1980 में रिलीज हुई नसीरुद्दीन शाह की पहली फिल्म ‘हम पांच’ का पहला दृश्य ही बता देता है कि वे फिल्मों में हीरो बनने नहीं बल्कि एक्टिंग करने आए थे
अंजलि मिश्रा | 20 जुलाई 2020 | स्क्री
करीब 20 मिनट की ‘हम पांच’ गुजरने के बाद क्लोजअप शॉट के साथ पहली बार स्क्रीन पर नसीरुद्दीन शाह का चेहरा दिखाई देता है. यह वही चेहरा है जिसके बारे में बाद में बार-बार कहा गया कि वह परंपरागत हीरो जैसा नहीं दिखता. इस दृश्य में नसीर चेहरे पर इंटेंस लुक देते हुए पलटते हैं और आगे बढ़ जाते हैं, जैसे मेनस्ट्रीम सिनेमा में एंट्री करते हुए वे आने वाली इन बेजा टिप्पणियों पर कान नहीं देना चाहते हों.
अगले कुछ पलों में सूरज नाम का उनका किरदार फिल्म में पहला संवाद बोलता है ‘पायलागू मां.’ यहां पर बोली गई उनकी चंद लाइनें उसी सहजता, या कहें सादेपन के साथ बोली गयी हैं जिसके दीवाने नसीरुद्दीन शाह के चाहने वाले आज भी हैं. यह पहला दृश्य ही यह बताने के लिए काफी है कि नसीरुद्दीन शाह फिल्मों में हीरो बनने नहीं, एक्टिंग करने आए थे.

‘हम पांच’ का सूरज गांव से पढ़ाई करने के लिए शहर जाने वाला नौजवान है. पतली काया, सजीली काठी और दाढ़ी यानी बीयर्ड लुक वाले नसीरुद्दीन अपने इस रोल में सबसे पहले तो अपने रूप-रंग से ही फिट हो जाते हैं. इसके बाद जो रहा-सहा बचता है, उसे उनका सहज अभिनय साध लेता है. जालिम जमींदार के खिलाफ आवाज उठाने वाले पांच नौजवानों में से सबसे तीखा गुस्सा सूरज का ही है. सबसे धीमी आवाज में सबसे कड़वी जुबान बोलने वाला सूरज अपने बाकी साथियों, खासकर राज बब्बर और मिथुन चक्रवर्ती, की तरह जरा सा भी बनावटीपन या गैर-जरूरी स्टाइल नहीं ओढ़ता. जहां पर सूरज की तंज भरी आवाज को तेज होना है, वहां वह सिर्फ तेज होती है तीखी नहीं. संवाद अदायगी के साथ-साथ कई बार नसीर की बॉडी लैंग्वेंज भी बिना पूछे यह बता देती है कि थिएटर में उनकी जमकर ट्रेनिंग हुई है.
‘हम पांच’ का निर्देशन ‘बापू’ नाम से पहचाने जाने वाले तेलुगु फिल्मकार सत्तीराजू लक्ष्मीनारायण ने किया था. बाद में पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित हुए इस निर्देशक ने कई दक्षिण भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी में भी कई सफल-असफल फिल्में बनाईं. बापू के बॉलीवुड वाले खाते में ‘वो सात दिन’ जैसी कमाल फिल्म भी आती है और ‘मेरा धरम’ और ‘मोहब्बत’ जैसी बेतमतलब फिल्में भी. फिल्मकार के साथ-साथ पेंटर, लेखक, कार्टूनिस्ट और संगीतकार रहे बापू अक्सर ही अपनी बनाई दक्षिण भारतीय फिल्मों के हिंदी रीमेक बना लिया करते थे. यह करते हुए उन्होंने नसीरुद्दीन शाह, मिथुन चक्रवर्ती और जैकी श्रॉफ जैसे चेहरों को बार-बार मौके दिए. ये वे चेहरे थे जो आमतौर पर बॉलीवुड में नॉन-हीरो लुक के चलते पहले ही छांट दिए जाते थे या बेजान चरित्र भूमिकाओं के लायक ही समझे जाते थे. ‘हम पांच’ में नसीरुद्दीन शाह के साथ-साथ बापू ने गुलशन ग्रोवर को भी पहली बार फिल्मी परदे पर पेश किया था.
अपनी पहली फिल्म के समय करीब 30 साल के रहे नसीरुद्दीन शाह के चेहरे की तुलना अगर आज के समय के किसी अभिनेता से की जाए तो वह टीवी-फिल्म के चर्चित हो रहे और बेहद प्रतिभावान विक्रांत मासी का चेहरा हो सकता है. ‘हम पांच’ में नसीरुद्दीन शाह के चेहरे पर कुछ-कुछ विक्रांत जैसी ही मासूमियत और निश्छलता नजर आती है. तंग शर्ट-पैंट के साथ बूट पहने गांव लौटा उनका यह शहरी किरदार फिल्म में जमकर फाइट और डांस करता है. फिल्म के कथानक के अनुसार तो उन्हें यह सब करते देखकर बुरा नहीं लगता लेकिन साथ ही यह ख्याल भी आता है कि जोर से कहें कि ‘आपको ये सब करने की जरूरत नहीं है. न आज और न ही कल, त्रिदेव, कृश या वेलकम बैक जैसी फिल्मों में.’ और यह बात आज ही नहीं, तब भी उतना ही जोर लगाकर कही जा सकती थी.
बताया जाता है कि ‘हम पांच’ के निर्देशक बापू माइथॉलॉजी में खास रुचि लिया करते थे. उनकी पेंटिंग और फिल्मों से भी इस बात का पता चलता है. यह फिल्म उनके इसी रुझान का परिणाम थी जो उस समय की परिस्थितियों पर महाभारत को फिट कर बनाया गया एक मसालेदार सिनेमा थी. इस औसत सी फिल्म में अगर किसी चीज से फर्क डालने वाला वजन आता है तो वह इसके दीप्ति नवल, शबाना आजमी और नसीरुद्दीन जैसे अभिनेताओं का अभिनय है.
कुल मिलाकर, ‘हम पांच’ में नसीरुद्दीन शाह का अभिनय हमें भविष्य में ‘निशांत,’ ‘आक्रोश,’ ‘स्पर्श,’ ‘मंडी’ और उनकी तमाम उल्लेखनीय फिल्मों के आने की उम्मीद दे जाता है. अफसोस तो तब होता जब वे ऐसा कुछ कर नहीं पाते!
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