लातूर, महाराष्ट्र में पोस्ट कोविड क्लीनिक के बाहर अपनी बारी का इंतज़ार करते लोग

विज्ञान-तकनीक | कोरोना वायरस

क्या अब हमें लॉन्ग कोविड नाम की महामारी का सामना करना है?

लॉन्ग कोविड पर हुए शोध इशारा करते हैं कि यह कोरोना संक्रमण का शिकार होने वाले 10 से 30 फीसदी लोगों को प्रभावित करता है

अंजलि मिश्रा | 11 अक्टूबर 2021 | फोटो: तबस्सुम बड़नगरवाला

करीब डेढ़ साल तक कोरोना महामारी से जूझने के बाद, अगस्त-सितंबर के महीने दुनिया के लिए एक बड़ी राहत की तरह रहे. इस दौरान दुनिया भर में न केवल संक्रमण और मौतों के आंकड़े बहुत कम रहे बल्कि विश्व के किसी कोने से किसी नए वैरिएंट की खबरें आती भी नहीं सुनाई दीं. अमेरिका, ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में लोगों को मास्क से निजात मिल गई तो दुनिया के बाकी हिस्सों में भी धीरे-धीरे ही सही लेकिन जीवन सामान्य होने की तरफ बढ़ने लगा है. ऐसे में अगर कोई सबसे बुरी खबर सुना सकता है तो वह शायद यही होगी कि हम जल्दी ही एक नई तरह की महामारी का सामना करने जा रहे हैं. वैज्ञानिक इस संभावित महामारी को ‘पोस्ट कोविड-19 कंडीशन,’ ‘एक्यूट कोविड-19’ या ‘लॉन्ग कोविड’ नाम दे रहे हैं.

लॉन्ग कोविड से जुड़ी इस खबर के दो पहलू हैं, एक बुरा और दूसरा थोड़ा कम बुरा या कहिए कि थोड़ी राहत देने वाला. बुरा पहलू है यह है कि महामारी विशेषज्ञ इसकी आशंका तो बीते एक साल से जता रहे हैं लेकिन अब तक इस मामले में लक्षण या इलाज से जुड़ी कोई ठोस बात कह पाने की स्थिति में नहीं पहुंच पाए हैं. वहीं, थोड़ी राहत देने वाली बात यह है कि पोस्ट कोविड-19 कंडीशन संक्रामक नहीं और जैसा कि इसके नाम से साफ है कि इसकी गिरफ्त में केवल वही लोग आ रहे हैं जो पहले कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके हैं.

पोस्ट कोविड-19 कंडीशन या लॉन्ग कोविड क्या है?

पोस्ट कोविड-19 कंडीशन या लॉन्ग कोविड के लक्षणों की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके लोगों में सांस फूलना, ब्रेन फॉग (याद रखने या एक जगह ध्यान लगाने में दिक्कत होना) और थकान इसके तीन प्रमुख लक्षण हैं. वहीं, मरीजों के अनुभवों के आधार पर देखें तो इनकी संख्या 200 से अधिक हो जाती है. इनमें मुख्य रूप से सीने में दर्द, बोलने में मुश्किल, डिप्रेशन या एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याएं, जोड़ों में दर्द, बुखार, सिरदर्द, अनिद्रा, तेजी से बाल झड़ना, सूंघने और स्वाद पहचानने की क्षमताओं के चले जाने सरीखे लक्षण शामिल हैं.

वैज्ञानिकों के मुताबिक कोरोना संक्रमण को पूरी तरह से ठीक होने में 14 दिन का समय लगता है लेकिन अगर किसी को इसके बाद भी संक्रमण के लक्षण रहते हैं तो उसे गंभीर माना जाता है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक अगर किसी में चार हफ्तों तक संक्रमण के लक्षण रहते हैं तो उसे एक्यूट कोविड-19, 4 से 12 हफ्तों तक लक्षण रहते हैं तो ऑनगोइंग सिम्प्टोमैटिक कोविड-19 और 12 हफ्तों के बाद भी कोरोना संक्रमण के लक्षण होने पर उसे पोस्ट कोविड-19 सिंड्रोम या ल़ॉन्ग कोविड कहा जाता है. किसी मरीज के लक्षण से प्रभावित होने का पैमाना यह है कि वह इनके चलते अपनी सामान्य ज़िंदगी में रोज की गतिविधियां कर पाने में असहज महसूस करता हो. विशेषज्ञ कहते हैं कि लॉन्ग कोविड के मरीजों में ये लक्षण तीन महीने से लगभग एक साल तक देखने को मिल सकते हैं. चूंकि महामारी का कुल समय ही डेढ़ साल है इसलिए वैज्ञानिक स्पष्ट तौर पर नहीं बता पा रहे हैं कि किसी में ये लक्षण एक साल से ज्यादा समय तक भी देखे जा सकते हैं या नहीं. हालांकि लॉन्ग कोविड का फिलहाल कोई इलाज उपलब्ध नहीं हैं लेकिन कुछ आंकड़ों और अनुभवों के आधार पर यह ज़रूर कहा जा रहा है कि वैक्सीनेटेड लोगों को कोरोना संक्रमण होने के बाद लॉन्ग कोविड होने की संभावना कम होती है.

लॉन्ग कोविड विकसित होने की वजहों पर गौर करें तो एक वैज्ञानिक संभावना कहती है कि कोरोना संक्रमण शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को अतिसक्रिय कर देता है. इसके चलते इम्यून सिस्टम न केवल वायरस पर बल्कि कोशिकाओं पर भी हमलावर हो जाता है. जानकारों के अनुसार ऐसा अक्सर मजबूत इम्युनिटी वाले लोगों में देखने को मिलता है. इससे जुड़ी एक दूसरी संभावना के मुताबिक, वायरस शरीर में हृदय और मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है, यह कैसे होता है इस पर हम इस आलेख में आगे विस्तार से बात करेंगे. फिलहाल यह जिक्र करते चलते हैं कि हृदय और मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने से ब्रेन फॉग, स्वाद और गंध का ज्ञान न होना या फेफड़े और दिल से जुड़ी रक्त वाहिनियों में ब्लॉकेज जैसी शिकायतें देखने को मिलती हैं. वहीं, एक तीसरी संभावना कहती है कि पूरे इलाज के बाद भी शरीर में वायरस के कुछ अंश रह जाते हैं जो कुछ समय के लिए तो निष्क्रिय रहते हैं लेकिन उसके बाद एक नई तरह से शरीर को प्रभावित करने लगते हैं. कुछ अन्य तरह के बहुत कॉमन वायरसों जैसे हर्पीज या एप्स्टाइन बार (ईबीवी) से होने वाले संक्रमणों में भी वायरस का इस तरह का व्यवहार देखने को मिलता है. हालांकि वैज्ञानिक तबका अभी तक यह तय नहीं कर पाया है कि लॉन्ग कोविड के संबंध में कौन सी अवधारणा सही है लेकिन दुनिया भर में लक्षणों की विविधता देखते हुए यह माना जा रहा है कि इसकी एक से अधिक वजहें भी हो सकती हैं.

लॉन्ग कोविड कितना कॉमन है?

लॉन्ग कोविड के मामलों को दर्ज करना और उन पर गंभीरता से चर्चा होना बीते कुछ महीनों में ही शुरू हुआ है, इसलिए अभी इस पर पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा रहा है. लॉन्ग कोविड पर हुए शोध इशारा करते हैं कि यह कोरोना संक्रमण का शिकार होने वाले 10 से 30 फीसदी लोगों को प्रभावित करता है. खास तौर पर उन्हें जिन्हें गंभीर रूप से संक्रमण हुआ हो और जिन्हें अस्पताल में भर्ती करवाने की नौबत आ गई हो. कुछ शोध बताते हैं कि ज्यादा उम्र के लोगों में यह अधिक देखने को मिलता है. इसके अलावा महिलाओं के लॉन्ग कोविड से प्रभावित होने की संभावना लगभग दोगुनी होती है लेकिन इसके कारणों तक अभी नहीं पहुंचा जा सका है.

आंकड़ों के आधार पर लॉन्ग कोविड की गंभीरता पर गौर करें तो ब्रिटेन में बीस हजार लोगों पर हुए एक शोध में कोरोना से संक्रमित होने वाले लगभग 20 फीसदी लोगों के लॉन्ग कोविड से प्रभावित होने की बात कही गई थी. वहीं, भारत में मैक्स हॉस्पिटल द्वारा किए गए एक बेहद छोटे सैंपल साइज वाले अध्ययन में लगभग 31 फीसदी लोगों में स्वस्थ होने के तीन महीने बाद भी लॉन्ग कोविड के लक्षण होने की बात सामने आई है. इसके अलावा भी कई मीडिया रिपोर्टों में यह बात कही गई है कि भारत में शहरों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी लोगों के लॉन्ग कोविड से प्रभावित होने के अनगिनत मामले लगातार सामने आ रहे हैं. लेकिन हमारे यहां इससे जुड़े कोई ठोस और विश्वसनीय आंकड़े अभी तक किसी प्रतिष्ठित सरकारी या निजी संस्थान द्वारा जारी नहीं किए गए हैं.

लॉन्ग कोविड चिंता की बात क्यों होनी चाहिए?

लॉन्ग कोविड से जुड़ी सबसे घातक बात यह मानी जा रही है कि इसका असर शरीर के किसी भी अंग पर देखने को मिल सकता है. इसके चलते लोगों को हृदय, फेफड़े या किडनी संबंधित बीमारियों से लेकर न्यूरोलॉजिकल या साइकोलॉजिकल समस्याओं तक का सामना करना पड़ रहा है. लॉन्ग कोविड पर जागरुकता फैलाने के लिए काम कर रहे दुनिया के बड़े नागरिक संगठन अब कोविड-19 को रेस्पिरेटरी डिजीज (श्वसन संबंधी बीमारी) कहे जाने की बजाय मल्टी-ऑर्गन डिजीज़ (कई अंगों में होने वाली बीमारी) कहे जाने पर ज़ोर देने लगे हैं. नागरिक संगठनों की मानें तो खास तौर पर दिल और दिमाग पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव लॉन्ग कोविड से जुड़ी सबसे चिंताजनक बातें हैं.

बीते कुछ समय में हुए कुछ अध्ययन भी नागरिक संगठनों की इस बात को मजबूती देते हैं. पहले दिल या हृदय से जुड़ी बीमारियों पर गौर करें तो किसी भी घातक वायरस का संक्रमण होने पर हृदय की कोशिकाओं में सूजन आ सकती है जिसे चिकित्सा की भाषा में मायोकार्डिटिस या पेरीकार्डिटिस कहा जाता है. कोरोना संक्रमण होने पर यह सूजन हृदय या मस्तिष्क की वाहिनियों में क्लॉटिंग (खून के थक्के बनने) की वजह सकती है जिसका नतीजा हार्ट अटैक या स्ट्रोक (लकवे) के रूप में देखने को मिल सकता है. इसके अलावा, हाल ही में प्रतिष्ठित साइंस जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में अनियमित हृदयगति, धड़कनों का अचानक बढ़ या घट जाना, सीने में दर्द, शरीर में नसों का उभरना, बेहोशी जैसे लक्षणों को भी हृदय पर हुए कोरोना संक्रमण के संभावित असर की तरह दर्ज किया गया है.

मस्तिष्क पर कोविड-19 के असर पर आएं तो अब तक हुए अध्ययनों में इस बात के साक्ष्य नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस हमारे शरीर में ब्लड ब्रेन बैरियर (तंत्रिका-तंत्र की रक्षाप्रणाली) को भेदकर मस्तिष्क में घुस सकता है. लेकिन वैज्ञानिक इस संभावना से इनकार नहीं करते हैं कि वायरस नाक की उन तंत्रिकाओं (नर्व्स) के रास्ते मस्तिष्क तक जा सकता है जो लिंबिक सिस्टम से जुड़ी होती हैं. मस्तिष्क का महत्वपूर्ण हिस्सा, लिंबिक सिस्टम भावनाओं को नियंत्रित करने, नई चीजें सीखने और याद रखने के लिए जिम्मेदार होता है. जानकार अंदाज़ा लगाते हैं कि कोविड के मरीजों में अस्थायी तौर पर गंध और स्वाद की क्षमता चले जाने का कारण यह भी हो सकता है.

बीते जून के महीने में ब्रिटेन में हुए एक शोध के दौरान स्वस्थ लोगों और कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों की ब्रेन इमेजेज़ की तुलना करने पर पाया गया कि संक्रमितों के लिंबिक सिस्टम का साइज अपेक्षाकृत घट गया था. शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसा होना भविष्य में मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों की वजह बन सकता है और अब वे इसे लॉन्ग कोविड से जोड़कर भी देख रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविड परोक्ष रूप से भी मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है. जैसा कि हृदय पर होने वाले असरों पर बात करते हुए ऊपर जिक्र किया जा चुका है कि वायरस रक्त वाहिनियों को नुकसान पहुंचाकर रक्त के प्रवाह को गड़बड़ कर सकता है और ऑक्सीजन और अन्य जरूरी न्यूट्रिएंट्स (मुख्य रूप से इलेक्ट्रोलाइट्स) के मस्तिष्क पहुंचने तक पहुंचने को बाधित कर सकता है. इसके अलावा, वायरस शरीर में इम्यून सिस्टम को भी अतिसक्रिय कर सकता है जिसके चलते टॉक्सिक मॉलिक्यूल्स बनने लग सकते हैं जो मस्तिष्क को ठीक तरह से काम नहीं करने देते हैं.

मस्तिष्क पर असर से जुड़े कुछ शोध इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि कोविड उन तंत्रिकाओं को भी प्रभावित कर सकता है जो गट फंक्शन (पाचनतंत्र) को नियंत्रित करती हैं. पाचनतंत्र में समस्या होने पर शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ पेट में मौजूद बैक्टीरियाज़ की व्यवस्था का संतुलन भी बिगड़ सकता है. यह संतुलन मस्तिष्क के ठीक तरह से काम करने के लिए भी ज़रूरी होता है. इसके अलावा, वायरस के पिट्युटरी ग्लैंड (पीयूष ग्रंथि) पर असर की बात भी कही जा रही है. शरीर की मास्टर ग्लैंड कही जाने वाली पिट्यूटरी ग्लैंड हमारे सभी हॉर्मोन्स का नियंत्रण करती है जिनमें कॉर्टिसोल भी शामिल है. यह हमारे स्ट्रेस रिस्पॉन्स को नियंत्रित करता है. कॉर्टिसोल की कमी लंबे समय के लिए थकान की वजह भी बन सकती है. यह चिंताजनक है कि तनाव और थकान दोनों ही लॉन्ग कोविड के मरीजों में दिखाई देने वाले सबसे कॉमन लक्षण हैं.

लॉन्ग कोविड से किसे कितना खतरा है?

लॉन्ग कोविड से जुड़ी एकमात्र सकारात्मक बात यह है कि इसके मरीजों में कोरोना वायरस जीवित अवस्था में नहीं रहता है. इस तरह शरीर में सक्रिय संक्रमण न होने के चलते यह बीमारी संक्रामक नहीं रह जाती है और केवल उन्हें ही प्रभावित करती है जो पहले से कोविड-19 से पीड़ित रहे हों. जैसा कि ऊपर जिक्र किया जा चुका है कि अधिक उम्र के लोगों और महिलाओं में या कोरोना संक्रमण से गंभीर रूप से प्रभावित होने वाले लोगों में लॉन्ग कोविड होने के लक्षण अधिक देखने को मिल रहे हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि युवाओं, पुरुषों या हल्के-फुल्के लक्षणों के साथ संक्रमित होने वाले लोगों में यह विकसित नहीं हो सकता है. अमेरिकी स्वास्थ्य संस्था सीडीसी द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक हल्के-फुल्के लक्षणों वाले संक्रमितों, जिनका इलाज घर पर ही हुआ हो, में से भी लगभग एक तिहाई लोगों में दो से तीन महीनों बाद भी हल्के लक्षण देखने को मिल रहे थे. जानकारों के मुताबिक, ऐसे लोगों में लक्षणों के बहुत गंभीर न होने और अधिकतम तीन महीने तक ही दिखाई देने के चलते इसे राहत की बात माना जा रहा है. इसके बावजूद जानकार इस तबके को भी तीन महीने बाद संपूर्ण स्वास्थ्य जांच करवा लेने की सलाह देते हैं.

बच्चों की बात करें तो चूंकि बच्चों को कोरोना संक्रमण होने का खतरा कम होता है इसलिए यह मानकर चला जा रहा है कि उन्हें लॉन्ग कोविड होने का खतरा भी कम होगा. लेकिन बीते कुछ महीनों में हुए अध्ययनों से पता चला है कि कोरोना संक्रमण से प्रभावित होने वाले 12-15 फीसदी बच्चों में 5 से 17 हफ्ते बाद भी कोविड के लक्षण देखने को मिल रहे हैं. वयस्कों की ही तरह, इनमें सबसे कॉमन लक्षण थकान, सिरदर्द, जोड़ों में दर्द, नींद न आना और सांस या धड़कनों का अनियमित हो जाना वगैरह हैं. बच्चों के मामले में इन लक्षणों की गंभीरता और ये कितने समय तक रहते हैं, इससे जुड़े बहुत सीमित आंकड़े ही उपलब्ध हैं जो किसी ठोस नतीजे तक पहुंचने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. यही वजह है कि स्कूलों के खुलने की स्थिति में स्वास्थ्य विशेषज्ञ बच्चों को मास्क लगाने, हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग की आदतें बनाकर रखने की सलाह देते हैं क्योंकि फिलहाल केवल कोविड-19 से बचे रहना ही लॉन्ग कोविड होने की संभावना को शून्य करता है.

क्या वैक्सीन लॉन्ग कोविड से बचने में मददगार है?

लॉन्ग कोविड की पहचान करने के लिए न तो अभी तक कोई पैथॉलजी टेस्ट डेवलप किया जा सका है और न ही इसका कोई इलाज खोजा जा सका है. लेकिन ब्रिटेन में हुए एक सर्वे के हवाले से बताया जा रहा है कि लॉन्ग कोविड की शिकायत करने वाले लगभग आधे से अधिक लोगों ने वैक्सीनेशन के बाद लक्षणों में आराम मिलने की बात कही है. विशेषज्ञ अंदाज़ा लगाते हैं कि वैक्सीन इम्यून रिस्पॉन्स को पुनर्व्यवस्थित कर देती है या फिर यह शरीर में बाकी रह गए वायरस घटकों को खत्म कर देती है, जिसके चलते मरीज को आराम मिल जाता है. इसके बावजूद स्वास्थ्य के जानकार लॉन्ग कोविड से बचने का एकमात्र तरीका कोविड-19 से बचे रहने को ही बताते हैं और वैक्सीन इसका सबसे आसान रास्ता है. दरअसल वैक्सीन लगने के बाद संक्रमण होने का खतरा ही बहुत कम हो जाता है और अगर संक्रमण होता भी है तो इसके लक्षण बहुत हल्के-फुल्के रहते हैं और अस्पताल जाने की नौबत नहीं आती है. चूंकि लॉन्ग कोविड उन लोगों में ही देखने को मिलता है जिन्हें गंभीर रूप से संक्रमण हुआ हो, इसलिए वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि कोविड वैक्सीन लेने के बाद लॉन्ग कोविड होने की संभावना खत्म न भी हो तो बहुत कम ज़रूर हो जाती है.

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