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गुलज़ार से जुड़े दो किस्से जो अपनी तरह से कहानी कहने की उनकी जिद का नमूना हैं

गुलज़ार

गुलजार का अपने गुरू को भी पीछे छोड़ देना

चेलों पर अपने गुरू का असर जरूर रहता है. शेक्सपियर की कहानियों पर फिल्में बनाने के शौकीन विशाल भारद्वाज इस महान रचनाकार तक अपने गुरू गुलजार की वजह से पहुंचे थे. गुलजार ने भी शेक्सपियर के नाटक ‘द कॉमेडी ऑफ ऐरर्स’ से प्रेरणा लेकर ‘अंगूर’ बनाई थी. लेकिन यही गुलजार खुद शेक्सपियर तक अपने गुरू बिमल रॉय की वजह से पहुंचे थे और मजेदार बात ये कि सिर्फ पहुंचे नहीं बल्कि उनसे आगे भी निकल गए!

बिमल दा की ही ‘बंदिनी’ से गीत लेखन की शुरुआत करने वाले गुलजार ने इसके कुछ साल बाद बिमल रॉय द्वारा बतौर निर्माता बनाई एक फिल्म ‘दो दूनी चार’ (1968) में गीत लिखने के अलावा उसकी स्क्रिप्ट और डायलॉग भी लिखे थे. गुलजार के सखा देबू सेन द्वारा निर्देशित इस कॉमेडी फिल्म में किशोर कुमार और असित सेन के डबल रोल थे. यह फिल्म शेक्सपियर के नाटक ‘द कॉमेडी ऑफ ऐरर्स’ पर आधारित थी. इस फिल्म के 14 साल बाद ठीक इसी कहानी पर गुलजार ने संजीव कुमार और देवेन वर्मा को डबल रोल में लेकर अपने निर्देशन में ‘अंगूर’ बनाई थी. ‘दो दूनी चार’ में वे शेक्सपियर के नाटक को अपनी तरह से नहीं कह पाए थे लेकिन यहां अपने मन मुताबिक कहानी कह ली और क्या खूब कही!

बिमल रॉय की वो ब्लैक एंड वाइट फिल्म मजेदार जरूर थी लेकिन गुलजार की खट्टी-मीठी ‘अंगूर’ के आगे खट्टी-खट्टी ही लगती है. इसलिए बॉलीवुड में शेक्सपियर के इस नाटक का नाम आने पर सबसे पहले ‘अंगूर’ का ही जिक्र होता है. ऐसे उदाहरण विरले ही होते हैं जब कोई चेला किसी मामले में अपने दिग्गज गुरू से आगे निकल जाए. बॉलीवुड की सर्वकालिक महान कॉमेडी फिल्मों में शामिल ‘अंगूर’ और उसके निर्देशक गुलजार ऐसे ही उदाहरण हैं.

कभी न देखी गई गुलजार की फिल्म ‘लिबास’ का बनना

सन 1988 में बनकर तैयार एक फिल्म. गुलजार का निर्देशन और स्क्रिप्ट व गीत लेखन. शादी के बाद वाली इस आधुनिक कहानी में नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी और राज बब्बर का प्रेम त्रिकोण. फिल्म के लिए रचे आज तक सराहे जाते रहे पंचम दा के चार गीत. रिलीज हो चुका फिल्म का पोस्टर और ट्रेलर, लेकिन इतना सबकुछ पब्लिक डोमेन में होने के बाद भी आज तक रिलीज न हो पाई एक फिल्म. यही कहानी है गुलजार की बनाई ‘लिबास’ की, जिसकी न कभी सीडी-डीवीडी ही रिलीज हुई और न ही आम जनता इसे कभी किसी दबे-छुपे माध्यमों तले ही देख पाई.

‘लिबास’ के कभी न रिलीज होने की वजह कई सालों तक सेंसर बोर्ड को माना जाता रहा, लेकिन इसका कभी न रिलीज हो पाना गुलजार साहब और फिल्म के निर्माता की आपसी तनातनी का नतीजा है. कहते हैं कि ‘लिबास’ के निर्माता विकास मोहन फिल्म की कहानी में काफी बदलाव चाहते थे और गुलजार इसे बिलकुल अपने हिसाब से बनाना चाहते थे. फिल्म का अंत गुलजार ने एब्सट्रेक्ट रखा था, जिसमें शबाना का किरदार किस नायक को आखिर में अपनाता है यह उन्होंने दर्शकों की समझ पर छोड़ा था. लेकिन निर्माता चाहते थे कि शबाना राज बब्बर के किरदार को ही अपनाए और फिल्म की हैप्पी एंडिंग हो. गुलजार की पिछली कुछ फिल्में फ्लॉप होने के बावजूद उन्होंने स्क्रिप्ट में इस तरह के दखल को सिरे से नकार दिया और निर्माता ने ‘लिबास’ को रिलीज करने से ही इंकार कर दिया.

‘लिबास’ के बनकर तैयार हो जाने के चार साल बाद निर्माता ने पब्लिक के लिए इसका प्रदर्शन सिर्फ एक बार इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल आफ इंडिया में किया लेकिन तारीफ मिलने के बावजूद इसे थियेटरों में रिलीज नहीं किया. फिल्म की तकदीर देखिए, बनकर तैयार होने के तकरीबन 26 साल बाद पिछले साल इसी फेस्टिवल में ‘लिबास’ दोबारा गिनी-चुनी पब्लिक को दिखाई गई और दर्शकों द्वारा एक बार फिर सराही गई. हालांकि दिखाए जाने पर इस बार भी निर्माता ने घनघोर आपत्ति जाहिर की और साफ हो गया कि आने वाले समय में भी थियेटरों तक ‘लिबास’ का पहुंच पाना मुमकिन नहीं है. कुछ समय पहले ‘लिबास’ की डिजिटल रिलीज की खबरें जरूर सुनने को मिली थीं, लेकिन यह कब-कैसे-कहां देखने को मिल सकेगी, इस बारे में कोई जानकारी अब तक नहीं मिल सकी है.