- सत्याग्रह/Satyagrah - https://www.satyagrah.com -

रजनीकांत न होते तो हमारे पास खुश होने की एक वजह कम होती

सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर रजनीकांत का एक जोक चलता है. रजनीकांत ने एक बार समय से रेस लगाई और नतीजा यह हुआ कि समय अभी तक भाग रहा है. रेस लगाने वाला यह चुटकुला कुछ हद तक सही भी है. वक़्त से रेस लगाकर ही कोई इतना आगे निकल सकता है. बोझ उठाया, बढ़ई का काम किया, बसों में टिकट काटे फिर एक दिन सिल्वर स्क्रीन की शान बन गए. पर्दे के इस पार एक तरफ जहां उन्हें भगवान की तरह पूजा जाता है तो दूसरी तरफ उन पर जोक्स भी बनाये जाते हैं. जोक्स बनते तो हैं पर मजे के लिए, मजाक के लिए नहीं. यह उनके चाहने वालों का प्यार है, सम्मान है. जितने अनूठे रजनीकांत हैं, उतने ही उनके मुरीद. उतना ही अनूठा उनका प्यार दिखाने का तरीका.

70 के दशक में, जब तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी, फिल्म की जान उसकी स्क्रिप्ट्स को ही माना जाता था (कोई दो राय नहीं फिल्म की जान अब भी स्क्रिप्ट ही होती है). टॉलीवुड तब आज जैसा विशालकाय न होकर क्षेत्रीय सिनेमा ही था. इसके सबसे बड़े नायक एमजी रामचंद्रन राजनीति की ओर रुख कर रहे थे. इसी दशक में वे देश के किसी प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने जो पहले फिल्म अभिनेता था. ऐसे में रजनीकांत अपने चिर-परिचित अंदाज में चश्मा घुमाते हुए आते हैं और कहते हैं ‘एन वाझी, थानी वाझी’ (मेरा रास्ता मेरा खुद का है). उनसे पहले तमिल सिनेमा ने अपने नायक का ऐसा अंदाज देखा नहीं था. इसी दशक में रजनीकांत से थोड़ा पहले देश के हिंदी सिनेमा को भी जंजीर और शोले के जरिये अलग तरह की फिल्में और अमिताभ बच्चन जैसा अदाबाज अदाकार मिल चुका था.

मशहूर तमिल फिल्मकार के बालाचंदर की फिल्म अपूर्व रागानल से 1975 में अपने फिल्म करियर की शुरुआत करने वाले रजनीकांत ने शुरुआती कुछ फिल्मों के बाद से कबाली (2016) तक जो किया दर्शकों के लिए किया. अपने दर्शकों के प्रति इसी समर्पण ने उन्हें फिल्मी पर्दे से उठाकर सही मायनों में लोगों का नायक बना दिया. फिर इस नायक ने जो किया वह लोगों का अपना हो गया. रजनीकांत के अपने दर्शकों के प्रति समर्पण से निकली यह स्वीकृति ही कहीं न कहीं उन पर इतने जोक्स बनने और उनके इतना अधिक लोकप्रिय होने की वजह भी है.

रजनीकांत तमिल फिल्म स्टार हैं. एक आम उत्तर भारतीय के लिए तमिल, तेलगू, कन्नड, मलयालम सब एक ही हैं. उसके लिए साउथ बस साउथ है. रजनीकांत और उन पर पर बनने वाले जोक्स एक लिहाज से उत्तर और दक्षिण को एक करने का काम भी करते हैं. उत्तर भारतीय रजनीकांत की फिल्मों को उतने ही मजे से देखते हैं और उन पर बने चुटकुलों का आनंद इस तरह से मनाते हैं कि आज तक किसी तमिल को उसके थलाइवा पर बने जोक्स के लिए शिकायत करते नहीं देखा गया. दोनों छोरों के भारतीयों ने रजनीकांत के लिए मानो अपने सभी तर्क और शर्तें ताक पर रख दी हैं.

मोबाइल स्क्रीन पर हर पल एक के हिसाब से आने वाले रजनीकांत के जोक्स उनके सिनेमाई कारनामों का ही विस्तार हैं. बिलकुल उतने ही अविश्वसनीय और लोकप्रिय इतने कि एंड्रॉयड और आईफोन के न जाने कितने एप भी इनके लिए बनाए जा चुके हैं. इन्हें हॉलीवुड की हस्ती चक नॉरिस पर बने चुटकलों का भारतीय संस्करण भी कहा जाता है. चक नॉरिस हॉलीवुड में अपनी मार्शल आर्ट्स और असंभव से लगने वाले कारनामों के लिए मशहूर हैं. हिन्दुस्तान में यह कारनामा रजनी के नाम दर्ज है. हां, रजनी जहां संघर्षों के अंधेरे से निकलकर चमक बिखेरते हैं, वहीं चक नॉरिस अमेरिकी वायुसेना से रिटायरमेंट लेकर. ऑडियंस का भी अंतर है. वैसे रजनीकांत और चक नॉरिस में एक साम्य यह भी है कि दोनों के कारनामे पब्लिक बिना पलकें झपकाए देखती है. फिर बेशुमार तालियां पीटती है.

रजनीकांत की महिमा का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि ‘अन्ना रास्कला’ और ‘माइंड इट’ जैसे डायलॉग्स उन्होंने कभी कहे ही नहीं, पर उनके चुटकुलों और उनसे जुड़ जाने के चलते इतने मकबूल हो गए. ये डायलॉग्स शाहरुख़ की ओम शांति ओम के क्विक-गन मुरुगन किरदार से आये जो उस फिल्म में प्रतीकात्मक रजनीकांत था. आज ये जिस तरह से मशहूर हैं यही कहा जा सकता हैं कि जिसको रजनीकांत छू भर जाएं, वही सोना.

अमिताभ बच्चन देश के सबसे बड़े सुपर स्टार थे, 79 साल की उम्र में आज भी हैं. उनका हेयर स्टाइल मकबूल हुआ. हएं कहने का अंदाज सैकड़ों ने अपनाया. कमल हसन सी मासूमियत भी चाही और सराही गयी. राजेश खन्ना, देवानंद के पीछे महिलाएं जान छिड़कती थीं. इसके बाद तीनों खानों ने आकर देश को अपना बना लिया. मगर रजनी के मामले में कुछ नया ही हुआ. एक क्षेत्रीय भाषा का फिल्म अभिनेता अचानक ही ऐसा हो गया कि एक अलग ही तरीके से सब तक पहुंच गया. सबके खुश होने और खुशियां बांटने की वजह बन गया.