समाज | पुण्यतिथि

जब मीना कुमारी पर फिल्माए गए एक अमर गीत में वे होकर भी नहीं थीं!

पाकीजा में किए गए अभिनय को मीना कुमार के श्रेष्ठतम कामों में ऐसे ही नहीं गिना जाता. सिवाय एक गीत के जिसमें वे होकर भी नहीं थीं!

सत्याग्रह ब्यूरो | 31 मार्च 2022

‘पाकीजा’ (1972) को बनने में लगभग 14 साल लगे थे. कमाल अमरोही की ख्वाबो-खयाली थी कि जिस तरह शाहजहां ने अपनी पत्नी के लिए ताजमहल बनवाया, वे भी अपनी पत्नी मीना कुमारी के लिए ‘पाकीजा’ बनाएं. ‘पाकीजा’ ने इसके आसपास की मशहूरियत हासिल भी की और मीना कुमारी की मौत की वजह से इस फिल्म को देखने के लिए दर्शक टिकिट खिड़कियों पर टूट पड़े. लंबी बीमारी के बाद दम तोड़ने वाली मीना कुमारी की यह आखिरी फिल्म कहलाई और इसी फिल्म के लिए उन्होंने अपने जीवन का आखिरी फिल्म प्रीमियर भी अटेंड किया. कहते हैं, यहीं पर,‘पाकीजा’ देखने के बाद किसी मशहूर हस्ती ने उनसे कहा था, ‘शाहकार बन गया!’

इस कल्ट फिल्म के बनने के दौरान कई बार फिल्मांकन बाधित हुआ. कमाल अमरोही और मीना कुमारी अलग हो गए और तीखी तकरार के बाद जब वापस काम शुरू हुआ तब मीना गंभीर बीमारी की चपेट में आ गईं. शूटिंग रुक-रुककर होने लगी और शारीरिक थकान देने वाले कई गीतों में मीना कुमारी की जगह उनकी बॉडी डबल का उपयोग हुआ. इन दृश्यों में या तो कपड़े से छिपा चेहरा दिखाया गया, या लॉन्ग शॉट से काम चलाया गया, या फिर सिर्फ चेहरे के क्लोजअप शॉट्स ही मीना कुमारी पर फिल्माए गए. ऐसे दृश्यों में पद्मा खन्ना नामक अभिनेत्री उनकी बॉडी डबल बनीं, जिन्होंने ‘पाकीजा’ के रिलीज होने के अगले साल अमिताभ बच्चन संग ‘सौदागर’ (1973) में नायिका की भूमिका निभाई.

बॉडी डबल के इस उपयोग के बावजूद ‘पाकीजा’ के तकरीबन सारे ही गीतों और मुख्य दृश्यों में मीना कुमारी मौजूद रहीं – आखिरकार, इस फिल्म में किए गए अभिनय को उनके श्रेष्ठतम कामों में ऐसे ही नहीं गिना जाता. सिवाय एक गीत के, जिसमें वे होकर भी नहीं थीं!

‘चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो’ नामक गीत मीना के राज कुमार के सीने से लगकर रोने के बाद शुरू होता है और साढ़े तीन मिनट लंबे इस कालजयी गीत के दौरान जहां मीना कुमारी नायक की बांहों में लिपटी रहती हैं, वहीं नाव में बैठकर नदी पार करते हुए राज कुमार उन्हें चांद के पार ले जाने की कसमें खाते हैं. यह पूरा गीत मीना कुमारी की बॉडी डबल पर शूट हुआ था और एक क्षण के लिए भी इस गीत में मीना का चेहरा नजर नहीं आता है. नीचे दिए गए वीडियो में देखिए, फिल्म में गीत से ठीक पहले आने वाला इमोशनल सीन तब शूट हुआ था जब मीना कुमारी का स्वास्थ्य बेहतर था, इसलिए इसमें मीना भावपूर्ण अभिनय कर रही हैं. लेकिन इस सीन से लगे हुए गीत का फिल्मांकन लंबे अरसे बाद होना तय हुआ और उस दौरान मीना कुमारी का स्वास्थ्य इतना ज्यादा खराब हो गया कि सिर्फ चेहरे का क्लोजअप भर शूट करने के लिए भी वे सेट पर नहीं जा पाईं.

‘चांद के पार चलो’ फिर भी अमर हुआ, और मीना कुमारी का ही गीत कहलाया. यह कमाल कमाल अमरोही की वजह से मुमकिन हुआ, जिन्होंने अलग होने के बाद भी मीना कुमारी को इतना चाहा कि उन्हें ‘पाकीजा’ नाम का ताजमहल तोहफे में दिया.

‘चांद के पार चलो’ का एक वर्जन फिल्म के बाकी गीतों के मिजाज का भी रिकार्ड हुआ था. ड्यूट न होकर सिर्फ लता मंगेशकर की आवाज में कुछ इस सेमी-क्लासिकल अंदाज में, कि मीना उस पर भी ‘पाकीजा’ के दूसरे नृत्य-गीतों की तरह बेमिसाल नृत्य कर सकें. लेकिन उनकी शराबनोशी और बीमारी ने यह होने नहीं दिया और यह वर्जन सिर्फ याद बनकर रह गया.

>> सत्याग्रह को ईमेल या व्हाट्सएप पर प्राप्त करें

>> अपनी राय mailus@satyagrah.com पर भेजें

  • आखिर कैसे एक जनजातीय नायक श्रीकृष्ण हमारे परमपिता परमेश्वर बन गए?

    समाज | धर्म

    आखिर कैसे एक जनजातीय नायक श्रीकृष्ण हमारे परमपिता परमेश्वर बन गए?

    सत्याग्रह ब्यूरो | 19 अगस्त 2022

    जवाहरलाल नेहरू अगर कुछ रोज़ और जी जाते तो क्या 1964 में ही कश्मीर का मसला हल हो जाता?

    समाज | उस साल की बात है

    जवाहरलाल नेहरू अगर कुछ रोज़ और जी जाते तो क्या 1964 में ही कश्मीर का मसला हल हो जाता?

    अनुराग भारद्वाज | 14 अगस्त 2022

    प्रेम के मामले में इस जनजाति जितना परिपक्व होने में हमें एक सदी और लग सकती है

    समाज | विशेष रिपोर्ट

    प्रेम के मामले में इस जनजाति जितना परिपक्व होने में हमें एक सदी और लग सकती है

    पुलकित भारद्वाज | 17 जुलाई 2022

    संसद भवन

    कानून | भाषा

    हमारे सबसे नये और जरूरी कानूनों को भी हिंदी में समझ पाना इतना मुश्किल क्यों है?

    विकास बहुगुणा | 16 जुलाई 2022