मुंशी प्रेमचंद

समाज | जन्मदिन

प्रेमचंद ने जब-जब क्रिकेट पर लिखा तो वह भी सिर्फ एक खेल भर की बात नहीं थी

मुंशी प्रेमचंद ने न केवल अपने साहित्य में क्रिकेट को शामिल किया बल्कि इस खेल पर उन्होंने अखबार में भी कई लेख लिखे थे

शुभनीत कौशिक | 31 जुलाई 2020 | इलस्ट्रेशन: मनीषा यादव

वर्ष 1932 में भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड के दौरे पर गई. पोरबंदर के महाराजा की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने इस दौरे में कुल 37 मैच खेले. इनमें से 26 प्रथम श्रेणी के मैच थे. प्रथम श्रेणी के नौ मैचों में भारतीय क्रिकेट टीम ने जीत हासिल की. उसकी इस सफलता का श्रेय दिग्गज बल्लेबाज सी.के. नायडू और दो तेज गेंदबाजों अमर सिंह और मोहम्मद निसार को दिया गया. इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने क्रिकेट के इतिहास पर लिखी गई अपनी चर्चित किताब ‘अ कॉर्नर ऑफ अ फॉरेन फ़ील्ड’ में भारतीय क्रिकेट टीम के इस इंग्लैंड दौरे के बारे में विस्तार से लिखा है. साथ ही, रामचंद्र गुहा ने सी.के. नायडू को ‘पहला महान भारतीय क्रिकेटर’ भी कहा है.

इसी संदर्भ में, उल्लेखनीय है कि प्रेमचंद ने भी 12 अक्तूबर 1932 को ‘जागरण’ में छपे एक संपादकीय में भारतीय क्रिकेट टीम के इंग्लैंड दौरे का विवरण लिखा था. प्रेमचंद ने इसमें लिखा कि भारतीय क्रिकेट टीम को भारतीय हॉकी टीम जितनी सफलता भले ही न मिली हो, लेकिन फिर भी उसकी सफलता महत्त्वपूर्ण है. भारतीय क्रिकेट टीम की सफलता पर ख़ुशी जाहिर करते हुए प्रेमचंद ने लिखा था : ‘भारतीय क्रिकेट टीम दिग्विजय करके लौट आयी. यद्यपि उसे उतनी शानदार कामयाबी हासिल नहीं हुई, फिर भी इसने इंग्लैंड को दिखा दिया कि भारत खेल के मैदान में भी नगण्य नहीं है. सच तो यह है कि अवसर मिलने पर भारत वाले दुनिया को मात दे सकते हैं, जीवन के हरेक क्षेत्र में. क्रिकेट में इंग्लैंड वालों को गर्व है. इस गर्व को अबकी बड़ा धक्का लगा होगा. हर्ष की बात है कि वाइसराय ने टीम को स्वागत का तार देकर सज्जनता का परिचय दिया.’

जैसे आज भारत में आईपीएल का क्रेज बना हुआ है, बीसवीं सदी के तीसरे दशक में मार्लेबन क्रिकेट क्लब (एमसीसी) के क्रिकेट मैचों की धूम थी. उस समय एक ओर भारत की ब्रितानी हुकूमत द्वारा आर्थिक मंदी का रोना रोया जा रहा था, वहीं दूसरी ओर एमसीसी के मैचों का पूरे धूम-धाम से आयोजन हो रहा था. इस पर टिप्पणी करते हुए प्रेमचंद ने ‘जागरण’ में लिखा था कि क्रिकेट मैचों के लिए ‘रेल ने कन्सेशन दे दिए, एक्सप्रेस गाड़ियां दौड़ रही हैं, तमाशाई लोग थैलियां लिए कलकत्ता भागे जा रहे हैं. और इधर गुल मचाया जा रहा है कि मंदी है और सुस्ती है. मंदी और सुस्ती है मजदूरी घटाने के लिए, नौकरों का वेतन काटने के लिए, ऐसे मुआमिलों में हमेशा तेजी रहती है.’

प्रेमचंद ने 15 जनवरी 1934 को ‘जागरण’ में ही लिखे एक संपादकीय में इस भयावह स्थिति की तुलना फ्रेंच क्रांति के समय के फ्रांस से की. उन्होंने लिखा : ‘कहते हैं कि फ्रेंच क्रांति के पहले जनता तो भूखों मरती थी और उनके शासक और जमींदार और महाजन नाटक और नृत्य में रत रहते थे, वही दृश्य आज हम भारत में देख रहे हैं. देहातों में हाहाकार मचा हुआ है. शहरों में गुलछर्रे उड़ रहे हैं. कहीं एमसीसी की धूम है, कहीं हवाई जहाज़ों के मेले की. बड़ी बेदर्दी से रुपए उड़ रहे हैं.’

क्रिकेट खिलाड़ियों के चयन में आज भारत में चयनकर्ताओं द्वारा जो मनमानी की जाती है, ठीक वैसी ही स्थिति तब भी थी. प्रेमचंद ने ‘जागरण’ में एर जनवरी 1934 को लिखे संपादकीय में खिलाड़ियों के चयन पर टिप्पणी करते हुए लिखा : ‘यहां जिस पर अधिकारियों की कृपा है, वह इलेविन में लिया जाता है. यहां तो पक्का खिलाड़ी वह है, जिसे अधिकारी लोग नामजद करें. भारत की ओर से वाइसराय बधाई देते हैं, भारत का प्रतिनिधित्व अधिकारियों ही के हाथ में है. फिर क्रिकेट के क्षेत्र में क्यों न निर्वाचन अधिकार उनके हाथ में रहे.’

संपत्तिशाली वर्ग, राजे-महाराजों द्वारा क्रिकेट में दिखाई जा रही रुचि का कारण भी प्रेमचंद बख़ूबी समझते थे. वे लिखते हैं : ‘सुना है वाइसराय साहब को क्रिकेट से बड़ा प्रेम है. जवानी में अच्छे क्रिकेटर थे. अब खेल तो नहीं सकते मगर आंखों से देख तो सकते हैं. और जिस चीज में हुज़ूर वाइसराय को दिलचस्पी हो उसमें हमारे राजों, महाराजों, नवाबों और धनवानों को नशा हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं.’ उसी दौरान बनारस में हुए एक क्रिकेट मैच में पांच हजार दर्शक जमा हुए थे, जिनसे टिकट के रूप में पच्चीस हजार रुपए वसूले गए थे. इस पर टिप्पणी करते हुए प्रेमचंद ने लिखा कि ‘कम-से-कम पच्चीस हजार रुपए केवल टिकटों से वसूल हुए और दिया किसने, उन्हीं बाबुओं और अमीरों ने जिनसे शायद किसी राष्ट्रीय काम के लिए कौड़ी न मिल सके.’

उल्लेखनीय है कि प्रेमचंद ने अपनी साहित्यिक कृतियों में भी क्रिकेट के बारे में लिखा है. उपन्यास ‘वरदान’ में प्रेमचंद ने अलीगढ़ और प्रयाग के छात्रों के बीच हुए क्रिकेट मैच का जीवंत वर्णन किया है. ‘वरदान’ का एक अहम किरदार प्रतापचंद्र हरफ़नमौला क्रिकेटर है. अलीगढ़ की टीम द्वारा रनों का अंबार खड़ा किए जाने के बाद प्रयाग की टीम प्रतापचंद्र की बल्लेबाजी पर पूरी तरह निर्भर हो जाती है.

प्रेमचंद ने ‘वरदान’ में उल्लिखित इस मैच में प्रतापचंद्र की बल्लेबाजी का जो रोमांचक वर्णन किया है, उसे पढ़ें : ‘तीसरा गेंद आया. एक पड़ाके की ध्वनि हुई और गेंद लू की भांति गगन भेदन करता हुआ हिट पर खड़े होने वाले खिलाड़ी से सौ गज आगे गिरा. लोगों ने तालियां बजाईं. सूखे धान में पानी पड़ा. जाने वाले ठिठक गए. निराशों को आशा बंधी. चौथा गेंद आया और पहिले गेंद से 10 गज आगे गिरा. फील्डर चौंके, हिट पर मदद पहुंचाई. पांचवां गेंद आया और कट पर गया. इतने में ओवर हुआ. बॉलर बदले, नए बॉलर पूरे वधिक थे. घातक गेंद फेंकते थे. पर उनके पहिले ही गेंद को प्रताप ने आकाश में भेजकर सूर्य से स्पर्श करा दिया. फिर तो गेंद और उसकी थापी में मैत्री-सी हो गई. गेंद आता और थापी से पार्श्व ग्रहण करके कभी पूर्व का मार्ग लेता, कभी पश्चिम का, कभी उत्तर का और कभी दक्षिण का. दौड़ते-दौड़ते फील्डरों की सांसें फूल गईं.’

इसी तरह प्रेमचंद ने क्रिकेट पर एक कहानी भी लिखी थी, जिसका शीर्षक ही है ‘क्रिकेट मैच’. यह कहानी प्रेमचंद के निधन के बाद कानपुर से छपने वाले उर्दू पत्र ‘ज़माना’ में जुलाई 1937 में छपी थी. डायरी शैली में लिखी गई यह कहानी जनवरी 1935 से शुरू होती है. इस कहानी के मुख्य पात्र हैं भारतीय क्रिकेटर जफर और इंग्लैंड से डॉक्टरी की पढ़ाई कर भारत लौटी हेलेन मुखर्जी. जफर को भारतीय टीम के मैच हारने का दुख है और वह इसका कारण भी जानता है – चयनकर्ताओं की मनमानी. जफर अपनी डायरी में दर्ज करता है ‘हमारी टीम दुश्मनों से कहीं ज़्यादा मजबूत थी मगर हमें हार हुई और वे लोग जीत का डंका बजाते हुए ट्रॉफी उड़ा ले गए. क्यों? सिर्फ़ इसलिए कि हमारे यहां नेतृत्व के लिए योग्यता शर्त नहीं. हम नेतृत्व के लिए धन-दौलत ज़रूरी समझते हैं. हिज़ हाइनेस कप्तान चुने गए, क्रिकेट बोर्ड का फैसला सबको मानना पड़ा.’

इस कहानी में प्रेमचंद ने औपनिवेशिक काल में भारतीय क्रिकेट की दशा को बिलकुल स्पष्टता से अभिव्यक्त कर दिया है. यह वह समय था, जब योग्य क्रिकेटरों की उपेक्षा होती थी और राजा-महाराजा अपनी अयोग्यता के बावजूद क्रिकेट टीम का नेतृत्व करते थे. ऐसी ही हालत में जफर की मुलाक़ात हेलेन मुखर्जी से होती है, जो योग्यता और कौशल के आधार पर हिंदुस्तानी क्रिकेटरों की एक टीम बनाना चाहती है. जफर के साथ मिलकर हेलेन लखनऊ, अलीगढ़, दिल्ली, लाहौर और अजमेर से खिलाड़ियों को चुनती है और एक क्रिकेट टीम तैयार करती है. कहानी में यह क्रिकेट टीम जफर के नेतृत्व में बंबई में आस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम से एक मैच खेलती है और उसे पराजित भी करती है.

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