समाज | सिर-पैर के सवाल

यूजर की मौत के बाद उसके फेसबुक अकाउंट और डेटा का क्या होता है?

सवाल जो या तो आपको पता नहीं, या आप पूछने से झिझकते हैं, या जिन्हें आप पूछने लायक ही नहीं समझते

अंजलि मिश्रा | 29 नवंबर 2021

कवर पर लगी तस्वीर देखकर चौंकिएगा नहीं, क्योंकि फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग एकदम सही-सलामत हैं. इस तस्वीर से जुड़ा किस्सा कुछ यूं है कि नवंबर 2016 में अचानक एक दिन उनके अकाउंट पर यह बैनर नज़र आने लगा जिस पर कुछ इस आशय का संदेश लिखा हुआ था – ‘हम आशा करते हैं कि जो लोग मार्क से प्यार करते थे, वे उनसे जुड़ी बातों को याद रखना चाहेंगे.’ अगले कुछ घंटों में यह बैनर लोगों को अपने और अपने दोस्तों के फेसबुक अकाउंट पर भी नज़र आने लगा. तब पता चला कि यह संदेश किसी अनिष्ट की वजह से नहीं बल्कि फेसबुक में आई एक तकनीकी गड़बड़ी के कारण दिखाई दे रहा था. खैर, यह महज एक दुर्घटना थी लेकिन यहां पर यह सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि आखिर यूजर की मौत के बाद उसके फेसबुक अकाउंट और डेटा का क्या होता है?

पहले यूजर के प्रोफाइल या अकाउंट की बात करें तो फेसबुक और इंस्टाग्राम यह यूजर के परिजनों पर छोड़ते हैं कि वे उस व्यक्ति को प्लेटफॉर्म पर बनाए रखना चाहते हैं या नहीं. अगर नहीं तो वे उस अकाउंट को डिलीट करने की रिक्वेस्ट कर सकते हैं. ऐसा नहीं करने पर वह प्रोफाइनल अपने आप मेमोरियल पेज में बदल जाता है. मेमोरियल पेज में यूजर द्वारा सेव किया गया डेटा जस का तस दिखाई देता है लेकिन उस पर कोई टिप्पणी या रिएक्शन नहीं दिया जा सकता. इसके साथ ही बाद में इसे न कोई लॉगइन कर सकता है और न ही अकाउंट पर मौजूद जानकारी से छेड़छाड़ कर सकता है.

इसके अलावा फेसबुक यूजर्स को जीते-जी अपना ‘लेगेसी कॉन्टैक्ट’ नॉमिनेट करने का विकल्प भी देता है. यह उसकी फ्रेंडलिस्ट में मौजूद कोई भी व्यक्ति हो सकता है. लेगेसी कॉन्टैक्ट यूजर की मौत के बाद उसके मेमोरियल अकाउंट को मैनेज कर सकता है. इसमें पोस्ट लिखना, प्रोफाइल फोटो बदलना, यहां तक कि संदेश पढ़ना भी शामिल है. मेमोरियल अकाउंट कवर पर लगे मार्क जुकरबर्ग के अकाउंट की तरह दिखाई देता है जिसमें यूजर के नाम के ऊपर ‘रिमेम्बरिंग’ लिखा होता है.

अब डेटा के इस्तेमाल पर आते हैं लेकिन भारत से पहले कुछ और देशों की बात कर लेते हैं. फ्रांस में जहां यूजर खुद डिजिटल कंपनी को बता सकता है कि उसके मरने के बाद उसके डेटा का क्या करना है, वहीं कनाडा में यूजर के वारिस उसके डिजिटल डेटा को जैसे चाहें इस्तेमाल कर सकते हैं. इसी तरह जर्मनी में परिवार वाले डेटा के मनचाहे इस्तेमाल के साथ-साथ इसे अपनी विरासत की तरह संभालकर भी रख सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे खत या बाकी चीजों को सहेज कर रखा जाता है. इससे अलग अमेरिका का कानून यूजर के वारिस या परिजनों को यह देखने की अनुमति तो देता है कि उसने कब और किससे बात की थी लेकिन यह बातचीत पढ़ी नहीं जा सकती.

भारत और ब्रिटेन जैसे देशों में आज भी डिजिटल डेटा के मालिकाना हक से जुड़ा कोई स्पष्ट कानून नहीं है. इसके बावजूद यह माना जाता है कि कॉपीराइट के नियमों के तहत आने वाली इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (उदाहरण के लिए आलेख, कविताओं या तस्वीरों पर) केवल यूजर के वारिसों का हक होता है. जहां तक डेटा के व्यावसायिक इस्तेमाल की बात है, फेसबुक, ट्विटर और गूगल जैसे प्लेटफॉर्म इस बात का भरोसा दिलाते हैं कि मृत लोगों के अकाउंट का इस्तेमाल वे विज्ञापन की रणनीति निर्धारित करने के लिए नहीं करते. लेकिन डिजिटल कानूनों के जानकार इसके लिए एक स्पष्ट कानून या गाइडलाइन की सख्त जरूरत होने की बात कहते हैं.

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