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मंच पर एक जगजीत वो भी थे जो सिर्फ चित्रा के होते थे

यह उस ज़माने की बात है जब जगजीत सिंह बांके नौजवान हुआ करते थे और खूबसूरत चित्रा ने गायकी में उनका साथ देना शुरू ही किया था. 1980 के दशक में जगजीत-चित्रा ने ‘द अनफॉरगेटेबल्स’ एलबम के साथ जोड़ी में गाना शुरू किया था. इसके बाद यह शीर्षक हमेशा के लिए इस युगल की पहचान सा बन गया. जगजीत-चित्रा सिंह गजल की दुनिया की वह जोड़ी बन गए जिसका उस दौर के हर नौजवान के कलेक्शन में होना जरूरी था. इनकी गायकी श्रोताओं को एक अलग दुनिया में तो पहुंचाती ही थी, देखने-सुनने वालों से एक अलग ही संबंध भी बना लेती थी. आपस में संगत बिठाते हुए ये दोनों जिस तरह से डूबकर गाते थे, वह देखना भी कम सुकून नहीं देता था.

अस्सी के दशक का आखिर गजल के शौकीनों के लिए एक नई सौगात लेकर आया जब इस जोड़ी का दूसरा रिकॉर्ड ‘कम अलाइव’ आया. इस रिकॉर्ड में जो नई चीज सामने आई वह थी लाइव रिकॉर्डिंग. यहां ग़ज़ल सुनाते-सुनाते जगजीत सुनने वालों से बातचीत करते भी सुनाई दिए और बीच-बीच में लतीफे और चुटकुले सुनाते भी. हालांकि यह बात गिनती के लोग ही जानते हैं कि ‘कम अलाइव’ को मुंबई के एक स्टूडियो में काल्पनिक कंसर्ट के तौर पर रिकॉर्ड किया गया था. यहां दर्शकों की प्रतिक्रियाओं को अलग से शामिल किया गया था ताकि वह सुनने में लाइव शो जैसा असर पैदा कर सके.

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जगजीत-चित्रा के लाइव शोज कम देखे या सुने जाते थे. 1982 में हुए जगजीत सिंह के लाइव कॉन्सर्ट ‘लाइव एट रॉयल अल्बर्ट हॉल’ के टिकट सिर्फ तीन घंटे में ही बिक गए थे. अपनी ग़ज़लों में जगजीत सिंह की आवाज जितनी गंभीर और वजनदार महसूस होती थी उनके लाइव शो में उनके द्वारा बनाया गया माहौल उतना ही मजेदार और हल्का-फुल्का होता था. एक बार किसी ने उनसे पूछा था कि आप ग़ज़ल के बीच में जोक्स क्यों सुनाते हैं? तो उनका जवाब था, ‘ऑडियंस से कनेक्ट करना होता है. सिर्फ़ गाने से आप कनेक्ट नहीं कर सकते. हैवी ग़ज़ल सुनाने के बाद लोगों को फिर से पुराने मूड में लाना होता है.’

हर कॉन्सर्ट के दौरान जगजीत सुनने वालों का ही नहीं साजिंदों का भी ख्याल करते थे. अपने रेडियो इंटरव्यू में एक बार चित्रा जी ने बताया था कि वे शोज के दौरान इतनी बातचीत और चुटकुलेबाजी इसलिए भी करते रहते थे जिससे साजिंदों को थोड़ी देर आराम मिल सके.

इन सबसे हटकर मंच पर कुछ और भी चलता रहता था जो सिर्फ चित्रा के हिस्से का था. जगजीत गाते हुए उन्हें देखकर मुस्कुराते और नज़रों ही नज़रों में उन्हें छेड़ते रहते थे. जबकि चित्रा इस छेड़छाड़ से बचने के लिए नजरें नीचे किए बैठी रहती थीं. वे खुद चित्रा को लजाते देखकर, तो कभी अपने ही सुनाए चुटकुलों पर ठहाके लगाते देखकर मगन हो जाते थे. वे कभी-कभी अपने पंजाबी और बीवी के बंगाली होने का जिक्र करते हुए भी चित्रा पर चुटकियां लेते थे. दोनों की आंखों में यह साफ़-साफ़ देखा जा सकता था कि यहां पर जो चल रहा है, उसे ही इश्क कहते हैं. उनका यह रूप निजी आयोजनों में गाते हुए और ज्यादा निखरकर सामने आता है.

मंच पर गाने वाले जगजीत के साथ-साथ कई और जगजीत भी होते थे. एक जगजीत जो ऑडियंस की वाहवाही लूटते, एक जगजीत जो उनका मनोरंजन करते थे, एक जगजीत जिन्हें अपने साथियों-साजिंदों का भी ख़याल होता था और एक जगजीत जो सिर्फ चित्रा के थे.