इस समय छोटे-छोटे बच्चों को प्रोग्रामिंग सिखाने का दावा करने वाले ऐड हर तरफ छाए हुए हैं और लोगों में अपने बच्चों को कोडिंग सिखाने की होड़ सी लगी हुई है
अभय शर्मा | 13 जून 2022 | फोटो: जुग जवांग अकादमी
कोरोना वायरस जैसी महामारी के आने के बाद जब दुनिया के लगभग सभी हिस्सों में स्कूल-कॉलेज बंद हो गए. तब अगले लगभग दो साल के लिए भारत सहित सभी देशों में बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई करवाई जाने लगी. देखा जाए तो इस दौर में शिक्षा के मामले में बच्चे पूरी तरह से इंटरनेट पर निर्भर हो गए. स्कूलों के अलावा बच्चे ट्यूशन वगैरह भी ऑनलाइन ही करने लगे. मौक़ा देखकर कई कोचिंग सेंटर्स ने इस बीच अपने एप भी लॉन्च कर दिए, जिनसे घर बैठे पढ़ाई की जा सकती है. लेकिन इसी दौरान इंटरनेट पर ऐसे कोचिंग संस्थानों के ऐड भी छाने लगे, जो पांच-छह साल के बच्चे को कोडिंग या प्रोग्रामिंग सिखाने की बात कर रहे थे. इनका दावा था कि ये बच्चों को कुछ ही समय में (तक़रीबन एक महीने के अंदर) ऐप और गेम बनाना सिखा देंगे. यहां तक कि ऐसे कुछ संस्थानों ने कुछ स्कूलों के साथ भी अनुबंध किया, जिसके बाद उनमें से कई स्कूल बच्चों के माता-पिताओं पर ऑनलाइन कोडिंग क्लॉस का दबाव बनाने लगे. कोरोना महामारी का ज़ोर कम पड़ने के बाद यह सिलसिला कम तो हुआ लेकिन अभी भी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है. पांच से छह साल की उम्र के बच्चों को कोडिंग सिखाने की बात सुनकर शायद ही कोई ऐसा हो जिसके दिमाग में कुछ सवाल न उठ रहे हों: क्या इतने छोटे बच्चों को कोडिंग सिखाई जा सकती है? ये संस्थान इन बच्चों को किस तरह से कोडिंग सिखाते हैं? और सबसे अहम सवाल यह कि इतनी छोटी सी उम्र के बच्चों को कोडिंग सिखाना कितना सही है?
बच्चों को कोडिंग की क्लॉस में क्या सिखाते हैं?
ऑनलाइन कोडिंग क्लॉस में बच्चों को क्या सिखाया जाता है यह जानने के लिए सत्याग्रह ने कुछ ऐसे अभिभावकों से बात की, जिनके बच्चों ने ऑनलाइन कोडिंग सीखी है. नॉएडा के वरिंदर सैनी ने 2020-21 में अपनी छह साल की बेटी को एक चर्चित संस्थान में ऑनलाइन कोडिंग क्लॉस ज्वाइन करवाई थी. वे सत्याग्रह से अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, ‘हमने अपनी बच्ची को करीब छह क्लॉस करवाई थीं. वो कुछ इस तरह की चीजें सिखाते थे कि एक चेस बोर्ड है, उस पर एक खरगोश है, दूर कहीं एक गाजर रखी है, अब आपको सबसे छोटे रास्ते से खरगोश को गाजर तक पहुंचाना है, इस रास्ते में कुछ मोड़ होंगे, आपको लेफ्ट, राइट और आगे बढ़ने की कमांड से (बटन दबाकर) खरगोश को गाजर तक पहुंचाना है. लगभग इसी तरह की चीजें वे मेरी बेटी को सिखाते थे.’
यह पूछने पर कि क्या आप इससे संतुष्ट थे और क्या आपकी उम्मीद के मुताबिक बच्चे को कोडिंग सिखाई जा रही थी. वरिंदर सैनी कहते हैं, ‘ये लोग (कोडिंग सिखाने वाले) अपने ऐड में दावा करते हैं कि बच्चे को कुछ ही दिनों में इतनी कोडिंग सिखा देंगे कि वो ऐप बनाना सीख जाएगा, ऐसा तो कुछ भी नहीं होता. जिस तरह का ये प्रचार करते हैं, वैसा तो कुछ भी नहीं होता… (जो उन्होंने सिखाया उसमें) कोडिंग जैसा तो कुछ भी नहीं था. वे लोग जो सिखाते हैं वो तो एक तरह से एल्गोरिथम (किसी काम को पूरा करने का क्रमबद्ध तरीका) सिखाना है.’ एक बहुराष्ट्रीय सॉफ्टवेयर निर्माता कंपनी में कार्यरत वरिंदर का मानना है कि ये संस्थान जो सिखा रहे हैं, वह बच्चे को सिखाया तो जाना चाहिए, लेकिन इसके लिए कोई विशेष ऑनलाइन कोर्स करवाने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये सब तो यूट्यूब और तमाम फ्री एप के जरिये भी सिखाया जा सकता है.
वरिंदर ऑनलाइन कोडिंग संस्थानों के मार्केटिंग के तरीके से खासे नाराज दिखे. वे कहते हैं, ‘मुझे इन लोगों के ऐड का तरीका बिलकुल सही नहीं लगता है, ये अभिभावकों में हीन भावना भरते हैं कि आपका बच्चा कोडिंग नहीं करेगा तो पिछड़ जायेगा. यहां तो एक भेड़ चाल है, लोग इनकी बात सुनकर और देखकर दौड़ पड़ते हैं… यह तरीका सही नहीं है. ये लोग बिल गेट्स, सुंदर पिचाई और स्टीव जॉब्स का फोटो लगाकर लोगों को बेवकूफ बनाते हैं, जबकि ऐसे कई लोगों ने कभी कोडिंग ही नहीं की.’
ग्रेटर नॉएडा में रहने वाली ज्योत्सना श्रीवास्तव ने भी अपने आठ साल के बेटे को एक नामी संस्थान में ऑनलाइन कोडिंग क्लॉस ज्वाइन करवाई. सत्याग्रह से बातचीत में वे बताती हैं, ‘इस क्लॉस में विशेष तरह का कुछ नहीं था. उनके पास कुछ रेडीमेड कोड ब्लॉक्स बने थे, इन ब्लॉक्स को बच्चे को इस तरह से व्यवस्थित करना था कि किसी ऐप का फंक्शन सही ढंग से काम करने लगे, या कुछ कोड ब्लॉक्स को इस तरह सेट करना होता था कि कोई शब्द बन जाए या किसी तस्वीर का बैकग्राउंड कलर चेंज हो जाए’
ज्योत्सना और साधारण तरीके से समझाते हुए कहती हैं, ‘ये लगभग वैसा ही था जैसे बच्चों के लिए बनाए गए वीडियो गेम्स में होता है – किसी गेम में अल्फाबेट को इस तरह व्यवस्थित करना पड़ता है कि उनसे कोई अर्थ पूर्ण शब्द बन जाए… कुछ गेम्स ऐसे होते हैं जिनमें टास्क दिया जाता है कि आपके पास चार लकड़ी हैं, अब उन्हें इस तरह से जमाओ कि कोई व्यक्ति उनके जरिये एक नदी को पार कर ले.’
छोटे बच्चों को ऑनलाइन कोडिंग क्लॉस में किस तरह से कोडिंग सिखाई जाती है, इसे लेकर मुंबई के सरफराज अहमद ने भी अपना अनुभव सत्याग्रह से साझा किया. ‘मेरा बेटा सातवीं क्लॉस में है. अन्य लोगों की तरह ही मैं भी ऐड देखकर एक चर्चित कोडिंग संस्थान की ओर आकर्षित हुआ, मैंने पहले बच्चे को एक ट्रायल क्लॉस करवाई, जो पूरी तरह मुफ्त थी. इस क्लॉस के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि आपका का बच्चा बहुत ज्यादा बुद्धिमान है और वह कोडिंग के लिए एकदम परफेक्ट है… मुझे पता था कि मेरा बच्चा पढ़ने में होशियार है इसलिए मैं और खुश हो गया और मैंने आगे की क्लॉस के लिए मन बना लिया.’
सरफ़राज़ अहमद सॉफ्टवेयर निर्माण का ही काम करते हैं और कोडिंग से उनका पुराना नाता है, उन्हें आईटी सेक्टर में करीब 17 सालों का लंबा अनुभव हो चुका है. कोडिंग की जानकारी होने के चलते ही उन्होंने कोडिंग ट्रेनर से कोर्स और पढ़ाने के तरीके को लेकर बेहद बारीकी से बातचीत की. वे कहते हैं, ‘ट्रेनर ने मुझे बताया कि उनका कोर्स (पाठ्यक्रम) बहुत विस्तृत है और नामी विशेषज्ञों द्वारा बनाया गया है. लेकिन उन्होंने मेरे बेटे के लिए जो पाठ्यक्रम दिया था, उसमें कोडिंग से जुडी काफी ऐसी चीजें थीं जिन्हें देखकर मुझे लगा कि एक सातवीं क्लॉस का बच्चा जिसने अभी-अभी गणित में एल्जेब्रा पढ़नी शुरू की है, वह इस तरह की कोडिंग कैसे करेगा? इसलिए, मैंने उनसे पूछा कि आप कोर्स में दी गयी चीजें बच्चे को कैसे सिखाओगे? क्या बच्चा सच में जावा (प्रोग्रामिंग लैंग्वेज) में कोडिंग करेगा?’
सरफ़राज़ के मुताबिक काफी पूछने पर ट्रेनर ने उन्हें जो बताया उसके बाद वे यह समझ गए कि माजरा क्या है. ‘मैं समझ गया कि इन्होंने रेडीमेड कोडिंग तैयार कर रखी है और ये बच्चे को केवल यह सिखाएंगे कि पूरी रेडीमेड कोडिंग में उसका कौन-सा हिस्सा (ब्लॉक) कहां फिट करना है जिससे ऐप या गेम डेवलप हो जाए… यह तो कुछ ऐसा हुआ कि आप किसी पहली कक्षा के बच्चे को कोई लंबा-चौड़ा संस्कृत का श्लोक रटवा दीजिये जबकि उस बच्चे को संस्कृत का बिलकुल ज्ञान न हो. आप ही बताइये इससे क्या फायदा होने वाला है’ सरफ़राज़ अहमद कहते हैं.
इस तरह के कोर्स को लेकर आईटी विशेषज्ञों का क्या कहना है?
छोटे बच्चों की कोडिंग क्लॉस को लेकर कुछ अभिभावकों द्वारा साझा किए गए अनुभव के बारे में सत्याग्रह ने आईटी सेक्टर के कुछ विशेषज्ञों से बात की. इन लोगों का साफ़ तौर पर कहना था कि किसी पांच या छह या फिर आठ साल के बच्चे को प्रोग्रामिंग सिखाना संभव ही नहीं है. और जो लोग इस तरह का दावा कर रहे हैं वे सिर्फ अपने व्यवसाय के लिए लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं. एक बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत आकाश पाण्डेय सत्याग्रह से बातचीत में कहते हैं, ‘देखिये, प्रोग्रामिंग या कोडिंग हमेशा ही एक प्रॉब्लम सॉल्विंग तकनीक (समस्या को हल करने का तरीका) होती है. यानी आपको कोई समस्या बतायी गई तो आपको उसका सबसे बेहतर समाधान निकाल कर देना है. इसके लिए कम से कम बेसिक मैथ (गणित) और थोड़ी बहुत फिजिक्स की जानकारी भी होना जरूरी है. आप अगर कोई ऐप या गेम बनाते हो तो उसमें गणित का इस्तेमाल तो होना ही है. लेकिन पांच से छह साल के बच्चे को मैथ और फिजिक्स का बेसिक ज्ञान तो छोड़िए उसे जोड़, घटाना, गुणा और भाग के लिए खासी माथापच्ची करनी पड़ेगी. ऐसे में वह प्रोग्रामिंग कैसे सीखेगा.’
हालांकि, आकाश ऑनलाइन कोडिंग संस्थानों के कोर्स (पाठ्यक्रम) को लेकर एक और बात भी कहते हैं. ‘सही कहूं तो बच्चों के हिसाब से ऐसा ही पाठ्यक्रम हो सकता है क्योंकि आप उन्हें सीधे प्रोग्रामिंग नहीं सिखा सकते. कोडिंग की दुनिया में कदम रखने पर बच्चों को सबसे पहले ‘प्रॉब्लम सॉल्विंग’ जैसी चीजें ही सिखाई जा सकती हैं. लेकिन इसके लिए बच्चे को किसी नामी संस्थान में विशेष कोडिंग क्लॉस ज्वॉइन करवाने की जरूरत नहीं है, यह सब तो इंटरनेट पर मुफ्त में उपलब्ध है.’ आकाश पाण्डेय के मुताबिक, ‘एमआईटी (मैसाचुसेट्स इन्स्टिट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी) का स्क्रैच सॉफ्टवेयर बच्चों के मामले में सबसे बेहतर विकल्प है, यह मुफ्त है और इसमें रेडीमेड कोडिंग ब्लॉक्स के जरिये ही बच्चों को प्रॉब्लम सॉल्व करना सिखाया जाता है. एक बच्चा यूट्यूब पर स्क्रैच के वीडियो देखकर इसके बारे में सबकुछ खुद ही सीख सकता है.’ हालांकि, आकाश का मानना है कि स्क्रैच के लिए भी बच्चे की उम्र कम से कम दस या बारह साल तो होनी ही चाहिए.’
सत्याग्रह से बातचीत में आकाश पाण्डेय की तरह कुछ अन्य विशेषज्ञ भी यह मानने को तैयार नहीं थे कि पांच से छह साल के बच्चे को कोडिंग सिखाई जा सकती है. दिल्ली के अनमोल वर्मा एक बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी में कार्यरत हैं और बीते दस सालों से कोर प्रोग्रामिंग कर रहे हैं. अनमोल सत्याग्रह से बातचीत में कहते हैं, ‘मैं काफी समय से कोर प्रोग्रामिंग ही कर रहा हूं और यह इतना भी आसान काम नहीं है कि आप पांच या दस साल के बच्चे को सिखा देंगे. पाठ्यक्रम कितना भी अच्छा क्यों ना हो, लेकिन आप इससे पांच या आठ साल के बच्चे को कोडर नहीं बना सकते हो, यह तो संभव नहीं है. हां, यह जरूर हो सकता है कि रेडीमेड कोड में ब्लॉक्स इधर-उधर सेट करवाकर आप बच्चे से ऐप या गेम बनवा दो. लेकिन इससे बच्चा प्रोग्रामर नहीं हो जाता… साफ़ कहूं तो इन संस्थानों ने माता-पिता की साइकोलॉजी (मनोविज्ञान) पर बहुत रिसर्च किया है, जिससे वे उन्हें अपने जाल में फांस लेते हैं.’ कुछ संस्थान कोडिंग की बात करते हुए यह दलील देते हैं कि इससे बच्चे का मानसिक विकास होगा, उसके अंदर लॉजिक डेवलप होंगे, वह किसी समस्या का समाधान जल्द निकालना सीख जाएगा. इस पर अनमोल कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता इन सबके लिए बच्चे को विशेष कोडिंग क्लॉस करवानी चाहिए, ये खूबियां तो तमाम वीडियो गेम्स खेलकर और पज़ल सॉल्व करके बच्चों में डेवलप हो जाती हैं.’
क्या पांच-छह साल के बच्चों को कोडिंग सिखाना सही है?
बच्चों को कोडिंग सिखाने को लेकर दुनिया भर के शिक्षाविद कई बार अपनी राय सार्वजनिक रूप से साझा कर चुके हैं. इनमें अधिकांश का मानना है कि बच्चों को कोडिंग नहीं सिखाई जानी चाहिए. इनके मुताबिक पांच या आठ साल के बच्चों की उम्र को देखते हुए यह उनके लिए एक गैरजरूरी चीज है जिसका बोझ उनके दिमाग पर डालना सही नहीं है.
अमेरिका में बाल विकास और टीचर्स ट्रेनिंग के विशेषज्ञ जॉनी कास्त्रो का मानना है कि बच्चों पर 15 या 16 साल की उम्र से पहले कोडिंग सीखने का दबाव नहीं बनाना चाहिए. एक साक्षात्कार में कास्त्रो कहते हैं, ‘बच्चों को आप बचपन के मजे लेने दीजिये, यह उम्र उनके दिमाग पर बोझ बढ़ाने की नहीं है. उन्हें केवल गणित, विज्ञान, अंग्रेजी ही सीखने दीजिये, उन्हें खेल के मैदान में छोड़ दीजिए, लोगों की बातें सुनने दीजिए, नैतिक शिक्षा पढ़ाइये… ये सभी चीजें पांच-दस साल के बच्चे के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं क्योंकि इनसे ही उसका संपूर्ण विकास होगा न कि कोडिंग से.’
कास्त्रो का यह भी मानना है कि अगर किसी बच्चे को कोडिंग में विशेष दिलचस्पी है, तो भी उसे पहले बेसिक स्कूल पाठ्यक्रम जैसे – गणित, इंग्लिश, विज्ञान ही पढ़ने देना चाहिए. उनके मुताबिक किसी बच्चे को कोडिंग में एक्सपर्ट बनाने से पहले उसे बेसिक शिक्षा का पूरा ज्ञान होना चाहिए.
मुंबई के सरफराज अहमद ने सत्याग्रह से बातचीत के दौरान अपने जीवन की एक घटना भी साझा की थी, जिससे यह समझा जा सकता है कि बारहवीं कक्षा तक किसी बच्चे का पूरा ध्यान बेसिक स्कूल पाठ्यक्रम पर होना क्यों जरूरी है. सरफराज कहते हैं, ‘करीब 20 साल पहले मेरे एक दोस्त ने मुझे अपने छोटे भाई से मिलवाया था, जो तब आठवीं कक्षा में था लेकिन जबरदस्त कोडिंग करता था. उस समय उस बच्चे ने मीडिया प्लेयर बना लिया था. ऐसा लगता था कि उस बच्चे के अंदर कोडिंग का हुनर ‘गॉड गिफ्टेड’ है. मैं उससे काफी प्रभावित हुआ. लेकिन, वह आठवीं क्लॉस का बच्चा कोडिंग में इतना मशगूल हो गया था कि उसका अपनी स्कूल की पढ़ाई से ध्यान हट गया था. नतीजा यह हुआ कि वह नौवीं कक्षा में कई विषयों में फेल हो गया. इसके बाद घर वालों ने उसकी कोडिंग छुड़वाई और बारहवीं कक्षा तक केवल गणित, विज्ञान और अंग्रेजी पर ध्यान देने को कहा.’ सरफराज कहते हैं कि उस बच्चे को भी तब यह समझ आ गया था कि अगर वह दसवीं और बारहवीं पास नहीं कर पाया तो उसे कोडिंग का शायद ही कोई फायदा मिले.
अमेरिका के राष्ट्रीय साइबर वॉच सेंटर में पाठ्यक्रम निर्धारण विभाग की निदेशक मार्गरेट लेरी प्रोग्रामिंग और तकनीक के मामले में एक बेहद रोचक तथ्य बताती है. इससे भी यह समझा जा सकता है कि क्यों बच्चों को प्रोग्रामिंग सिखाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. एक समाचार पत्र से बातचीत में वे कहती हैं, ‘कई अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि हर तकनीक अगले दो साल में 60 फीसदी तक पुरानी हो जाती है क्योंकि बहुत जल्द नयी तकनीक बाजार में आ जाती है.’ उनके मुताबिक ऐसे में कम उम्र में किसी बच्चे को सिखाई गई कोई प्रोग्रामिंग लैंग्वेज दस या पंद्रह साल बाद उसे आईटी सेक्टर में नौकरी दिलवाने में मदद करगी इसकी संभावना न के बराबर ही है.
क्या कोडिंग देर से सीखने पर आपका बच्चा औरों से पिछड़ जाएगा?
सत्याग्रह ने वरिंदर सैनी के अलावा और भी कई अभिभावकों से ऑनलाइन कोडिंग संस्थानों को लेकर बातचीत की तो उन्होंने भी यही कहा कि इन संस्थानों की मार्केटिंग टीम के सदस्य अभिभावकों के अंदर हीन भावना भरने की पूरी कोशिश करते हैं. ये अभिभावकों से कहते हैं कि आज दुनिया भर में हर कोई अपने बच्चे को कोडिंग सिखा रहा है और अगर आप अपने बच्चे को नहीं सिखाओगे तो वह इस प्रतिस्पर्धी दौड़ में औरों से पिछड़ जाएगा.
बच्चों की तकनीक से जुडी शिक्षा पर कई किताबें लिख चुके अमेरिकी लेखक डॉ जिम टेलर भी मानते हैं कि अभिभावकों में यह डर रहता है कि उनका बच्चा दूसरे बच्चों से पिछड़ न जाए और इसलिए वे उन्हें कम उम्र में ही कोडिंग क्लॉस में भेजने लगते हैं. एक साक्षात्कार में टेलर कहते हैं, ‘बच्चों के मामले में कोडिंग इतनी लोकप्रिय इसीलिए है क्योंकि माता-पिता डरते हैं कि अगर उनका बच्चा तकनीक (कोडिंग) की ट्रेन में जल्द सवार नहीं हुआ, तो फिर वह कभी भी वह ट्रेन नहीं पकड़ पायेगा… लेकिन लोग यह नहीं समझते कि कम उम्र में कोडिंग सीखना सफलता की कुंजी नहीं है. तकनीक के मामले में जो आज है, वह कल नहीं होगा. उन्हें समझना चाहिए कि आने वाले तकनीक के युग में वह बच्चा सफल होगा जिसके अंदर अपने आइडिया होंगे, रचनात्मकता होगी, नया सोचने की क्षमता होगी.’ टेलर के मुताबिक, ‘इसलिए माता-पिता को बच्चों के सम्पूर्ण विकास पर ध्यान देना चाहिए, उन्हें गहरी सांस लेनी चाहिए और बच्चों को अच्छे माहौल में चीजों को परखने देना चाहिये.’
क्या कोडिंग देर से सीखने पर कोई बच्चा औरों से पिछड़ जाएगा? इस सवाल पर दिल्ली स्थित एक आईटी कंपनी में वरिष्ठ सॉफ्टवेयर डेवलपर सुचित कपूर जोर से ठहाका लगाते हैं. वे बहुत ही प्रैक्टिकल जबाव देते हुए कहते हैं, ‘कोडिंग कोई मैथ, साइंस या इंग्लिश नहीं है, जिसे आपका बच्चा अगर कुछ महीने या साल तक नहीं सीखेगा, तो अन्य बच्चों से पिछड़ जाएगा. प्रोग्रामिंग तो एक तकनीक है, आप इसे कभी भी सीख सकते हो.’ सुचित अपना ही उदाहरण देते हुए बताते हैं कि उन्होंने एमसीए (मास्टर ऑफ़ कंप्यूटर एप्लीकेशन) की पढ़ाई की है. एमसीए में ही उन्होंने प्रोग्रामिंग सीखी, उससे पहले प्रोग्रामिंग से उनका कोई नाता नहीं था, क्योंकि उन्होंने साइंस से बीएससी करने के बाद एमसीए किया था. सुचित के मुताबिक इसके बावजूद उन्हें एमसीए के दौरान कोडिंग सीखने में कोई परेशानी नहीं हुई और एक अच्छी कंपनी में उनका प्लेसमेंट हुआ, आज वे एक कोर एंड्रायड प्रोग्रामर हैं.
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