गोवा की एक बड़ी आबादी को पुर्तगाल अपना नागरिक मानता है लेकिन गोवावासी वहां के बजाय यूके में रहना ज्यादा पसंद करते हैं
अंजलि मिश्रा | 06 मई 2021
सन 1505 से 1961 तक पुर्तगाल ने भारत के कई अलग-अलग इलाकों पर राज किया था. पॉर्चुगीज़ स्टेट ऑफ इंडिया कहे जाने वाले इन इलाकों में गोवा, दमन, दीव, दादरा और नगर हवेली आते थे जो आज़ादी के बाद भी पुर्तगाल के ही कब्जे में रहे. बाद में भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद ये इलाके स्वतंत्र होकर भारतीय गणराज्य का हिस्सा बन गए. लेकिन 1961 से पहले यहां रहने वाले तमाम लोगों और उनके वंशजों को आज भी पुर्तगाल अपना नागरिक मानता है. यही वजह है कि पुर्तगाल के कब्जे में रहे भारतीय इलाकों में घूमते हुए अगर आप वहां के किसी मूल निवासी से टकराते हैं तो इस बात की बड़ी संभावना होती है कि वह पुर्तगाली नागरिक हो.
गोवा के लिए पुर्तगाली नागरिकता एक बड़ा और संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है. इसमें पहला पेंच यह है कि भारत का संविधान दोहरी नागरिकता को गैरकानूनी करार देता है. इसके चलते वे लोग जो पुर्तगाली पासपोर्ट चाहते हैं, उन्हें भारत में वोट देने, चुनाव लड़ने और जमीन खरीदने सरीखे नागरिक अधिकारों से वंचित होना पड़ता है. साल 2013 में गोवा चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक 2008 से 2013 के बीच 11,500 लोगों ने अपना भारतीय पासपोर्ट सरेंडर कर दिया था. हालांकि इसके बाद से, सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं जारी किए गए हैं. लेकिन पासपोर्ट हासिल करने में लोगों की मदद करने वाले एजेंट्स दावा करते हैं कि साल 1986 (जब पुर्तगाल, यूरोपियन यूनियन का सदस्य बना था) से अब तक लगभग तीन से चार लाख गोवा निवासी पुर्तगाल की नागरिकता ले चुके हैं.
इसके आर्थिक पक्ष को देखें तो बीते कई दशकों से यह गोवा के लोगों के लिए यूरोपीय देशों में बसने और काम करने का एक सुविधाजनक रास्ता तैयार करता रहा है. अब जब 1 जनवरी, 2021 से ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन से बाहर आ गया है तो गोवा वालों के लिए भविष्य से जुड़ी चिंताएं थोड़ी गहरा गई हैं. गोवा में बसने वाले लेकिन पुर्तगाली नागरिकता हासिल करने की योग्यता रखने वाले कई लोग अब इस बात से चिंता में हैं कि वे अब ब्रिटेन (यूनाइटेड किंगडम) में नहीं बस पाएंगे या उन्हें अपने रोजगार के लिए कुछ और विकल्पों को टटोलना पड़ेगा. जब तक यूके यूरीपीय संघ का हिस्सा था और गोवा के कई निवासियों के लिए वहां जाना या पुर्तगाल जाना एक जैसी ही बात थी.
यूनाइटेड किंगडम में रहना गोवावासियों की पहली पसंद क्यों है, इस सवाल का जवाब देते हुए दक्षिण गोवा के डाबोलिम में रहने वाले व्यवसायी महेश बताते हैं कि ‘गोवा के लोगों को पुर्तगाल का पासपोर्ट आसानी से मिल जाता है जिसकी मदद से वे यूरोप के किसी भी देश में रह सकते हैं. लेकिन आम तौर यहां से जाने वालों लोगों की पहली पसंद यूके ही होता है. पहली बात तो ये है कि वहां पर अंग्रेजी बोली जाती है. बाकी देशों जैसे फ्रांस में रहने के लिए आपको फ्रेंच या जर्मनी में रहने के लिए जर्मन भाषा आना ज़रूरी है, जो कि गोवा के लोगों को नहीं आती है लेकिन अंग्रेजी यहां लगभग हर कोई बोल लेता है. यूके जाने की एक वजह ये भी है कि वहां भारतीय उपमहाद्वीप से जाने वाले लोग बड़ी संख्या में रहते हैं. इसके अलावा, गोवा के लोगों को सर्विस सेक्टर में काम करने का अच्छा एक्सपीरियंस होता है. यूके में होटेल और घरों के अलावा ओल्डएज लोगों की देखभाल जैसे काम आसानी से मिल जाते हैं. इसके लिए कोई बहुत पढ़ाई-लिखाई करने की ज़रूरत भी नहीं होती है.’
ऊपर दिये गये सवाल का जवाब देते हुए डाबोलिम की ही सोज़ेल कहती हैं कि ‘मैं इंडियन हूं और प्राउड इंडियन हूं. लेकिन मैं सरकार से बहुत नाराज़ हूं. गोवा में बाहर से आने वाले तमाम लोग तरह-तरह के धंधे करते हैं. बहुत से अच्छे-बुरे काम भी करते हैं. सरकार उन सबके लिए मौके उपलब्ध करवाती है. लेकिन हमारे लिए नहीं. मेरे दोनों बच्चे यूके में रहते हैं. मैं सिंगल मदर हूं और उन्हें अकेले कैसे छोड़ सकती हूं. यहां मौके होते तो ना उन्हें यूके जाना पड़ता, ना मुझे उधर बसने के लिए कोशिश करनी पड़ती. ब्रेक्ज़िट के बाद ये कोशिश कितनी सफल होगी कह नहीं सकते.’
गोवा की राजधानी पणजी में रहने वाले पासपोर्ट एजेंट एडवर्ड अल्मीडा इस चलन के एक अलग पक्ष पर बात करते हुए कहते हैं कि ‘आज नहीं तो कल ये वैसे भी खत्म होने वाला था क्योंकि पॉर्चुगीज़ नेशनैलिटी लॉ 37/81 केवल तीसरी पीढ़ी तक यानी बच्चों और नाती-पोतों को ही नागरिकता देने की बात कहता है. (पुर्तगाल 1961 से पहले गोवा, दमन, दीव, दादरा और नगर हवेली में पैदा हुए लोगों, उनके बच्चों और नाती-पोतों को अपनी नागरिकता का अधिकारी मानता है). यानी अब जो लोग बीआई कार्ड या पुर्तगाल की नागरिकता लेने के लिए एलिजिबल हैं, वो लास्ट जेनरेशन के लोग हैं. पहले ब्रेक्जिट के कारण लोग चिंता में आ गए कि पता नहीं आगे क्या होगा, फिर ये हो गया कि कोरोना वायरस आ गया तो सारा प्रोसेस ही बंद हो गया, अभी जो काम चल रहा है, वो बहुत धीमी रफ्तार से हो रहा है.’
अपनी बातचीत में एडवर्ड बीआई कार्ड का जिक्र कई बार करते है. बीआई यानी बिल्हेट ड आइडेंटिडेट कार्ड हाल तक पुर्तगाल के नागरिकों को मिलने वाला पहचान पत्र था. अब इसकी जगह सिटीजंस कार्ड जारी किया जाता है. इसके बारे में कहा जाता है कि यह पुर्तगाल की नागरिकता मिलने जैसा ही है. एडवर्ड अपनी बातचीत में बताते हैं कि गोवा और दमन-दीव में बच्चों के जन्म के साथ ही उनका रजिस्ट्रेशन पुर्तगाल में करवा दिया जाता है जिससे उन्हें बीआई कार्ड (सिटीजंस कार्ड) मिल जाता है. बाद में यह उन पर छोड़ दिया जाता है कि वे अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ने की कीमत पर वहां का पासपोर्ट चाहते हैं या नहीं.
ब्रेक्जिट के साथ-साथ गोवा के लोगों की अनिश्चितताओं को कोरोना वायरस महामारी ने और बढ़ा दिया है. इस समय तमाम अन्य देशों की तरह पुर्तगाल का भी पासपोर्ट या वीज़ा हासिल करना पहले जितना आसान नहीं रह गया है. एडवर्ड की बातों की पुष्टि, यूके में बसने का इरादा रखने वाले और साउथ गोवा के बॉगमालो में रहने वाले प्रोफेशनल फोटोग्राफर ऐब्नर फर्नांडिस भी करते हैं. वे कहते हैं कि ‘मेरे साथ पहले तो बीआई कार्ड में ही गड़बड़ी हो गयी थी और वो एक्सपायर हो गया था. किसी तरह जुगाड़ करके उसे बनवाया और फिर करीब छह महीने पहले मैंने पुर्तगाली पासपोर्ट के लिए अप्लाई किया था. पिछले दिनों जब कॉन्सुलेट में जाकर पता किया तो पता चला कि अभी अपॉइंटमेंट भी उन्हें ही मिल पा रहा है जिन्होंने कम से कम डेढ़ साल पहले इसके लिए अप्लाई किया था. मेरा नंबर तो जाने कब ही आएगा.’
जहां तक बीआई अपॉइंटमेंट मिलने या पासपोर्ट मिलने की प्रक्रिया के बहुत धीमा होने की बात है, कॉन्सुलेट जनरल ऑफ पुर्तगाल के गूगल पेज पर भी ऐसी तमाम टिप्पणियां हैं जिनमें लोगों ने एक-डेढ़ साल लंबे इंतज़ार की शिकायत की है. गोवा में पुर्तगाल दूतावास के एक अधिकारी अपना नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि ‘मैं भी यह कहूंगा कि कन्फ्यूजन और अनिश्चितता की स्थिति तो है. लेकिन हमें मिलने वाले आवेदनों में कोई खास कमी नहीं आई है. जहां तक धीमी रफ्तार की शिकायतों का सवाल है तो कोरोना महामारी के चलते लंबे समय तक कुछ भी नहीं हुआ तो बहुत सारा पेंडिंग काम पड़ा हुआ है. इसके अलावा फरवरी-मार्च में लिस्बन (पुर्तगाल की राजधानी) में कोरोना वायरस के दोबारा प्रकोप के चलते भी बहुत काम प्रभावित हो गया था.’
अब सवाल यह उठता है कि अब जबकि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हो चुका है तब भी क्या पुर्तगाल का पासपोर्ट मिलना गोवा के लोगों के लिए उतना ही आकर्षक रह गया है? यह सवाल पूछने पर ऐब्नर फर्नांडिस कहते हैं, ‘अब शायद मेरे लिए भारतीय पासपोर्ट पर जाना या पॉर्चुगीज़ पासपोर्ट पर जाना लगभग एक जैसा ही रहेगा. मैंने अप्लाई तो कर दिया है लेकिन अब मैं ये भी सोच रहा हूं कि मुझे किसी और यूरोपियन कंट्री में जाने का ऑप्शन देखना चाहिए या फिर बाहर जाने के बारे में ही शुरू से सोचना चाहिए. मेरा कई सालों का बना-बनाया करियर प्लान धड़ाम से गिर गया है.’
ब्रेक्जिट के बाद यूके में यूरोपियन यूनियन के नागरिकों के रहने के नियमों पर आएं तो ब्रिटिश सरकार उन्हें अपने मूल देश में लौटने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन भी दे रही है. द गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटिश सरकार ने बीते साल के अंत में ‘वॉलंटरी रिटर्न स्कीम’ शुरू की है जिसके तहत लोगों को उनके संबंधित देश में लौटने के लिए आर्थिक मदद मुहैया करवाई जाती है. जानकारों की मानें तो ब्रिटिश सरकार की यह योजना उसके पुराने दावों से मेल नहीं खाती जिसमें उसने यूरोपियन यूनियन के नागरिकों के आर्थिक और सामाजिक हितों की रक्षा करने की बात कही थी.
हालांकि ब्रिटिश सरकार ऐसे लोगों को नागरिकता देने वाली कई योजनाएं भी चला रही है. वे यूरोपियन नागरिक जो लगभग पांच साल या उससे अधिक वक्त से यूके में रह रहे हैं, यूरोपियन यूनियन सेटलमेंट स्कीम (ईयूएसएस) के तहत हमेशा के लिए वहां बस सकते हैं. ईयूएसएस के तहत अप्लाई करने की आखिरी तारीख 30 जून, 2021 है. ऐसे में उन गोअन्स के भविष्य के बारे में ही कुछ साफ तौर पर कह पाना संभव नहीं है जो लंबे समय से, पहले से ही वहां पुर्तगाली पासपोर्ट के साथ रह रहे हैं. फिर, गोवा से जाने वाले बाकी लोगों के बारे में तो क्या ही कहा जा सकेगा!
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