दुनिया | आतंकवाद

भारत में टूरिज्म की पहचान टोयोटा कई देशों में टेररिज्म का प्रतीक कैसे बन गई?

टोयोटा वाहनों के उपयोग से जहां आतंकी समूहों को उम्दा सहूलियत मिलती रही है, वहीं ये सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती बनकर भी सामने आए हैं

पुलकित भारद्वाज | 03 सितंबर 2021

साल 2001. 11 सितंबर को पेंटागन और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हवाई हमले के जवाब में अमेरिका ने आतंकी संगठन अलकायदा के खिलाफ युद्ध स्तर पर मुहिम छेड़ दी थी जो नौ दिसंबर को अफ़गानिस्तान की तालिबानी सरकार के खात्मे पर जाकर रुकी. इस युद्ध के दौरान एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आयी. दुनियाभर में जवाबी कार्रवाइयों के विश्लेषक माने जाने वाले डेविड किलक्यलैन का ध्यान एक टैटू ने अपनी तरफ खींचा जो कई अफ़गानी लड़ाकों के जिस्म पर बना हुआ था. उन्हें यह देखकर हैरत हुई कि यह कोई तालिबानी टैटू नहीं था. बल्कि इसका अफगानिस्तान से भी कोई जुड़ाव नहीं था. यह कनाडा के राष्ट्रीय ध्वज में बनी मैपल वृक्ष की पत्ती का टैटू था.

इस बात से आश्चर्यचकित डेविड जब जांच में जुटे तो उन्होंने इस पत्तीनुमा टैटू का संबंध एक ऐसे हथियार से जुड़ा पाया जिस पर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया था. यह था टोयोटा का पिकअप ट्रक हायलेक्स. एक साक्षात्कार के दौरान डेविड का कहना था, ‘अफ़गानिस्तान में इस गाड़ी के लिए लोगों में काफी इज्जत है. शुरुआत में कई धोखेबाज उद्यमियों ने नकली हायलेक्स ट्रक बाजार में उतारे थे. ये ट्रक जल्द ही बाजार पर छा गए, लेकिन इनके खराब प्रदर्शन के चलते लड़ाके इनसे निराश थे. तभी कनाडा की तरफ से (जापानी कंपनी टोयोटा के) असली हायलेक्स ट्रकों का एक बेड़ा अफ़गानिस्तान पहुंचा. इन ट्रकों के पीछे की तरफ कनाडा का राष्ट्रीय चिन्ह (मैपल की पत्ती) अंकित था. यह असली माल था जिसकी मजबूती और विश्वसनीयता ने अफगानों को टोयोटा हायलेक्स का मुरीद बना दिया. क्योंकि इसके पीछे मैपल की पत्ती बनी हुई थी तो अफ़गानिस्तान में इस चिन्ह को उच्च गुणवत्ता का पर्याय मान लिया गया. जिहादी मुहिमों में हायलेक्स के बेहद मददगार साबित होने के कारण तालिबान और अलकायदा के लड़ाकों ने मैपल की पत्ती जैसा टैटू बनवाना शुरु कर दिया.

हालांकि अपने साक्षात्कार में डेविड ने यह नहीं बताया कि कनाडा से आए ये ट्रक आतंकियों के पास कैसे पहुंचे! और न ही कभी टोयोटा ने अपनी किसी भी तरह की व्यवसायिक मार्केटिंग में इस विशेष उपलब्धि का जिक्र किया कि कैसे उसके वाहन एक देश में विश्वसनीयता का दूसरा नाम बन गए थे!

लेकिन हायलेक्स टोयोटा का ऐसा पहला वाहन नहीं था जिसे अलकायदा के लड़ाके इस्तेमाल कर रहे थे. नवंबर 2001 में न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक, अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन और उसके फौजी कमांडर मुहम्मद आतिफ को टोयोटा की ही एसयूवी लैंडक्रूजर बेहद पसंद थी. उस समय एक वीडियो टेप भी सामने आया था जिसमें आतिफ और अलकायदा के एक अन्य कमांडर को लैंड क्रूजर गाड़ियों के साथ देखा गया. इन गाड़ियों की छतों पर पुलिस की गाड़ियों की तरह इमरजेंसी लाइटें लगी हुई थीं.

इस बारे में जब जापानी ऑटोमोबाइल कंपनी टोयोटा से सवाल किया गया तो कंपनी का कहना था कि उसने पिछले पांच साल के दौरान अफ़गानिस्तान में सिर्फ एक लैंड क्रूजर (1997 में) आधिकारिक तौर पर निर्यात की है. अफ़गानिस्तान में अपने वाहनों की लगातार बढ़ रही संख्या के बारे में टोयोटा का कहना था, ‘वर्तमान में कंपनी का कोई भी सेल्स या डिस्ट्रीब्यूटर चैनल अफ़गानिस्तान में नहीं है. ये सारे वाहन पड़ोसी मुल्कों से अनधिकृत तरीकों द्वारा वहां पहुंचाए जा रहे हैं.’

जैसे राइफलों में एके 47, वैसे गाड़ियों में टोयोटा हायलेक्स

टोयोटा ने हायलेक्स का पहला उत्पादन पचास साल पहले मार्च-1968 में किया था. बीबीसी की तरफ से काबुल में संवाददाता रहे डेविड लोयन का कहना था कि हायलेक्स ने तालिबानी लड़ाकों को काफी मजबूती दी थी. इन वाहनों के उपयोग से जहां आतंकी समूहों को लड़ाके और हथियार एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने-ले जाने में उम्दा सहूलियत मिलती रही, वहीं ये वाहन सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती बनकर भी सामने आए. इनसे होने वाले नुकसान की गंभीरता को देखते हुए अमेरिकी सुरक्षा संस्थाओं से जुड़े अधिकारी एंड्र्यू एक्सम ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि जैसे राइफलों में एके 47 वैसे गाड़ियों में टोयोटा हायलेक्स.

टोयोटा हायलेक्स के प्रति इस तरह के विद्रोही संगठनों का जुड़ाव सिर्फ अफ़गानिस्तान तक ही सीमित नहीं है. दुनियाभर के तमाम ऐसे संगठनों द्वारा इस वाहन को पहले से ही उपयोग में लाया जा रहा था और यह चलन अब तक जारी है. कुछ साल पहले चर्चित पत्रिका न्यूजवीक में एक लेख छपा था. इसके मुताबिक दुनियाभर में हो रही गुरिल्ला (छापामार) लड़ाइयों में टोयोटा हायलेक्स सबसे प्रमुख हथियार है. अफ़गानिस्तान से लेकर सोमालिया और निकारागुआ से लेकर चाड तक इस गाड़ी की खासी मांग रही है. आंकड़े बताते हैं कि टोयोटा की इन दोनों गाड़ियों (हायलेक्स और लैंडक्रूजर) की बिक्री और लोकप्रियता साल दर साल चौंकाने वाली दर से बढ़ी है.

सोमालिया

बताया जाता है कि विद्रोही गतिविधियों में टोयोटा को सबसे पहले सोमालिया में ही उपयोग में लाया गया था. साठ के दशक में जब सोमालिया और इथोपिया के बीच सीमा विवाद हुआ था तो सोमालिया ने टोयोटा की गाड़ियों का भरपूर इस्तेमाल किया. लेकिन बाद में इन गाड़ियों की सहूलियत को देखते हुए इन्हें समुद्री लुटेरे इस्तेमाल करने लगे. इस बारे में ‘लुटेरों की पसंद : हायलेक्स’ शीर्षक के साथ न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख भी छपा था.

सीरिया

2014 में खबरें आईं कि अमेरिका ने सीरिया की विद्रोही फौज की मदद के लिए हथियारों का जखीरा भेजा था जिसमें 43 हायलेक्स ट्रक भी शामिल थे. बताया गया कि सीरिया के विद्रोही नेताओं ने जंग में शानदार प्रदर्शन के चलते अमेरिका से खासतौर पर हायलेक्स ट्रकों के लिए मांग की थी. खबरों के मुताबिक सीरिया की विद्रोही सेना को ब्रिटेन की तरफ से आने वाली मदद में भी ये ट्रक शामिल थे.

आईएस की भी पसंद

अपने प्रचार के लिए आईएस जो वीडियो जारी करता है उनमें पिछले कुछ सालों से के दौरान टोयोटा के ट्रकों की बड़ी तादाद दिखाई देने लगी है. इनमें से अधिकतर नए होते हैं. संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के भूतपूर्व राजदूत मार्क वैलेस का कहना है कि दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से टोयोटा ट्रक आईएसआईएस की पहचान से जुड़ चुके हैं. जब टोयोटा से इस बारे में पूछा गया तो कंपनी का कहना था कि उसके क्या, किसी भी वाहन निर्माता के लिए पुराने वाहनों को खरीदने-बेचने के लिए स्थापित हो चुके अनधिकृत माध्यमों पर रोक लगाना बहुत मु्श्किल है.

जानकार कहते हैं कि रक्षा एजेंसियां टोयोटा के इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुईं. लिहाजा उन्होंने अपनी जांचें जारी रखीं. इनमें उन कारणों का पता चला जिनके चलते ये ट्रक आईएसआईएस तक पहुंच रहे थे. खबरें बताती हैं कि अमेरिका और यूरोपीय देश सीरियाई विद्रोहियों के लिए बड़ी संख्या में हायलेक्स ट्रकों को भिजवाते हैं जहां से इन्हें आतंकियों द्वारा चुरा लिया जाता है. इसके अलावा दूसरे देशों से भी चोरी-छिपे लाकर इन ट्रकों को अच्छी-खासी कीमत में इन आतंकियों को बेच दिया जाता है. एक ऑस्ट्रेलियाई रिपोर्ट के मुताबिक 2014 से 2015 के बीच लगभग 800 टोयोटा ट्रक गायब हुए थे. आशंकाएं जताई गईं कि इन्हें आईएसआईएस तक पहुंचाया गया था.

टोयोटा वॉर

1914 प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान एकबारगी जर्मनी फ्रांस पर भारी होता दिख रहा था. जर्मन सेनाएं पेरिस को घेरने की तैयारी कर चुकी थीं. फ्रांस के जनरल को अधिक संख्या में सैनिकों की जरूरत थी. लेकिन उस समय ऐसा कोई माध्यम नज़र नहीं आया जो कम समय में सैनिकों को वहां तक ला पाता. तब पेरिस से 600 टैक्सी कैब के जरिए करीब 6000 फ्रांसीसी सैनिकों को युद्ध के मैदान (मरेन नदी के पास) तक पहुंचाया गया. और आश्चर्यजनक तरीके से फ्रांस ने यह जंग जीत ली. किसी युद्ध में कारों का इस तरह का इस्तेमाल हमेशा के लिए एक मिसाल बन गया था.

चौपहिया वाहनों की कुछ ऐसी ही निर्णायक भूमिका अफ्रीका में भी देखने को मिली. लीबिया ने 1972 में चाड (अफ्रीकी देश) के उत्तरी भाग आओजोउ पर कब्जा कर लिया. इस हिस्से को लेकर दोनों देशों के बीच लंबे समय तक विवाद चला जिसका अंत 1987 में एक युद्ध के साथ हुआ. फ्रांस इस जंग में चाड के समर्थन में था जिसने मदद के तौर पर हवाई सहायता के साथ अप्रत्याशित ढंग से 400 टोयोटा हायलेक्स ट्रकों का जखीरा भी चाड भेजा. इनमें से कई ट्रकों के पीछे मशीनगन के साथ एंटी टैंक और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल लॉन्चर खासतौर पर जोड़े गए थे.

हालांकि फ्रांस ने कभी भी अपने इस कदम को लेकर आधिकारिक तौर पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया. सवाल था कि इस जंग में उसने फौजी वाहनों के बजाय इन व्यावसायिक ट्रकों को चाड क्यों भेजा जबकि लीबिया के पास बड़ी संख्या में जंगी टैंक और बख्तरबंद सैनिक वाहन उपलब्ध थे. जानकारों का कहना है कि फ्रांस ने यह निर्णय पहले विश्वयुद्ध में अपने अनुभव को देखते हुए लिया था.

मीडिया एजेंसी ‘ड्राइव’ के मुताबिक उन टोयोटा ट्रकों की कीमत किसी जंगी टैंक की तुलना में महज 0.4 फीसदी थी. इसके अलावा हायलेक्स ट्रक ताकत के मामले में भी जंगी टैंकों के आगे कहीं नहीं टिकते थे. फिर भी कम वजन, चलाने में आसानी और 100किमी/घंटे की रफ्तार के साथ फौजी वाहनों की तुलना में जबरदस्त तेज इन ट्रकों ने लीबिया की फौजों खासतौर पर उसके टैंकों और एयरबेस को काफी नुकसान पहुंचाया और युद्ध का रूख ही पलट दिया.

लीबिया की लड़ाकू ज़हाजी टुकड़ी ने अपना पूरा ध्यान इन ट्रकों को नष्ट करने पर लगा दिया था जो उसके लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक साबित हुए थे. लेकिन इनकी तेज गति के चलते ऐसा मुमकिन नहीं हो सका. हायलेक्स ट्रकों की मदद से करीब 15 साल से कमजोर पड़ रहे चाड का पलड़ा भारी होता चला गया और युद्ध के अंत में लीबिया को पीछे हटना पड़ा. 1994 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने आओजाओ पर अधिकार के लीबिया के दावे को खारिज कर दिया.

इस पूरे घटनाक्रम में किसी हीरो की तरह उभरा हायलेक्स मीडिया का ध्यान खींच चुका था. इस जंग में 400 हायलेक्स ट्रकों ने वह निर्णायक भूमिका निभाई कि यह लड़ाई हमेशा के लिए एक अनूठा उदाहरण बन गयी और इतिहास के पन्नों में ‘टोयोटा वॉर’ के नाम से दर्ज हुई.

आखिर टोयोटा (खासतौर पर हायलेक्स) ही विद्रोही समूहों की खास पसंद क्यों बन गयी है?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए दुनियाभर के विशेषज्ञ जांच में जुटे हुए हैं. उनमें से अधिकतर का यही मानना है कि वजन में हल्का, जबरदस्त तेजी और करीब 20 लोगों के साथ हथियार ले जाने में सक्षम होने के कारण टोयोटा हायलेक्स इन समूहों की पहली पसंद बन गया है.

ब्रिटेन के विशेषज्ञ डॉ अलस्टेयर फिनलान का मानना है कि टोयोटा हायलेक्स एक ऐसा साधन है जिसकी मदद से कोई भी लड़ाका दल आश्चर्यजनक ढंग से कई गुना ज्यादा प्रभावी हो सकता है. हायलेक्स के साथ सिर्फ 50-कैलिबर (मशीन गन) जोड़ने पर यह ऐसे वाहन का रूप ले लेता है जो सैनिक टुकड़ियों और हल्के बख़्तरबंद वाहनों को नेस्तनाबूद करने में सक्षम है.

वाशिंगटन स्थित सीरिया के राष्ट्रीय गठबंधन सलाहकार ओउबाई शाहबन्देर इस ट्रक के जबरदस्त मुरीद हैं. उनका कहना है कि टोयोटा हायलेक्स एक विशेष हथियार है जो युद्ध के मैदान में कमजोर होते किसी भी पक्ष की शक्ति को बढ़ा सकता है.

टोयोटा के डिजाइन डिविजन के प्रेसिडेंट केविन हंटर एक साक्षात्कार में बताते हैं कि हायलेक्स को एक हल्के वजन के ट्रक के तौर पर तैयार किया गया था. बड़े पहियों वाले इस ट्रक का ग्राउंड क्लीयरेंस बहुत ज्यादा है जिसके चलते यह सड़क से अलग कच्चे रास्तों, पहाड़ों, कीचड़ आदि में आराम से चल सकता है. हंटर के मुताबिक हायलेक्स को ‘बॉडी ऑन फ्रेम’ प्लेटफॉर्म पर तैयार किया जाता है. इसके चलते यह दूसरी कारों की तुलना में बहुत मजबूत होता है.

2006 में बीबीसी के चर्चित टीवी शो टॉप गियर ने एक प्रयोग के तौर पर 18-साल पुराने हायलेक्स को उपयोग में लिया जो 1,90,000 मील चल चुका था. पहले तो इस ट्रक को सीढियों पर चलाया गया और फिर दीवारों और पेड़ से इसकी टक्कर करवाई गई. उसके बाद इस ट्रक को पांच घंटे के लिए समुद्र में डुबो कर रखा गया. इसके बाद भी जब इस ट्रक ने काम करना बंद नहीं किया तो इसपर भारी गाड़ियां गिराई गयीं. अब तक इस ट्रक के गियर, क्लच, स्टीयरिंग, यहां तक कि स्पीडोमीटर भी ठीक से काम कर रहे थे. अंत में शो के संचालकों ने इस हायलेक्स को आग के हवाले कर दिया. लेकिन यह ट्रक आश्चर्यजनक ढंग से काम करता रहा.

ऐसे ही एक दूसरे एपीसोड में हायलेक्स ट्रक को 240 फुट ऊंची इमारत पर ले जाकर इमारत को ध्वस्त कर दिया जाता है. लेकिन इसके बाद भी इस वाहन में कोई पुर्जा बदलने की नौबत नहीं पड़ी. सिर्फ हथौड़े और एक रिंच से थोड़ी सी मरम्मत के बाद यह फिर से चलने लायक स्थिति में आ गया.

ऑटो इंडस्ट्री विशेषज्ञ का टोनी फेरिया का कहना है कि यह बिल्कुल ठीक है कि टोयोटा मजबूत गाड़ी बनाती है, लेकिन ऐसी और भी कई कंपनियां हैं जो इस तरह के वाहन बनाती हैं. इनमें फोर्ड, जनरल मोटर्स और क्राइस्लर शामिल है. लेकिन उनके वाहन इस तरह के संगठनों द्वारा इस्तेमाल नहीं किए जाते.

फेरिया की इस बात के जवाब में कई विशेषज्ञ एक रिपोर्ट का हवाला देते हैं जिसके मुताबिक पहले-पहल टोयोटा ने अपने वाहन रेडक्रॉस और संयुक्त राष्ट्र जैसी मानवकल्याण से जुड़ी संस्थाओं को उपलब्ध करवाए थे. पिछले चार दशकों में टोयोटा ने इस तरह के संगठनों को तकरीबन 1,50,000 वाहन मुहैया करवाए हैं. जानकार कहते हैं कि टोयोटा के वाहनों के इस तरह के अभियानों से जुड़ने के कारण विकासशील देशों में इस कंपनी को लोगों के हितों से जोड़कर देखा जाने लगा. विशेषज्ञों के मुताबिक यह एक बड़ा कारण था कि विद्रोही संगठनों ने लोगों से सीधे जुड़ने की कोशिश में टोयोटा की इस छवि को भुनाना शुरु कर दिया. दूसरे कुछ लोगों का यह भी कहना है कि मानवकल्याण संस्थाओं के पास बड़ी तादाद में टोयोटा की गाड़ियां उपलब्ध होने के कारण इन्हें चुराना या अन्य अनधिकृत माध्यमों से प्राप्त करना अपेक्षाकृत आसान हो गया. कह सकते हैं कि जो ब्रांड भारत में टूरिज्म की पहचान बना वह दुनिया के कई हिस्सों में टेररिज्म का भी प्रतीक बन गया.

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