरएल पर सिर्फ ‘http’ होता है वे सिक्योर नहीं होती हैं. इसके अलावा बहुत से एंटी फिशिंग एक्सटेंशन आते हैं जिन्हें आप ब्राउजर के साथ ऐड कर सकते हैं. ये एक्सटेंशन फिशिंग वेबसाइट्स को ब्लॉक कर देते हैं, ताकि कोई फेक पेज आपके ब्राउजर पर शो ना हो.
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