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ऐसा क्या हुआ कि ‘मिथुनिज्म’ रूस में किसी धर्म सरीखा बन गया?

मिथुन चक्रवर्ती

सभी जानते हैं कि रूस में राज कपूर का क्या स्थान है. ‘आवारा’ (1951) और ‘श्री 420’ (1955) जैसी फिल्मों ने न सिर्फ राज कपूर को रूस वासियों का चहेता बनाया था बल्कि अतिशयोक्ति के दर पर खड़ी कई सच्ची कहानियों के अलावा अनेक दंतकथाओं को भी जन्म दिया था. सोशलिस्ट सोच से भरपूर ‘आवारा’ ने द्वितीय विश्व युद्ध के जख्म भरने की कोशिशों में लगे रूस को बड़ा सहारा दिया था और उजले भविष्य की आस लगाए बैठे नौजवान से लेकर स्कूल जाने वाले रूसी बच्चे तक राज कपूर के आशावादी गीतों के दीवाने हुए थे.

रूस में राज कपूर और उनकी फिल्मों की सफलता की एक बड़ी वजह भारतीय सिनेमा के कई कर्णधारों का 50 के दशक के रूसी समाजवाद से प्रभावित होना था. बात चाहे ‘आवारा’ लिखने वाले ख्वाजा अहमद अब्बास की हो या फिर बलराज साहनी से लेकर कैफी आजमी की, रूसी समाजवाद की तरफ झुकाव रखने वाले कई हिंदुस्तानी कलाकारों की वजह से ही हमारी फिल्मों में रूसियों को अपनी झलक नजर आती थी. और फिर साहित्य में रुचि रखने वाले हिंदुस्तानी फिल्मकारों के बीच मैक्सिम गोर्की जैसे रूसी साहित्यकारों का अपना अलग रुतबा तो था ही.

इसीलिए, जब मिथुन चक्रवर्ती की एक खालिस मसाला फिल्म ने बाद के वर्षों में रूसियों के दिल में जगह बनाई, तो कोई यह नहीं समझ पाया कि ऐसा क्यों हुआ! बात सन् 1982 की है, जब मिथुन चक्रवर्ती की ‘डिस्को डांसर’ भारत में प्रदर्शित होने के बाद रूस में रिलीज हुई. इस फिल्म पर न रूसी समाजवाद का असर था और न इसे किसी प्रगतिशील विचारधारा के निर्देशक-लेखक का सानिध्य प्राप्त था. यह तो बस बप्पी लहरी के कुछ चुराए हुए विदेशी गीतों के हिंदी संस्करणों और कूल्हों की मदद लेकर किए गए मिथुन के डांस मूव्ज की वजह से 80 के दशक में हिंदुस्तानी पॉप कल्चर का हिस्सा बनी थी.

रूस के कल्चर का भी हिस्सा, ‘डिस्को डांसर’ इसी वजह से बनी. रूसी समाजवाद और राज कपूर वाले दौर से बाहर आ चुका रूसी युवा 80 के दशक में पलायनवादी सिनेमा में मनोरंजन ढूंढ़ने लगा था और आशावादी बातों से ज्यादा उसे पश्चिम का भौतिकवाद पसंद आने लगा था. इसी वजह से जिस मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में एक जमाने में ‘दो बीघा जमीन’ जैसी यथार्थवादी फिल्में प्रशंसा पाती थीं, वहां पर ‘डिस्को डांसर’ ने हाउसफुल होने के कीर्तिमान रचे. ऐसे कि रूसियों ने इसके निर्देशक बी सुभाष और मिथुन चक्रवर्ती के लिए फिल्म खत्म होने के बाद खड़े होकर तालियां बजाईं!

इस फिल्म के बाद मिथुन चक्रवर्ती को राज कपूर की ही तरह सारा रूस जानने लगा. उन्हें वहां के एयरपोर्ट व सड़कों पर देखकर लोग दौड़े चले आते और जिस तरह आज जस्टिन बीबर के प्रशंसकों को ‘बीलिबर्स’ कहा जाता है, 80 के दशक के रूस में मिथुन चक्रवर्ती के फैन्स को ‘मिथुनिस्ट’ कहा जाता था! रूसी युवा सिर्फ उनके लिए हिंदी सीखते थे और इसलिए पैसे बचाते थे कि एक दिन वे इंडिया आकर अपने पसंदीदा सुपरस्टार से मिल सकें. बाद में दिए अपने साक्षात्कारों में खुद मिथुन भी कहा करते कि मिथुनिज्म रूस में एक धर्म बन गया था और उनके प्रशंसकों में 70 फीसदी केवल लड़कियां हुआ करती थीं.

यह तथ्य आश्चर्यचकित करने वाला जरूर है लेकिन आज भी जब मिथुन उम्र के सात दशक पूरे कर चुके हैं, उनको लेकर रूस में दीवानगी कम नहीं हुई है. 80 के दशक की उन युवा लड़कियों की बेटियां आज मिथुन की फैन हैं! एक लेगेसी मां से बेटी को मिली और भाषा, संस्कार व समय की बंदिशों की परवाह नहीं हुई.

‘डिस्को डांसर’ नामक इस फेनोमिना की सच्ची झलक दिखाती एक रूसी शॉर्ट फिल्म कुछ साल पहले बनी है. इसमें दो अंडों के बदले एक गांव के रूसी बच्चों को फिल्म की टिकिट बेची जाती है और सब मिलकर मिथुन चक्रवर्ती की ‘डिस्को डांसर’ देखते हैं. जो नहीं देख पाते वे रोते हैं, और आप चाहें तो हमारे देसी सुपरस्टार के लिए उस विदेशी दीवानेपन को यहां देख सकते हैं.

इतना ही नहीं. काम की तलाश में ताजिकिस्तान से रूस आए एक गरीब कामगार ने मई 2008 में हार्डवेयर की एक दुकान के स्टोररूम में एक गाना गाया. हार्डवेयर स्टोर की सुरक्षा में तैनात शख्स ने उस गीत को अपने सेलफोन पर रिकॉर्ड किया और आनंद लेने के लिए मॉस्को में रहने वाले अपने भाई को भेज दिया. भाई ने उसे यूट्यूब पर अपलोड कर दिया और एक गरीब मजदूर – जो विस्थापित होकर अपने देश से रूस आया था और सामान ढोकर गुजर-बसर करता था -कुछ ही वक्त बाद पूरे रूस में मशहूर हो गया. इतना कि मजदूरी का काम छोड़ उसने मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग जैसे बड़े शहरों का रूख किया और ‘शो बिजनेस’ का हिस्सा बनकर म्यूजिक कंसर्ट्स से लेकर खुद के प्राइवेट एलबम तक रिकॉर्ड किए.

उस शख्स को रूस में ताजिक ‘जिम्मी’ [1] के नाम से जाना जाता है, और सेलफोन से शूट हुए जिस गाने ने उसे पहली बार मशहूर किया, वो गाना मिथुन दा का ‘जिम्मी जिम्मी आजा आजा’ था! ‘डिस्को डांसर’ फिल्म का एक मशहूर गीत.

शोहरत पाकर ताजिक जिम्मी ने कई लाइव शोज किए और ज्यादातर गाने मिथुन चक्रवर्ती की फिल्मों के गाए. गायक के अलावा उन गीतों की गायिका भी बने और वाद्य यंत्रों की आवाजें भी खुद ही निकालीं. नीचे दिए 2010 के ऐसे ही एक लाइव शो को देखिए, जिसमें वे हिंदी गीतों के दीवाने रूसियों की भीड़ के बीच ‘डिस्को डांसर’ फिल्म के एक दूसरे गाने ‘गोरों की न कालों की’ (वीडियो के सबसे आखिरी हिस्से में) गा रहे हैं. बॉलीवुड सच में एक जादुई जगह है, अब कौन नहीं मानेगा?