यूरेशियन हॉबी (बाज़ प्रजाति की एक चिड़िया)

समाज | चित्रकथा

किसका कचरा, किस-किस को खतरा?

एक जागरुकता अभियान के तहत खींची गई ये तस्वीरें जंगली जानवरों पर हमारे कचरे के घातक असर की सिर्फ एक झलक भर दिखाती हैं

कारा तेजपाल | 09 मार्च 2021 | फोटो: सुकेतुकुमार पुरोहित

कचरा प्रबंधन की एक कारगर व्यवस्था का अभाव भारत को कचरे की भीषण समस्या से जूझने पर मजबूर कर रहा है. इसके चलते हजारों टन कचरा हमारी मिट्टी, पानी और हवा को प्रदूषित कर रहा है. यह न केवल हमारे लिए बल्कि तमाम जानवरों के लिए भी मुसीबत और उनके व्यवहार में बदलाव की वजह बन रहा है.

इस समस्या की तरफ ध्यान खींचने के लिए मैंने और सैंक्चुअरी नेचर फाउंडेशन में मेरी सहयोगी, प्राची गलंगे ने ‘#इन अवर फिल्द’ नाम से एक इंस्टाग्राम प्रोजेक्ट शुरू किया. इस प्रोजेक्ट के तहत हमने देश भर के फोटोग्राफर्स को आमंत्रित किया और उनसे ऐसी तस्वीरें मांगीं जो हमारी वन्य जीवों पर कचरे के असर को दिखाती हों. इस प्रोजेक्ट के तहत इकट्ठी हुई तस्वीरों में से चुनी हुई एक तस्वीर को हम हर हफ्ते ‘सैंक्चुरी नेचर फाउंडेशन’ के इंस्टाग्राम हैंडल पर पोस्ट करते हैं.

यह प्रोजेक्ट सैंक्चुअरी नेचर फाउंडेशन की फोटो लाइब्रेरी से शुरू हुआ था. मेरी सहयोगी गलंगे ने, जो फाउंडेशन में फोटो एडिटर और नैचुरलिस्ट हैं, पाया कि इस तरह की तस्वीरों की संख्या डराने वाली है जिनमें जंगली जानवर बेहद प्रदूषित वातावरण में दिखाई देते हैं. इसके बाद हमें विचार आया कि ‘#इन अवर फिल्द’ को हमें एक जागरुकता अभियान बनाना चाहिए. यह अभियान हमारे रोजमर्रा के इस्तेमाल से पैदा होने वाले कचरे और उन जंगली जानवरों के बीच के संबंध को बताता है जो हमारे साथ इसे साझा करने पर मजबूर हैं.

प्रोजेक्ट ‘#इन अवर फिल्द’ की कुछ तस्वीरें यहां पर हैं:

फोटो: दक्षा बापट

महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में स्थित ताडोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व के बफर ज़ोन में बाघ का यह शावक सीमेंट रखने वाली प्लास्टिक की थैली लिए दिखाई देता है. भारत के कई बाघ अभयारण्यों में बाघों की अच्छी खासी आबादी होने का दावा किया जाता है लेकिन सवाल यह है कि ये सब अब जाएंगे कहां? कई बाघ अब इंसानी बस्तियों के आसपास देखे जाने लगे हैं या फिर ऐसे असुरक्षित जंगलों में जहां इंसानों के साथ इनका टकराव होना ही होना है. इसका ही एक नतीजा इस तस्वीर में भी दिखाई दे रहा है.

फोटो: अरिजीत महता

हम भगवान गजानन की तो पूजा करते हैं लेकिन अपनी गैरजिम्मेदाराना हरकतों के चलते गजराज को ज़हर तक दे देते हैं. सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल में एक जंगली हथिनी कचरे के ढेर में खाना खोजती दिखी. इस तस्वीर में यह सब्जियों से भरे एक प्लास्टिक के बैग को फाड़कर मुंह में डालने की कोशिश कर रही है. अगर हाथी प्लास्टिक निगल लें तो इनकी हालत खराब हो सकती है, यहां तक कि जान भी जा सकती है. ब्रिटेन की एक एनजीओ, एलीफेंट फैमिली के मुताबिक जिन 13 देशों में एशियाई हाथी पाये जाते हैं उनमें से नौ दुनिया के सबसे बुरे कचरा प्रबंधक हैं.

फोटो: ओंकार धारवाड़कर

कव्रेम, गोवा में सुंदर लंबी पूंछ वाला यह ट्री माउस झाड़ी में फंसे पॉलीथीन के पैकेट में घुसा दिखा. हो सकता है, प्लास्टिक का यह महल इस चूहे को बाहरी दुनिया से सुरक्षित लग रहा हो लेकिन असल में यह एक बेहद खतरनाक घर है. प्लास्टिक की यह थैली इसमें रहने वाले के लिए दम घुटने या जहर से मरने की वजह बन सकती है. और आखिर में यह जमीन या पानी को प्रदूषित करेगी ही.

फोटो: मोहन जी.

वालपारई, तमिलनाडु में शेर जैसे झबरीले बालों वाला यह लायन टेल्ड मक़ॉक खाने का एक प्लास्टिक का पैकेट खोलता दिख रहा है. लंगूरों की यह खास और विचित्र प्रजाति पश्चिमी घाट के कुछ ही इलाकों में पाई जाती है. वर्षा वनों में रहने वाले ये जीव मुख्यत: फल खाते हैं और उन्हें यही खाना चाहिए. लेकिन जंगलों के लगातार कम होते या कटते जाने और कचरों का ढेर लगते जाने के कारण, मक़ॉक अपनी आदतें बदलने पर मजबूर हो रहे हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि अब ये जमीन पर ज्यादा वक्त बिता रहे हैं और जिस तरह से इंसानी संपर्क में आ रहे हैं वह इनके सामान्य व्यवहार को बदल रहा है.

फोटो: तरिणी जेई

ब्राउन पाम सिविट या जेर्डन्स पाम सिविट (गंधबिलाव) के इस सुंदर पोट्रेट में इसके आसपास का खतरनाक वातावरण भी दिखाई देता है. तमिलनाडु के नीलगिरि जिले में यह कचरे के ढेर में खाना ढूंढ़ता पाया गया था. यह सुंदर जानवर पश्चिमी घाट के जंगली इलाकों में पाई जाने वाली एक विशेष प्रजाति है. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के मुताबिक ब्राउन पाम सिविट जावनरों की उन प्रजातियों में शामिल है जिनका अस्तित्व खतरे में हैं. रात में जागने और पेड़ों पर रहने वाले इन जीवों का अस्तित्व घने वर्षावनों और रात के अंधेरे से जुड़ा हुआ है. इन्हें दिन के वक्त कचरे में कुछ खोजते हुए देखना त्रासद है.

फोटो: प्रज्जवल केएम

लद्दाख के एक सुदूर इलाके में खींची गई इस तस्वीर में एक हिमालयन मार्मट (पहाड़ी इलाकों में पाई जाने वाली गिलहरी) को देखा जा सकता है. लेकिन तस्वीर में उसका चेहरा नज़र नहीं आता है. इस पहाड़ी गिलहरी ने अपना घोसला बनाने के लिए जो सामान इकट्टा किया है उसमें प्लास्टिक की थैलियां भी शामिल हैं. पर्यटकों का ड्रीम डेस्टिनेशन माना जाने वाला लद्दाख, अनियंत्रित पर्यटन के दुष्प्रभावों का बड़ा शिकार है. इसका अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि लेह शहर से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर ही भारत का सबसे ऊंचा लैंडफिल मौजूद है. इसमें केवल गर्मियों के कुछ महीनों में ही 30,000 से ज्यादा प्लास्टिक की बोतलें कचरे के रूप में जमा हो जाती हैं.

फोटो: ऋषिकेष लांडे

‘जंगल का ये कानून है अंबर सा अटल और सच्चा, जो माने वो फले-फूले जो तोड़े मर जाए पक्का … सियार, बाघ के पीछे चल सकता है लेकिन भेड़िए के बच्चे की जब मूंछे आ जाती हैं तो वह शिकारी कहलाता है और अपना खाना खुद लाता है.’ रुडयार्ड किपलिंग की विश्वप्रसिद्ध ‘द जंगल बुक’ में भेड़ियों का झुंड जंगल के कानून की यह लाइनें सुनाता है. लेकिन अहमदनगर, महाराष्ट्र के मैदानी इलाकों में जंगल का यह कानून टूट गया. यह सुंदर भेड़िया कचरे के ढेर में नाक घुसाते, पन्नियां फाड़ते और गंदगी पर घूमते हुए कैमरे में दर्ज हुआ.

फोटो: सुकेतुकुमार पुरोहित

कच्छ के छोटे रण में यूरेशियन हॉबी (बाज़ प्रजाति की एक चिड़िया) एक चप्पल वाले अपने सिंहासन पर विराजमान है. छोटे रण में अभी भी वन्य जीवों की कमी नहीं है लेकिन अपस्ट्रीम हाइड्रोलजी, नमक उद्योग के दबाव और पर्यटन के असर के चलते यहां पर हो रहे अप्राकृतिक बदलाव इनके लिए खतरा बढ़ाते जा रहे हैं.

फोटो: संतोष निंबालकर

महाराष्ट्र के तिपेश्वर वन्यजीव अभयारण्य में एक बाघ शावक ने लापरवाही से फेंकी गई प्लास्टिक की बोतल उठाई हुई है. इन इलाकों में अनियंत्रित और अनियमित पर्यटन ने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ा दिया है. भारत के नैशनल पार्कों और अभयारण्यों में जाने वाले पर्यटक यह नहीं समझते हैं कि वे केवल पैक किये हुए खाद्य और पेय पदार्थो से दूरी बरतकर या उन्हें ठीक से ठिकाने लगाकर इन इलाकों में अपनी उपस्थिति के असर को कम कर सकते हैं.

फोटो: अनिर्बान रॉय चौधरी

धूल में सने रहने वाले शहर गुरूग्राम में दो एकाकी, पीली चोंच वाले लैपविंग्स कचरे के ढेर में खाना खोजते दिखे. ये पक्षी जमीन पर घोसला बनाते हैं और इस बात की कल्पना करना कठिन है कि इंसान के गैरजिम्मेदाराना रवैये ने इन्हें कैसा जीवन जीने पर मजबूर कर दिया है.

फोटो: तीर्थ वैष्णव

छोटे सर्वाहारी जीवों जैसे कि भारतीय ट्री श्रू के लिए कचरे का डिब्बा किसी भोज जैसा होता है जहां ये जो चाहें खा सकते हैं. ये जीव पकाये हुए खाने और फल-सब्जियों के टुकड़ों के साथ, कचरे के ढेर पर मिलने वाले कीड़े-मकोड़ों को भी खा सकते हैं. ऐसे स्थानों पर इनके लायक खाने की उपलब्धता ने इन डरपोक स्वाभाव वाले जानवरों को अपना प्राकृतिक निवास छोड़ने और दूसरे जानवरों की उपस्थिति में रहने के लिए मजबूर कर दिया है. मानव से इतनी निकटता इन जंगली जानवरों के लिए घातक हो सकती है: यहां कुत्ते-बिल्लियां इन पर हमला कर सकते हैं और कचरे के ढेर में मिलने वाला खाना भी इनके लिए नुकसानदेह हो सकता है.

फोटो: वैदेही गुंजाल

धारवाड़, कर्नाटक में गंदगी से भरे जलाशय में एक चेकर्ड कीलबैक (पानी में मिलने वाला एक एशियाई सांप) को खाना मिला. लेकिन तस्वीर में दिख रही गंदगी तो सिर्फ एक बानगी है. भारत सरकार के थिंकटैंक, नीति आयोग के मुताबिक भारत में 70 फीसदी पानी प्रदूषित है और लगभग 60 करोड़ लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं. ऐसे में जल जीवों के बारे में सोचने की फुर्सत किसे है.

फोटो: अग्नीश्वर घोषाल

सुंदर, काली आंखों वाली चिड़िया लिटिल रिंग्ड प्लोवर (टिटिहरी) की यह तस्वीर बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बहने वाली अजय नदी के किनारे खींची गई है. इसमें नदी किनारे फेंकी गई एक प्लास्टिक की बोतल भी दिखाई देती है. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में हर मिनट लगभग दस लाख पानी या शीतल पेय की प्लास्टिक की बोतलें बेची जाती हैं. इनमें से ज्यादातर कभी रिसायकल नहीं होतीं और इन्हें पीकर फेंकने वालों के जीवन से कई गुना ज्यादा समय तक धरती पर मौजूद रह सकती हैं.


कारा तेजपाल सैंक्चुरी नेचर फाउंडेशन में वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशनिस्ट हैं.

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