अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन से हार के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप को सात करोड़ वोट मिले हैं जो कि एक रिकॉर्ड है
अभय शर्मा | 18 नवंबर 2020
अमेरिका में बीते हफ्ते संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन की जीत हुई. बाइडेन को कुल 290 इलेक्टोरल वोट मिले, जबकि रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 214 इलेक्टोरल वोट हासिल हुए. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए 270 इलेक्टोरल वोटों की जरूरत होती है. भले ही इस चुनाव में जो बाइडेन की जीत हुई हो, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप भी आखिर तक मुकाबले में बने रहे. विस्कॉन्सिन, जॉर्जिया, एरिज़ोना और पेनसिल्वेनिया के नतीजों पर दो दिनों बाद जीत का फैसला हो सका. इन सभी जगहों पर दोनों प्रत्याशियों के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिला और अंत में इन राज्यों में डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत बेहद कम वोटों से हुई. इन सभी राज्यों में दोनों उम्मीदवारों के बीच वोटों का अंतर एक फीसदी से भी कम रहा. इसके अलावा कई अन्य राज्यों में भी दोनों के वोटों में कोई बड़ा अंतर नहीं देखने को मिला.
अगर मतों की बात करें तो इस चुनाव में जो बाइडेन को कुल 50.7 फीसदी (7,54,04,182) वोट और डोनाल्ड ट्रंप को 47.7 फीसदी (7,09,03,094) वोट हासिल हुए. बाइडेन को इस चुनाव जितने वोट मिले, उतने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में पहले किसी प्रत्याशी को नहीं मिले थे. हालांकि, इससे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि ट्रंप ने भी इस चुनाव में रिकॉर्ड मत हासिल किये. उनसे पहले राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में हारने वाला कोई भी उम्मीदवार उनके बराबर वोट हासिल नहीं कर सका.
बीते साल जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई थी, तब से ही सर्वेक्षणों में डोनाल्ड ट्रंप डेमोक्रेटिक पार्टी के दावेदारों से पीछे दिख रहे थे. इसके बाद आर्थिक सुस्ती और फिर कोरोना वायरस के कारण लाखों अमेरिकियों की मौत के चलते वे जो बाइडेन से काफी पीछे हो गए. राष्ट्रपति चुनाव से पहले हुए ज्यादातर सर्वेक्षणों में यह कहा गया कि इसमें डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार की एकतरफा जीत होने वाली है. लेकिन चुनाव परिणामों को देखें तो ऐसा बिलकुल नहीं हुआ, दावों से उलट दोनों प्रत्याशियों के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिला. अमेरिका सहित पूरी दुनिया में अधिकांश लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि आखिर डोनाल्ड ट्रंप को इतने ज्यादा वोट कैसे मिल गए और वे कौन लोग हैं जो उनके फैसलों के बाद भी उन्हें राष्ट्रपति बनते देखना चाहते हैं.
डोनाल्ड ट्रंप को किसने वोट दिया
2016 के राष्ट्रपति चुनाव में श्वेत आबादी डोनाल्ड ट्रंप की जीत का बड़ा कारण बनी थी. इस बार भी इसी तबके ने उन्हें दिल खोलकर अपना समर्थन दिया. एडिसन रिसर्च द्वारा चुनाव के बाद किये गए सर्वेक्षण की मानें तो राष्ट्रपति ट्रंप को करीब 58 फीसदी श्वेत लोगों ने वोट दिया. जबकि बाइडेन पर 41 फीसदी श्वेत आबादी ने ही भरोसा जताया. एसोसिएट प्रेस (एपी) ने अमेरिका के अलग-अलग हिस्सों में एक सर्वेक्षण किया जिसमें एक लाख दस हजार से ज्यादा वोटरों को शामिल किया गया. इस सर्वेक्षण के नतीजों के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप को इस बार 59 फीसदी श्वेत पुरुषों और 52 फीसदी श्वेत महिलाओं ने वोट दिया. बाइडेन की बात करें तो उन पर केवल 39 फीसदी श्वेत पुरुषों और 46 फीसदी श्वेत महिलाओं ने ही भरोसा जताया. श्वेत महिलाओं और पुरुषों की तरह ही श्वेत युवाओ में भी डोनाल्ड ट्रंप की लोकप्रियता 2016 की तरह ही बरकरार रही.
डोनाल्ड ट्रंप को इस चुनाव में बड़ी संख्या में वोट मिलने के पीछे का एक बड़ा कारण चर्च या धार्मिक प्रवत्ति के लोग भी हैं. उन्हें इस बार भी ईसाइयों की एक परंपरावादी शाखा ‘इवेंजलिस्ट’ का बड़ा समर्थन मिला. अमेरिका में ‘इवेंजलिस्ट’ से जुड़े ईसाइयों की संख्या 10 करोड़ से ज्यादा है और इन्हें ‘इवेंजलिकल्स’ कहते हैं. अमेरिका के कुल वोटरों में 23 फीसदी श्वेत इवेंजलिकल्स वोटर हैं. एपी के सर्वेक्षण के मुताबिक ट्रंप को हर दस में आठ यानी 80 फीसदी श्वेत इवेंजलिकल्स ने वोट दिया. 2016 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भी श्वेत इवेंजलिकल्स ने डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी. एक सर्वेक्षण के मुताबिक तब भी करीब 80 फीसदी श्वेत इवेंजलिकल्स ने डोनाल्ड ट्रंप को वोट दिया था जबकि केवल 16 फीसदी ने ही हिलेरी क्लिंटन पर विश्वास जताया था. इवेंजलिकल्स द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को इतना बड़ा समर्थन देने के पीछे एक बड़ी वजह ‘यरुशलम’ है. 2016 में डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान इवेंजलिकल्स से वादा किया था कि वे राष्ट्रपति बनने पर यरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करेंगे. डोनाल्ड ट्रंप का यह वादा उनके तीन प्रमुख चुनावी वादों में से एक था. 2018 में जब उन्होंने इवेंजलिकल्स से किया अपना वादा पूरा किया तो इस तबके में ट्रंप की लोकप्रियता और बढ़ गयी.
इवेंजलिकल्स वोटरों को खुश करने के लिए ही डोनाल्ड ट्रंप ने बतौर राष्ट्रपति इजरायल के पक्ष में और फ़लस्तीन के विरोध में कई और फैसले भी लिए. बीते अगस्त में उन्होंने यूएई और इजरायल की मित्रता भी इसीलिए करवाई थी. तब कई जानकारों का मानना था कि डोनाल्ड ट्रंप ने यह मित्रता इसलिए करवायी है क्योंकि उन्हें इसका आगामी राष्ट्रपति चुनाव में फायदा मिल सके. मध्य-पूर्व के कई देशों में भारत के राजदूत रह चुके नवदीप सूरी ने अपनी एक टिप्पणी में लिखा, ‘यूएई और इजरायल के बीच हुई इस डील ने डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव प्रचार को बड़ा फायदा पहुंचाया है, इससे वे एक बार फिर इवेंजलिकल्स समुदाय के मतदाताओं के बीच अपनी पैठ मजबूत कर सकते हैं.’
अन्य धार्मिक तबकों में भी डोनाल्ड खासे लोकप्रिय रहे. आम तौर पर लैटिन अमेरिकियों को डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थक माना जाता है. इस चुनाव में भी महज 35 फीसदी लैटिन अमेरिकियों ने ही डोनाल्ड ट्रंप को वोट दिया. लेकिन एपी के सर्वेक्षण के मुताबिक जो लैटिन अमेरिकी इवेंजलिस्ट से जुड़े थे, उनमें से 61 फीसदी लोगों ने ट्रंप पर भरोसा जताया. कुछ यही तस्वीर कैथोलिक चर्च से जुड़े अमेरिकियों के मामले में भी देखने को मिलती है. इस बार के चुनाव में कुल वोटरों में 22 फीसदी कैथोलिक वोटर थे. इनमें से 50 फीसदी ने डोनाल्ड ट्रंप, जबकि 49 फीसदी ने जो बाइडेन को वोट दिया. श्वेत कैथोलिक वोटरों के मामले में यह आंकड़ा डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में और भी बड़ा था. उन्हें 57 फीसदी श्वेत कैथोलिक वोटरों ने वोट दिया जबकि बाइडेन के मामले में यह आंकड़ा 42 फीसदी ही रहा. अमेरिका में ईसाईयों के एक अन्य संगठन ‘चर्च ऑफ़ जीसस क्राइस्ट ऑफ़ लैटर-डे सेंट्स’ से जुड़े अधिकांश लोगों ने भी डोनाल्ड ट्रंप को ही अपना वोट दिया. इस संगठन से जुड़े 71 फीसदी लोगों ने ट्रंप पर और 24 फीसदी ने बाइडेन पर अपना दांव लगाया.
डोनाल्ड ट्रंप को बड़ी संख्या में वोट मिलने के पीछे अमेरिका के छोटे शहरों और गांवों ने भी अहम भूमिका निभायी. छोटे शहरों में उन्हें 55 फीसदी और गांवों में 65 फीसदी वोट मिले. इसके अलावा डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के वोटरों में शिक्षा के मामले में भी अंतर देखने को मिला. जहां कॉलेज शिक्षा हासिल कर चुके लोगों की पहली पसंद जो बाइडेन रहे, वहीं बगैर डिग्री वाले अमेरिकी मतदाताओं ने डोनाल्ड ट्रंप को तरजीह दी.
डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों की सोच बिल्कुल उनके जैसी
डोनाल्ड ट्रंप पर बड़ी संख्या में एक बार फिर भरोसा जताने वाले उनके समर्थक बिल्कुल उनकी ही तरह सोचते हैं या फिर कहें तो ये लोग अधिकांश मुद्दों पर ट्रंप की बात को ही सही मानते हैं. इस साल मार्च-अप्रैल में जब अमेरिका में कोरोना वायरस तेजी से पांव पसार रहा था तो डोनाल्ड ट्रंप इस पर लगाम लगाने को लेकर इसलिए कोई फैसला नहीं ले रहे थे क्योंकि उससे अर्थव्यवस्था को चोट पहुंच सकती थी. उन्होंने हमेशा कोरोना से ज्यादा अर्थव्यवस्था को तरजीह दी. डोनाल्ड ट्रंप के अधिकांश समर्थक भी बिलकुल यही सोच रखते हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एडिसन रिसर्च के एक सर्वेक्षण के अनुसार 83 फीसदी रिपब्लिकन समर्थकों का मानना है कि इस समय अर्थव्यवस्था अमेरिका का सबसे बड़ा मुद्दा है. जबकि 81 फीसदी डेमोक्रेटिक समर्थकों का कहना था कि इस समय कोरोना वायरस से बड़ा मुद्दा दूसरा कोई नहीं है.
सर्वेक्षण में जब यह पूछा गया कि पहले अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करना चाहिए या फिर कोरोना वायरस को खत्म किया जाना चाहिए? इसके जवाब में 78 फीसदी रिपब्लिकन समर्थकों का कहना था कि सबसे पहले अर्थव्यवस्था को संभाला जाए, उसके बाद कोरोना वायरस पर काम किया जाना चाहिए. हालांकि, डेमोक्रेटिक पार्टी के 79 फीसदी समर्थकों का कहना था कि देश की सरकार को सबसे पहले कोरोना वायरस पर लगाम कसनी चाहिए क्योंकि कोरोना के चलते ही अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा है. अमेरिकी जानकारों की भी राय है कि पहले कोरोना वायरस के संकट को दूर करने पर काम किया जाना चाहिए, उसके बाद ही अर्थव्यवस्था पर ध्यान दिया जाए. इन लोगों के मुताबिक जब कोरोना वायरस का संकट दूर हो जाएगा तो अर्थव्यवस्था खुद-ब-खुद पटरी पर आ जाएगी. क्योंकि तब स्कूल और दफ्तर खुल जाएंगे, लोग अपने घरों से निकलकर बाजार, बार और रेस्टोरेंट जैसी जगहों पर जाने लगेंगे.
अमेरिका में अब तक दो लाख से ज्यादा लोगों की कोरोना वायरस के चलते जान जा चुकी है. इसके बावजूद 84 फीसदी रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों का मानना है कि वर्तमान सरकार कोरोना वायरस को रोकने के लिए बेहतर प्रयास कर रही है. कोरोना वायरस के चलते अमेरिका में लाखों लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं. आंकड़ों के मुताबिक द्वितीय विश्व युद्ध के बाद देश में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है. इसके बावजूद महज 29 फीसदी रिपब्लिकन समर्थकों का ही मानना है कि उन्होंने महामारी के दौरान गंभीर आर्थिक परेशानी का अनुभव किया. डोनाल्ड ट्रंप ने अपने प्रचार के दौरान कई दिनों तक मास्क नहीं लगाया था और कई बार सार्वजनिक रूप से लगाने से इंकार भी कर दिया था. उनके समर्थक भी इस मामले में उनकी तरह ही सोच रखते हैं, 73 फीसदी रिपब्लिकन समर्थकों का कहना है कि मास्क लगाना किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद या नापसंद होनी चाहिए. जबकि 64 प्रतिशत डेमोक्रेटिक समर्थक मास्क पहनने को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य जिम्मेदारी मानते हैं.
जो बाइडेन किन लोगों की पसंद रहे
डोनाल्ड ट्रंप को वोट देने वालों के बारे में जानने के बाद यह सवाल उठता है कि जब इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने उनके नाम पर मोहर लगायी तो फिर डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी जो बाइडेन किन लोगों की ज्यादा पसंद रहे? कई अलग-अलग सर्वेक्षणों की मानें तो जो बाइडेन पर श्वेत तबके को छोड़कर हर किसी ने ज्यादा भरोसा जताया. अश्वेत और लैटिन अमेरिकी लोगों ने इस चुनाव में लगभग एकतरफा होकर डेमोक्रेटिक पार्टी के पक्ष में मतदान किया. अमेरिका के कुल वोटरों में 11 फीसदी अश्वेत हैं. तीन अलग सर्वेक्षणों के मुताबिक पूरे अमेरिका में करीब 90 फीसदी अश्वेतों की पसंद जो बाइडेन रहे. इनमें से 87 फीसदी अश्वेत पुरुष और 93 फीसदी अश्वेत महिलाएं हैं. जानकारों की मानें तो जॉर्जिया, मिशिगन, विस्कॉन्सिन और पेनसिल्वेनिया जैसे राज्यों में कांटे की टक्कर के बाद भी अगर बाइडेन ने जीत हासिल की तो इसकी वजह अश्वेत वोटरों का समर्थन ही था. अमेरिकी पत्रकारों की मानें तो अगर यह तबका राष्ट्रपति चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लेता तो इन राज्यों में ट्रंप की जीत निश्चित थी.
अश्वेत वोटरों के डेमोक्रेटिक पार्टी को बड़ी संख्या में वोट देने के पीछे का कारण डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद इस तबके पर हुए अत्याचार और नस्लीय भेदभाव है. कई मीडिया रिपोर्ट भी इस बात की तस्दीक करती हैं. वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक 2015 से लेकर अब तक अमेरिका में पुलिस की गोलीबारी के करीब 4,400 मामले दर्ज किए गए हैं. अखबार के मुताबिक अमेरिका में अश्वेतों की आबादी सिर्फ 13 प्रतिशत ही है, लेकिन पुलिस की गोली से मरे लोगों का एक चौथाई हिस्सा (25 फीसदी) अश्वेत नागरिकों का है. अखबार ने यह निष्कर्ष निकाला है कि अमेरिका में किसी निहत्थे गोरे व्यक्ति की तुलना में किसी निहत्थे अश्वेत व्यक्ति के पुलिस द्वारा मारे जाने की संभावना चार गुना अधिक होती है. पुलिस हिंसा से जुड़ी जानकारी देने वाली एक अन्य वेबसाइट के मुताबिक ‘अमेरिका में साल 2019 में 1,099 लोग पुलिस के हाथों मारे गए… देश की कुल आबादी का 13 फीसदी होने के बावजूद मरने वालों में 24 फीसदी अश्वेत लोग थे.’ बीते जून में ही अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के बाद कई शहरों में हिंसा भड़क गयी थी जिस पर कई दिनों के बाद ही काबू पाया जा सका था. इस दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने कई ऐसे विवादित बयान दिए थे जिनसे अश्वेत आबादी उनसे नाराज हो गयी थी.
अश्वेत लोगों का डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट देने का एक कारण उसकी उपराष्ट्रपति पद की अश्वेत प्रत्याशी कमला हैरिस को भी माना जाता है. कमला हैरिस के पिता जमैकाई और मां भारतीय मूल की थीं. अमेरिका में उनकी गरीब, अश्वेतों, अल्पसंख्यकों, प्रवासियों और समलैंगिकों के बीच मजबूत पकड़ मानी जाती है.
इसके अलावा अन्य अल्पसंख्यक तबकों – लैटिन अमेरिकियों में करीब 66 फीसदी और एशियाई अमेरिकियों में करीब 63 फीसदी लोगों ने बाइडेन पर अपना दांव लगाया. अमेरिका में तीन फीसदी यहूदी वोटर हैं जिनमें से इस बार करीब 68 फीसदी ने डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट दिया. डोनाल्ड ट्रंप अक्सर मुस्लिम विरोधी बयानों के लिए चर्चा में रहे हैं. ऐसे में इस समुदाय का डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर झुकाव होना स्वाभाविक है. इस बार 64 फीसदी मुसलमान वोटरों की पसंद जो बाइडेन रहे. अमेरिका के ग्रामीण इलाकों में जहां ट्रंप छाए रहे, वहीं शहरी वोटर बाइडेन की ताकत बनकर सामने आये. सर्वेक्षण के मुताबिक शहरों में रहने वाले 65 फीसदी और उपनगरीय (सबअर्बन) इलाकों में रहने वाले 54 फीसदी लोगों ने बाइडेन पर भरोसा जताया. 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में अगर डोनाल्ड ट्रंप को धार्मिक प्रवत्ति के लोगों बड़ा समर्थन मिला, तो किसी भी धर्म से जुड़ाव न रखने वाले अमेरिकी वोटरों ने बाइडेन के नाम पर मोहर लगाई, इस चुनाव में ऐसे 72 फीसदी लोगों ने डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट दिया.
इस बार के चुनाव में एक बात और गौर करने वाली रही – भले ही 52 फीसदी श्वेत महिलाओं ने डोनाल्ड ट्रंप को वोट दिया हो, लेकिन कुल महिलाओं के वोट पाने में बाइडेन ही अव्वल रहे. उनके नाम पर 55 फीसदी महिलाओं ने सहमति जताई.
भारतीय अमेरिकियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात क्यों नहीं मानी?
अमेरिका के कुल वोटरों में भारतीय अमेरिकियों की संख्या महज एक फीसदी ही है, लेकिन पेनसिल्वेनिया और मिशिगन जैसे राज्यों में इनकी आबादी निर्णायक भूमिका अदा करने की ताकत रखती है. न्यूज़ एजेंसी एपी के सर्वेक्षण में सामने आया कि एशियाई अमेरिकियों में करीब 63 फीसदी लोगों ने डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट दिया. हालांकि, इस सर्वे में भारतीय वोटरों से जुड़ा आंकड़ा नहीं मिला. लेकिन बीते अक्टूबर में भारतीय अमेरिकियों का रुख जानने के लिए कार्नेगी इन्डाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस, जॉन्स हॉपकिंस और पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय ने मिलकर एक सर्वेक्षण किया था. इस सर्वेक्षण में 22 फीसदी भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों का कहना था कि वे डोनाल्ड ट्रंप को वोट देंगे, जबकि 72 फीसदी बाइडेन के पक्ष में थे.
बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय अमेरिकियों से डोनाल्ड ट्रंप को वोट देने की अपील की थी और ट्रंप के साथ ह्यूस्टन शहर में 50 हजार भारतीय मूल के लोगों की एक रैली को भी संबोधित किया था. लेकिन इसके बावजूद जो बाइडेन भारतीय मूल के लोगों की पहली पसंद बने. सर्वे में भारतीय मूल के लोगों ने डोनाल्ड ट्रंप को न पसंद करने के पीछे की वजहें भी बतायी हैं. अधिकांश लोगों का कहना था कि वे डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों और कार्यशैली खुश नहीं हैं. अधिकांश लोगों का कहना था कि रिपब्लिकन पार्टी अल्पसंख्यकों को लेकर असहिष्णु है, गन कल्चर की समर्थक है और इमिग्रेशन की विरोधी है. भारतीय मूल के कुछ लोगों का यह भी कहना था कि रिपब्लिकन पार्टी भारत के लिए अच्छी नहीं है और यह बेहतर आर्थिक नीतियां बनाने में भी सक्षम नहीं है.
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