सलमान रश्दी

समाज | जन्मदिन

अपने लेखन और निजी जीवन से जुड़े विरोधाभासों से भी सलमान रश्दी ने कम चर्चा नहीं पाई

सलमान रुश्दी को एक ऐसा लेखक कहा जा सकता है जो एक साथ नायक भी है और खलनायक भी

कविता | 19 जून 2020 | फोटो: स्क्रीशॉट

साहित्यकार विजयदेव नारायण साही ने नीत्शे की किताब ‘द स्पीक’ के लिए एक बार यह कहा था – ‘विचारों के हिसाब से मैं इसे बहुत सामान्य किताब समझता हूं पर साहित्यिक दृष्टि से यह अभूतपूर्व है. मैं हमेशा इसकी एक प्रति अपने साथ रखता हूं और दूसरों को भी ऐसा करने की सलाह देता हूं.’ सलमान रुश्दी के उपन्यास ‘सैटेनिक वर्सेज’ की बात चलते ही साही की ये पंक्तियां बरबस याद आती हैं, पर यह याद आना कुछ उलटते हुए क्रम में होता है.

सैटेनिक वर्सेज को साहित्य के तौर पर भले ही उस तरह न याद किया जाए पर उसकी अनोखी परिकल्पना और विचारों के लिए अवश्य पढ़ा और याद किया जाता रहेगा. हालांकि यह उनकी किताबों में उतनी महत्वपूर्ण नहीं है. ‘मिडनाइट चिल्ड्रेन (आधी रात की संतानें) ’ रुश्दी की सबसे महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है. उनकी सभी किताबों के बीच यह सबसे अधिक सहज, प्रवाहमय और प्रेरणादायक है. इस कहानी का नायक एक बच्चा है जो भारत की आजादी के समय मतलब, 15 अगस्त 1947 को ठीक आधी रात को पैदा होता है और यह बच्चा कुछ विशेष शक्तियों से संपन्न है. ‘सलीम चिनॉय’ यानी इस किताब के नायक को पाठक हमेशा सलमान रुश्दी से जोड़कर देखते रहे हैं.

रुश्दी की पहली किताब ‘ग्राइमस’ 1975 में प्रकाशित हुई थी. यह एक विज्ञान कथा थी और पाठकों के बीच इस किताब को लेकर ज्यादा चर्चा नहीं हुई. 1981 में आई ‘मिडनाइट चिल्ड्रेन’ उनकी दूसरी किताब थी जिसे पाठकों और आलोचकों ने हाथों-हाथ लिया. उसी साल इसे बुकर प्राइज मिला था और बाद में इस किताब को ‘बेस्ट ऑफ बुकर्स’ का पुरस्कार भी दिया गया. मतलब कि चालीस बरसों से बुकर पानेवाली किताबों में से भी सर्वश्रेष्ठ किताब का पुरस्कार. यहीं से सलमान रुश्दी के उदय की शुरुआत हुई.

मिडनाइट चिल्ड्रेन के बाद आने वाली उनकी तीसरी किताब ‘शेम’ भले ही उसके टक्कर की साहित्यिक कृति न कही जाए पर इसने भी अपनी विषयवस्तु की वजह से अच्छी-खासी चर्चा बटोरी थी. पाकिस्तान की राजनीतिक अशांति पर केंद्रित इस किताब में जुल्फिकार अली भुट्टो और जियाउल हक जैसे चरित्र थे. इसी के बाद सलमान रुश्दी की चौथी किताब सैटेनिक वर्सेज आई और इसके साथ ही विवादों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो वह उनके व्यक्तित्व और लेखन के साथ हमेशा बना रहा.

बतौर साहित्यकार सलमान रुश्दी जितने प्रसिद्ध हैं उनके निजी जीवन से जुड़े किस्से-कहानियां भी उतनी ही चर्चा में रहे हैं. सैटेनिक वर्सेज से जुड़ा विवाद और इसपर जारी हुए फतवे (पहला फतवा ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी ने जारी किया था) और इस दौरान उनका अज्ञातवास में रहना ऐसी घटनाएं हैं जिन्होंने एक तरह से उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया ही. एक लंबे अरसे तक रुश्दी की छवि इसी किताब से जुड़े विवाद के आसपास गढ़ी जाती रही है. यह छवि उस नायक की थी जो कट्टरपंथ के खिलाफ खड़ा रहा.

कुछ साल पहले सलमान रुश्दी से जुड़ा एक और विवाद चर्चा में आया था और कुछ समय के लिए ही सही लेकिन इसने उनसे जुड़े तमाम पिछले विवादों को पीछे छोड़ दिया था. तब उनकी चौथी पत्नी रहीं पद्मलक्ष्मी ने उनपर असंवेदनशील इंसान और गैरजिम्मेदार पति होने के इल्जाम लगाए थे. यह अजीब इत्तेफाक रहा कि 2013 में जब कोलकाता पुस्तक मेले में सलमान रुश्दी के आगमन पर रोक लगाए जाने की घटना घटी, ठीक उसी के आसपास ही पद्मलक्ष्मी द्वारा उनपर लगाये गए आरोप भी सुर्ख़ियों में रहे.

पद्मलक्ष्मी ने अपनी आत्मकथात्मक किताब ‘लव लॉस एंड व्हाट वी एट’ में सलमान रुश्दी के व्यक्तित्व की कई गिरहों और गांठों पर बात की है. मसलन खाने को लेकर उनके बेइंतहाई शौक, सेक्स के लिए उम्र के इस पड़ाव पर भी अदम्य इच्छा, स्व के लिए उनकी कुंठाएं-असुरक्षाएं, लोगों को अपने आगे-पीछे फिराने और खुद को केंद्र में रखने की बच्चों सी ख्वाहिश और नोबेल पुरस्कार न मिल पाने को लेकर उनके दुख और लालसाएं.

सलमान रुश्दी और पद्मलक्ष्मी के बीच उम्र का एक लंबा अंतराल रहा है. इस अंतराल के कारण लोगों ने हमेशा इस शादी को पद्मलक्ष्मी की ख्वाहिशों और महत्वाकांक्षाओं से जोड़कर ही देखा. हालांकि यहां ध्यान देनेवाली बात यह है कि पद्मलक्ष्मी रुश्दी की पत्नी होने से पहले मॉडल और एक विदेशी कुकिंग शो की होस्ट थीं यानी प्रसिद्ध तो वे पहले से ही थीं. हर युवा लड़की की तरह उनकी भी महत्वाकांक्षाएं रही होंगी लेकिन पद्मलक्ष्मी से शादी के मामले पर कुछ अंशों में यही बात रुश्दी के लिए भी कही जा सकती है. शादी के बाद पद्मलक्ष्मी एक आम स्त्री की तरह पति के साथ उसके सम्मान समारोहों में आती-जाती ही दिखती रहीं. इसी दौर में टाईम मैगजीन ने कवर पर उनकी तस्वीर छापी थी. पद्मलक्ष्मी के मुताबिक इसे देखकर उनके पति ने ईर्ष्याभरी प्रतिक्रिया जताई थी. यह वाकया सलमान रुश्दी के इतने प्रसिद्ध लेखक और बुद्धिजीवी वाले रूप से तनिक भी मेल नहीं खाता.

यह सलमान रुश्दी की कोई पहली शादी भी न थी जो विफल हुई हो. इससे पहले भी उनके तीन और विवाह और दो बच्चे हो चुके थे. यह भी महत्वपूर्ण बात है कि उनकी इन तीन पत्नियों, क्लोरिस्सा लुआर्द (1976-87), दूसरी पत्नी मारिया विंगिस (1988-93), और तीसरी पत्नी एलिजाबेथ बेस्ट (1997-2004) ने तलाक के मुद्दे पर पद्मलक्ष्मी की तरह कभी अपना मुंह नहीं खोला. लेकिन तलाक के कोई न कोई कारण तो थे ही और इस बात की ज्यादा संभावना है कि वे रुश्दी की तरफ से ही थे. यह इसलिए कहा जा सकता है कि इस समय उनकी तीनों ही पत्नियां कामयाब और ठीक-ठाक वैवाहिक जिंदगी बिता रही हैं.

पद्मलक्ष्मी ने भी हमेशा अपने वैवाहिक जिंदगी के कटु होने की बात नहीं की है. उन्होंने यह माना है कि शुरुआत में उनके संबंध मधुर रहे. सलमान उनकी केयर करते थे पर दिक्कत तबसे हुई जब वे एंड्रीयोमाइटेसिस नामक गर्भ में गांठ बनने की बीमारी की चपेट में आईं. इस बीमारी में अथाह दर्द, थकान और बहुत-सी अन्य परेशानियों के साथ सेक्स से अनिच्छा भी पैदा हो जाती है. सलमान रुश्दी को यह अनिच्छा सहन नहीं थी. पद्मलक्ष्मी अपनी किताब में बताती हैं कि उन हालात में सेक्स के लिए ‘न’ कहने की वजह से सलमान अपने इस रिश्ते को ‘बैड इन्वेस्टमेंट’ यानी ‘घाटे का सौदा’ कहने लगे थे. पद्मलक्ष्मी का जब ऑपरेशन हुआ और वे घर लौटीं तो सलमान उन्हें इस हाल में अकेला छोड़कर लंबे टूर पर निकल पड़े थे. पद्मलक्ष्मी के अनुसार उन्होंने तभी तलाक का निर्णय लिया.

अगर हम इस मसले पर रुश्दी की पूर्व पत्नी पद्मलक्ष्मी की बात को परे भी रखें तो भी अंग्रेजी भाषा के प्रसिद्ध लेखक अमिताव कुमार की किताब ‘सलमान रुश्दी इज नॉट अ गॉड’ इस लेखक के अंतर्विरोधों को अच्छी तरह जगजाहिर करती है. रुश्दी के पूर्व अंगरक्षक रहे रोन इवांस ने भी उनके व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के बीच एक चौड़ी खाई की बात कही थी. वे इसपर किताब लिखने की योजना अभी बना ही रहे थे कि रुश्दी ने उनपर, उनके सह-लेखक और प्रकाशक पर मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया और यह किताब लिखे जाने से रह गई. इवांस के अनुसार सलमान रुश्दी ने अपने खिलाफ जारी फतवे से भी आर्थिक और सामाजिक लाभ उठाने की कोशिश की थी.

सलमान रुश्दी की किताब मिडनाइट चिल्ड्रेन पर 2012 में एक फिल्म बनी थी. दीपा मेहता इसकी डायरेक्टर थीं. रिलीज के पहले तमाम तरह की चर्चा में रहने के बावजूद यह फिल्म दर्शकों, यहां तक कि बुद्धिजीवियों के एक बड़े तबके को भी कुछ खास पसंद नहीं आई थी. वहीं 1990 में उनको विलेन की भूमिका में रखने वाली एक फिल्म ‘इंटरनेशनल गोरिल्ला’ पाकिस्तान में बनी और रिलीज हुई थी. इसपर रुश्दी काफी दुखी थे. इसलिए नहीं कि यह घटिया फिल्म थी या इसमें उन्हें विलेन दिखाया गया था, फिल्म पर प्रतिबंध न लगने की वजह से वे दुखी थे. उन्हें उम्मीद थी कि प्रतिबंध के बाद फिल्म को ज्यादा लोग देखते और उनसे जुड़ी कहानियों को ज्यादा विस्तार मिलता.

दरअसल सुर्ख़ियों में बने रहने को सलमान रुश्दी ने हमेशा पसंद किया है. तमाम साहित्यक आयोजनों या अन्य कार्यक्रमों में उनकी बातचीत से यह साफ पता चलता है कि वे इन सुर्खियों को एक तरह से सेलिब्रेट और एंजॉय करते रहे हैं. उन्हें इसबात से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता कि सुर्खियां उन्हें खलनायक बना रही हैं या नायक.

एक तटस्थ नजरिए से देखें तो सलमान रुश्दी का होना यह बताता है कि हम एक में ही कई होते हैं. हममें ही अच्छाइयों की पराकाष्ठा होती हैं और बुराइयों की खाइयां भीं. रुश्दी के चरित्र के ये आयाम कई प्रसिद्ध लेखकों और व्यक्तित्वों की याद भी दिलाते हैं.

कुछ साल पहले अपने से उम्र में काफी छोटी रिया सेन से उनके अफेयर की खबरें उड़ी थीं. सुचित्रा सेन की नातिन और अभिनेत्री रिया सेन की सलमान रुश्दी से एक पार्टी में मुलाकात इन अफवाहों की वजह थी हालांकि बाद में ये तमाम बातें हवा-हवाई साबित हुईं. उन्हीं दिनों रिया सेन ने रुश्दी के बारे में कहा था, ‘जब आप सलमान रुश्दी होंगे तब आप जरूर उन लोगों से ऊब जाएंगे जो हमेशा आपसे साहित्य के बारे में बातें करते हैं.’ रिया कोई बुद्धिजीवी नहीं है और अभिनय के क्षेत्र में भी कुछ खास अनुभव नहीं है लेकिन इन बातों से परे सलमान रुश्दी पर की गई उनकी यह टिप्पणी हमारे समय के इस सबसे चर्चित लेखक के व्यक्तित्व को समझने की एक कुंजी जरूर उपलब्ध करवाती है.

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