विराट कोहली

खेल | क्रिकेट

क्या बर्ताव में थोड़ा संयम बरतकर कोहली और ‘विराट’ हो सकते हैं?

विराट कोहली का खेल अगर उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाता है तो उनसे जुड़े विवाद उनका एक ऐसा प्रतिपक्ष रचते हैं जो निरंतर उनकी आलोचना करता रहता है

सत्याग्रह ब्यूरो | 16 सितंबर 2021 | फोटो: यूट्यूब

विराट कोहली उपलब्धियों के शिखर पर खड़े हैं और क्रिकेट के सर्वकालिक महानतम बल्लेबाजों की जब भी बात चलती है तो उनका नाम भी चलता है. बात अगर आंकड़ों की जाए तो विराट कोहली दुनिया के महानतम बल्लेबाज नजर आते भी हैं. गाहे-बगाहे इस बात की भी चर्चा शुरू हो जाती है कि क्या बतौर खिलाड़ी विराट कोहली क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर से भी आगे हैं. लेकिन अद्भुत प्रतिभाशाली यह बल्लेबाज जब तब आलोचना का शिकार भी बनता ही रहता है. इस आलोचना की ज्यादातर वजह होती है उनकी जिद और आक्रामकता.

विराट कोहली खेल के जिस स्तर तक पहुंच चुके हैं वहां आंकड़ों और पारियों के आधार पर सचिन से उनकी तुलना चलती रहेगी. लेकिन सवाल उठता है कि आम जनमानस में जिस प्रकार का नायकत्व और प्रतिष्ठा सचिन ने हासिल की क्या वह विराट कोहली को भी हासिल है. इस सवाल के जवाब के लिए भारतीय क्रिकेट के परिदृश्य पर एक नजर डालनी होगी.

दब्बू होने की हद तक सौम्य माने जाने वाले भारतीय क्रिकेट को सौरव गांगुली ने अपनी कप्तानी से एक आक्रामकता दी थी. फिर महेंद्र सिंह धोनी ने अपने तरीके से इस आक्रामकता के देशज स्वरूप को बनाए रखा. अब विराट कोहली जो भूमिका निभा रहे हैं, उसे देखते हुए उन्हें इस शैली का अग्रदूत कहा जा सकता है. बतौर बल्लेबाज बैट-पैड साथ लाकर बेहद शास्त्रीय तरीके से खेलने वाले विराट कोहली मैदान पर इतने आक्रामक रहते हैं कि कभी-कभी कुछ लोगों को अपच सी होने लगती है.

अपने पर भरोसा और फैसलों को लेकर दृढ़ता एक अच्छे कप्तान की निशानी है, लेकिन विराट कोहली के मामल में क्या यह द़ृढ़ता कई बार जिद्दी होने तक चली जाती है? बहुत सारी सफलताओं और प्रशंसा के बाद भी आज विराट पर यह आरोप चस्पा है कि वे भारतीय क्रिकेट टीम में खिलाड़ियों के चयन से लेकर कोच तक के चयन में हावी रहते हैं. लेकिन इन दिनों वे अचानक भारतीय टी-20 टीम का कप्तान पद छोड़ देने को लेकर चर्चा में हैं.

विराट कोहली को लेकर पहला बड़ा विवाद तब सामने आया जब 2017 में अनिल कुंबले ने भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच का पद छोड़ दिया. कुंबले ने इस बारे में कभी ज्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन क्रिकेट के जानकार मानते हैं कि उनका सख्त अनुशासन वाला रवैया विराट कोहली को पसंद नहीं आया. इस बात की भी चर्चा रही कि कोहली ने लंदन में बीसीसीआई के बड़े पदाधिकारियों से अनिल कुंबले की शिकायत की.

भारत में कोच-कप्तान विवाद का यह कोई पहला मौका नहीं था, लेकिन यह चैपल-गांगुली विवाद जैसा भी नहीं था. क्रिकेट के जानकारों ने कुंबले के कोच पद से इस्तीफे की व्याख्या भारतीय क्रिकेट प्रशासन में ‘स्टार कल्चर’ की आमद के तौर पर की. अनिल कुंबले भारतीय क्रिकेट का एक बड़ा नाम थे और उनकी छवि हमेशा एक सौम्य और अनुशासित खिलाड़ी की रही. इस विवाद के बाद चाहे-अनचाहे यह संदेश गया कि क्रिकेट कप्तान के रूप में विराट कोहली सब कुछ अपनी पसंद का चाहते हैं.

इस प्रकरण के बाद ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की प्रशासक समिति से मशहूर इतिहासकार और क्रिकेट लेखक रामचंद्र गुहा ने इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने इस बात को खुलेआम जाहिर किया कि अनिल कुंबले जैसे महान खिलाड़ी के साथ बीसीसीआई का रवैया बिल्कुल ठीक नहीं था. यह शायद पहला मौका था, जब आम जनमानस के साथ भारतीय क्रिकेट पर राय बनाने वाले विशिष्ट वर्ग ने भी विराट कोहली के व्यवहार पर सवाल उठाए. रामचंद्र गुहा ने यहां तक कहा कि बीसीसीआई के पदाधिकारी कोहली की जितनी पूजा करते हैं, उतनी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उनकी कैबिनेट भी नहीं करती.

हालांंकि, अब बीसीसीआई का निजाम बदल चुका है और एक जमाने में खुद बेहद आक्रामक कप्तान रहे सौरव गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष हैं. इस ताजपोशी के बाद भी चाहे-अनचाहे समीकरण बदलने की बात पर विराट की चर्चा हो रही है. बहुत सारे विश्लेषक मानते हैं कि रवि शास्त्री कोहली के कहने के हिसाब से चलने वाले कोच हैं. सौरव गांगुली और शास्त्री के बीच मनमुटाव जगजाहिर है. इस बात का विश्लेषण इस रूप में किया जा रहा है कि बतौर कप्तान अब बीसीसीआई प्रबंधन में कोहली की धमक घटेगी. टीम इंडिया के एक और सुपर स्टार खिलाड़ी रोहित शर्मा से विराट के मनमुटाव की खबरें मीडिया में आती ही रहती हैं. तो क्रिकेटर से सांसद बने गौतम गंभीर जैसे पूर्व खिलाड़ी इशारों में यह भी कह देते हैं, विराट एक औसत कप्तान है और टीम इंडिया को इसलिए सफलता मिल रही थी कि उसमें महेंद्र सिंह धोनी जैसे अनुभवी पूर्व कप्तान हैं. इन चर्चाओं से विराट कोहली का सीधा लेना-देना नहीं है, लेकिन जानकार कहते हैं कि उनके जैसे सफल क्रिकेटर पर तंज कसे जाते हैं तो इसका वजह उनका व्यवहार ही है. वर्ना विराट सफलता के उस शिखर पर है कि उन पर तंज कसने का साहस कोई आसानी से नहीं जुटा सकता था.

मैदान पर विराट कोहली का प्रदर्शन उन्हें हर तरह की आलोचना के असर से बचाता रहा है. मसलन, अपनी कप्तानी के शुरुआती 38 टेस्ट मैचों में उन्होंने हमेशा टीम बदली. लेकिन इसको लेकर होने वाली आलोचना को उनके और टीम के प्रदर्शन ने शून्य कर दिया. बतौर खिलाड़ी विराट कोहली जैसे-जैसे सफलता के पायदान चढ़ते गए, सार्वजनिक मंचों पर भी उनकी आक्रामकता भी झलकने लगी. अनिल कुंबले के बाद आए कोच रवि शास्त्री हमेशा कोहली के सुर में सुर मिलाते दिखे. यहां तक की सुनील गावस्कर तक की सलाह और आलोचना दोनों को नागवार गुजरने लगी. इससे लोग यह मानने लगे कि कुंबले प्रकरण में कोहली की भूमिका वाकई ठीक नहीं थी और वे एक हां में हां मिलाने वाला कोच चाहते थे.

नवंबर 2018 में एक मोबाइल एप के लांच के मौके पर विराट कोहली के साथ बातचीत में एक प्रशंसक ने कहा कि वह उन्हें एक ओवररेटेड बल्लेबाज मानता है और उसे इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के बल्लेबाज भारतीय बल्लेबाजों के मुकाबले ज्यादा पसंद हैं. इस बात पर विराट अपनी प्रतिक्रिया संयमित नहीं रख सके और कहा कि अगर उन्हें भारतीय बल्लेबाज नहीं पसंद हैं तो उन्हें भारत छोड़कर किसी और देश में रहना चाहिए. उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और उन्हें कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा.

उस समय सोशल मीडिया पर कोहली को लोगों ने यह भी याद दिलाया था कि एक समय वे खुद हर्शल गिब्स को अपना पसंदीदा बल्लेबाज बता चुके हैं, इसलिए इस तर्क के मुताबिक उन्हें भी देश छोड़ देना चाहिए. विराट कोहली का यह बयान हतप्रभ कर देने वाला था और इस पर उनके प्रशंसकों को भी बचाव के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे. बहुत से लोग मानते हैं कि आफ स्टंप के बाहर स्विंग करती गेंदों को सफाई से छोड़ने वाले विराट कोहली इस तरह के विवादों की आउटस्विंगर को अक्सर नहीं छोड़ पाते हैं.

जानकार मानते हैं कि इस तरह के विवाद और वक्तव्य लोगों की राय प्रभावित करते हैं और किसी स्टार खिलाड़ी के बारे में पक्ष-प्रतिपक्ष बनाने में मदद करते हैं. मैदान पर विराट कोहली का खेल अगर उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाता है तो ऐसे विवाद उनका एक प्रतिपक्ष भी रचते हैं जो निरंतर उनकी आलोचना करता है. आलोचकों को मौके विराट कोहली के मैदान पर प्रदर्शन से नहीं, मैदान के बाहर के वाकयों से मिलते हैं. मशहूर क्रिकेट कमेंटेटर हर्षा भोगले की मानें तो विराट जैसी मशहूर शख्सियत को इस तरह के उकसावों से बचना चाहिए.

पिछले साल एक टीवी शो पर हार्दिक पंड्या और केएल राहुल की महिलाओं के प्रति अपमानजनक टिप्पणी की विराट कोहली ने आलोचना की. लेकिन इस पर भी उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल होना पड़ा. इस बयान के बाद लोगों ने उनका एक पुराना वीडियो निकाला, जिसमें उन्होंने एक लड़की को बदसूरत कहा था. कई जानकार मानते हैं कि अपने स्वभाव की आक्रामकता के चलते विराट कोहली की छवि एक हेकड़ी वाली बन गई है और सोशल मीडिया के इस दौर में उनका एक स्थायी विपक्ष बन गया है.

कई पूर्व क्रिकेटर मैदान पर विराट कोहली के रवैये को ठीक मानते हैं, लेकिन मैदान के बाहर उनकी आक्रामकता को गैरजरूरी. मैच से पहले की कई प्रेस कान्फ्रेंसों में विरोधी टीम के खिलाड़ियों को जवाब देने में विराट कोहली थोड़े बड़बोले नजर आते हैं. पिछले साल भारत के आस्ट्रेलिया दौरे के बाद प्रसिद्ध अभिनेता और क्रिकेट के गहरे जानकार नसीरुद्दीन शाह ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा कि कोहली दुनिया के सबसे बेहतर बल्लेबाज होने के साथ सबसे खराब व्यवहार वाले खिलाड़ी हैं.

जानकार मानते हैं कि बतौर खिलाड़ी अपनी करियर की शुरुआत के बाद ही विराट कोहली की तुलना ‘क्रिकेट के भगवान’ सचिन तेंदुलकर से की जाने लगी. बल्ले से विराट ने खुद को सचिन का योग्य उत्तराधिकारी साबित किया, लेकिन सचिन के व्यक्तित्व में सौम्यता और विवादों से दूर रहने की जो प्रवृत्ति थी, वह विराट कोहली नहीं ला सके. विवादों से बचना तो दूर की बात है, कई बार वे खुद उनको न्यौता देते जान पड़ते हैं.

भारत में नायक से हमेशा एक किस्म की सदाशयता की उम्मीद की जाती है. भारतीय समाज में पौराणिक नायक के रूप में भी राम मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में इसलिए भी प्रतिष्ठित होते हैं कि वे मध्यमवर्गीय मूल्यों के वाहक हैं. भारतीय खेल जगत को भी सचिन के रुप में ऐसा नायक मिला जिसने भारतीय समाज को अपनी विनम्रता का कायल बना दिया. एक ऐसा खिलाड़ी जो पूरे देश की अपेक्षाओं का बोझ ढोता रहा, लेकिन जिसने अपनी आलोचनाओं पर कभी पलटवार नहीं किया. सचिन की इन्हीं खूबियों ने एक तरह से उन्हें भारतीयता का पर्याय बना दिया. ऐसी अपेक्षाओं ने शायद सचिन को और सतर्क कर दिया और वे कभी किसी राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर भी बोलने से बचते रहे, भले ही इसके लिए उनकी आलोचना भी हुई.

लेकिन विराट कोहली अपने व्यवहार में ज्यादा मुखर हैं और पूर्व क्रिकेटर्स या मीडिया की आलोचना पर वैसा संयम नहीं रख पाते जैसा सचिन रखते थे. यह उनके व्यवहार की स्वाभाविकता भी हो सकती है. मसलन अपनी फिल्म स्टार पत्नी अनुष्का शर्मा के उनके साथ होने को लेकर जब उनको ट्रोल किया गया तो उनके जवाब की प्रशंसा भी हुई. विराट कोहली के आक्रामक व्यवहार की पूर्व क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स समेत कई लोग ताऱीफ भी करते हैं. लेकिन अगर क्रिकेट की भाषा में ही कहें तो फुलटॉस और बाउंसर पर एक ही शाट नहीं लगाया जा सकता. मैदान पर इस बात को खूब समझने वाले विराट कोहली कई बार मैदान के बाहर इसमें चूक कर जाते हैं और उन्हें आलोचना झेलनी पड़ती है.

ऐसा भी नहीं लगता कि विराट कोहली इस सबसे पूरी तरह अनभिज्ञ हों. बीच-बीच में उनकी ओर से अपनी छवि सुधार की कोशिश होती है. जैसे, कुछ साल पहले उनको लेकर विवाद बढ़े तो उन्होंने राजस्थान में एक हाथी के साथ क्रूरता को लेकर राज्य के वन विभाग को एक पत्र लिखा. लेकिन उनकी इस तरह की कोशिश उनके बारे में प्रचलित धारणा को बदलती नजर नहीं आती. एक क्रिकेट प्रेमी कहते हैं कि उन्हें छवि सुधार की नहीं, व्यवहार सुधार की जरुरत है.

दुनिया विराट कोहली से शतकों के शतक की उम्मीद कर रही है. क्रिकेट की दुनिया के ‘विराट’ खिलाड़ियों के क्लब में तो वे पहले ही शामिल हो चुके हैं. बहुत से लोग मानते हैं कि अगर वे अपने व्यवहार को थोड़ा संयमित रखें तो और भी ‘विराट’ हो सकते हैं.

>> सत्याग्रह को ईमेल या व्हाट्सएप पर सब्सक्राइब करें

 

>> अपनी राय हमें [email protected] पर भेजें

 

  • राधा-कृष्ण

    समाज | धर्म

    आखिर कैसे एक जनजातीय नायक श्रीकृष्ण हमारे परमपिता परमेश्वर बन गए?

    सत्याग्रह ब्यूरो | 19 अगस्त 2022

    15 अगस्त पर एक आम नागरिक की डायरी के कुछ पन्ने

    राजनीति | व्यंग्य

    15 अगस्त पर एक आम नागरिक की डायरी के कुछ पन्ने

    अनुराग शुक्ला | 15 अगस्त 2022

    15 अगस्त को ही आजाद हुआ पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को क्यों मनाता है?

    दुनिया | पाकिस्तान

    15 अगस्त को ही आजाद हुआ पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को क्यों मनाता है?

    सत्याग्रह ब्यूरो | 14 अगस्त 2022

    जवाहरलाल नेहरू अगर कुछ रोज़ और जी जाते तो क्या 1964 में ही कश्मीर का मसला हल हो जाता?

    समाज | उस साल की बात है

    जवाहरलाल नेहरू अगर कुछ रोज़ और जी जाते तो क्या 1964 में ही कश्मीर का मसला हल हो जाता?

    अनुराग भारद्वाज | 14 अगस्त 2022

  • प्रेम के मामले में इस जनजाति जितना परिपक्व होने में हमें एक सदी और लग सकती है

    समाज | विशेष रिपोर्ट

    प्रेम के मामले में इस जनजाति जितना परिपक्व होने में हमें एक सदी और लग सकती है

    पुलकित भारद्वाज | 17 जुलाई 2022

    संसद भवन

    कानून | भाषा

    हमारे सबसे नये और जरूरी कानूनों को भी हिंदी में समझ पाना इतना मुश्किल क्यों है?

    विकास बहुगुणा | 16 जुलाई 2022

    कैसे विवादों से घिरे रहने वाले आधार, जियो और व्हाट्सएप निचले तबके के लिए किसी नेमत की तरह हैं

    विज्ञान-तकनीक | विशेष रिपोर्ट

    कैसे विवादों से घिरे रहने वाले आधार, जियो और व्हाट्सएप निचले तबके के लिए किसी नेमत की तरह हैं

    अंजलि मिश्रा | 13 जुलाई 2022

    हम अंतिम दिनों वाले गांधी को याद करने से क्यों डरते हैं?

    समाज | महात्मा गांधी

    हम अंतिम दिनों वाले गांधी को याद करने से क्यों डरते हैं?

    अपूर्वानंद | 05 जुलाई 2022