चार्ल्स कोरिया कहते थे, ‘ऊपर ईश्वर का आकाश है और नीचे उसकी धरती. जब आप इन दोनों को समझने लगते हैं तब आपको सही काम करने की प्रेरणा मिलती है’
पवन वर्मा | 01 सितंबर 2021
जून 2013 की बात है. रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स (रीबा) ने लंदन में भारतीय आर्किटेक्ट चार्ल्स कोरिया की डिजाइनों और उनके अब तक के काम पर एक प्रदर्शनी आयोजित की थी. रीबा ने उस समय कोरिया को भारत के महानतम आर्किटेक्ट का खिताब दिया था. गोवा मूल के इस आर्किटेक्ट को इस बात पर थोड़ी आपत्ति थी. उन्होंने प्रतिक्रिया दी, ‘शायद सबसे ज्यादा प्रयोगधर्मी ठीक रहता… लेकिन महानतम कहने के बाद आगे कोई स्पेस नहीं बचता.’
चार्ल्स कोरिया की यह टिप्पणी वास्तव में उनके पूरे काम का निचोड़ है. भोपाल का भारत भवन हो, दिल्ली में ब्रिटिश काउंसिल की इमारत, या अहमदाबाद का गांधी मेमोरियल जो उनका पहला बड़ा प्रोजेक्ट था या फिर कनाडा के टोरंटो में बना आगा खां म्यूजियम, कोरिया की डिजाइन की गई इमारतों में खुले स्पेस का खासा ध्यान रखा गया है. इस तरह कि वह डिजाइन का सबसे अहम हिस्सा हो. इसी तरह से वे इस बात का भी ख्याल रखते थे कि डिजाइन का आसपास के वातावरण से एक सामंजस्य रहे. यह बात उनके द्वारा बनाई गईं बड़ी या भव्य इमारतों पर ही लागू नहीं होती. अहमदाबाद में उनकी डिजाइन के आधार पर ट्यूब हाउस नाम की इमारत बनाई गई है. निम्न आय वर्ग के लिए बनी इस आवासीय इमारत को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हवा के प्रवाह से उसका तापमान नियंत्रित रहे.
1930 में सिकंदराबाद में जन्मे चार्ल्स कोरिया जब भवन डिजाइन के क्षेत्र में अपने पैर जमा रहे थे तब हर तरह की बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते भारत में सुंदर इमारतों से ज्यादा आम लोगों के लिए शहरों का विकास एक बड़ी चुनौती था. मुंबई विश्वविद्यालय से आर्किटेक्चर की पढ़ाई करने वाले इस युवा के मन पर नए-नए आजाद हुए देश के संघर्ष व उसके आम लोगों की चुनौतियों की छाप हमेशा रही. मिशिगन युनिवर्सिटी और मेसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में आगे की पढ़ाई करके लौटे कोरिया जब 28 साल के थे तब उन्हें अपने करियर का पहला बड़ा प्रोजेक्ट मिला. उन्हें अहमदाबाद में गांधी स्मारक संग्रहालय का डिजाइन करना था. ट्यूब हाउस भी उन्होंने इसी दौर में बनाया. इन सालों में कोरिया ने कई अकादमिक संस्थानों की इमारतों को भी डिजाइन किया.
1970 के दशक में चार्ल्स कोरिया की दिलचस्पी शहरी योजना की तरफ हो गई. उनका मानना था कि लोग शहरों में बसने के उद्देश्य से नहीं आते. उन्हें यहां काम मिलता है इसलिए आते हैं लेकिन वे यहां अच्छे से रह पाएं, यह उस शहर के वास्तुकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है. इस विचार के हिमायती कोरिया ने मुंबई के उपनगर नवी मुंबई की योजना बनाई थी और आज यह महानगर की एक बड़ी आबादी को बहुत अच्छे से संभाल रहा है. यहीं बेलापुर में उन्होंने निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए आर्टिस्ट विलेज नाम की एक आवासीय कॉलोनी का डिजाइन बनाया. इसे मुंबई की कुछ एक सबसे सुव्यवस्थित और खूबसूरत बसाहटों में गिना जाता है.
चार्ल्स कोरिया ने विदेशों में भी कई इमारतों को डिजाइन किया है और भव्यता व खूबसूरती के लिहाज से उन्हें आज भी अद्भुत माना जाता है. कोरिया का आखिरी बड़ा प्रोजेक्ट टोरंटो में आगा खां म्यूजियम और उससे लगता इस्माइली सेंटर का निर्माण था. इनका उद्घाटन पिछले साल ही हुआ है. वास्तुकला समीक्षक ह्यू पीयरमैन ने न्यूजवीक में इन इमारतों के बारे में लिखा था, ‘कोरिया ने यहां जिस तरह से प्रार्थनाघर का निर्माण किया है वह अद्भुत है. अत्याधुनिक और उतना ही रहस्यमयी.’
हालांकि चार्ल्स कोरिया के लिया यह रहस्य एक सीधे से सिद्धांत से निकलता था. वे कहते थे, ‘ऊपर ईश्वर का आकाश है और नीचे उसकी धरती. जब आप इन दोनों को समझने लगते हैं तब आपको सही काम करने की प्रेरणा मिलती है.’ उनकी बनाई इमारतें बताती हैं कि उन्हें शायद इस बात की काफी समझ थी. कोरिया आज नहीं हैं और अब जब वे कोई आपत्ति दर्ज नहीं करा सकते, हम कह सकते हैं कि वे सच में भारत के महानतम आर्किटेक्ट थे.
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